जबलपुर में 2 हाई प्रोफाइल डॉक्टर बर्खास्त, चर्चाओं का बाजार गर्म- MP NEWS

जबलपुर
। मध्य प्रदेश के सबसे चर्चित नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पदस्थ डॉ तृप्ति गुप्ता और डॉ अशोक साहू को बर्खास्त कर दिया गया है। दोनों के भोपाल में जबरदस्त पॉलिटिकल कनेक्शन थे और लंबे समय तक इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई थी। 

उल्लेखनीय है कि डॉक्टर तृप्ति और डॉक्टर अशोक पति पत्नी है और दोनों की नियुक्ति बायो केमिस्ट्री डिपार्टमेंट में प्रोफेसर डॉक्टर के रूप में हुई थी। इनके खिलाफ मध्य प्रदेश शासन के आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ- EOW द्वारा भी कार्रवाई की गई थी। दोनों के खिलाफ एक डिपार्टमेंटल इंक्वायरी भी हुई थी। इस सब के नतीजे में दोनों डॉक्टरों को मध्यप्रदेश सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम 1966 के नियम 10(8) के तहत शासकीय सेवा से पृथक करने के आदेश जारी किए गए। 

पद के योग्य नहीं थे, पॉलिटिकल कनेक्शन से नियुक्ति हुई थी 

क्योंकि कॉलेज के डीन की ओर से इस बारे में सभी सवालों के जवाब नहीं दिए गए इसलिए चर्चा है कि 14 साल पहले डॉ तृप्ति और डॉक्टर अशोक की नियुक्ति पॉलिटिकल कनेक्शन के चलते हुई थी। दोनों पद के योग्य नहीं थे। इनके खिलाफ कई शिकायतें की गई परंतु पावरफुल होने के कारण किसी शिकायत पर कभी कोई कार्यवाही नहीं हुई। 

डॉ तृप्ति गुप्ता- मेडिकल कॉलेज यूनिवर्सिटी की रजिस्ट्रार भी थी

याद दिला दें कि डॉ तृप्ति गुप्ता जबलपुर में स्थित मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान चिकित्सा विश्वविद्यालय में रजिस्ट्रार के पद पर भी पदस्थ रही है। इनके कार्यकाल में ही बिना परीक्षा के पास वाली मार्कशीट और रिश्वत के लिए परीक्षार्थियों को फेल करने का मामला सामने आया था। 

क्या अभियोजन की कार्रवाई से बचाने के लिए बर्खास्त किया गया 

एक प्रश्न यह भी उठता है कि डॉ तृप्ति गुप्ता और उनके पति डॉ अशोक को क्या अभियोजन की कार्रवाई से बचाने के लिए बर्खास्त किया गया है, क्योंकि जिस प्रकार उनके खिलाफ जांच प्रक्रिया शुरू हुई और जांच रिपोर्ट सबमिट की गई। अब तक EOW के द्वारा जो कार्रवाई की गई उसके बाद भले ही अपने हाई प्रोफाइल कनेक्शन के कारण डॉ तृप्ति और उनके पति के खिलाफ कोई एक्शन नहीं हो पाता परंतु बचना असंभव था क्योंकि सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत कई एक्टिविस्ट सारे खुलासे कर देते और मामला हाईकोर्ट में भी जा सकता था। 

अधिकारी को बर्खास्त कर देने के बाद लोग यह मान लेते हैं कि उसे पर्याप्त दंड मिल गया है। इधर अधिकारी अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ न्यायालय की शरण में चले जाते हैं और 1 लंबी अवधि के बाद केस जीत कर सरकारी खजाने से अच्छा खासा पैसा प्राप्त कर लेते हैं।

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