क्या है दोहरे दण्ड से संरक्षण का मौलिक अधिकार, शासकीय सेवकों के लिए खास- Fundamental rights in India

भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्राप्त है एवं सभी को समान विधि के अनुसार न्याय मिले सके, इसलिए संविधान में नागरिकों को बहुत से मौलिक अधिकार प्राप्त हैं। 

कुछ विधियां मौलिक विधि होती है और कुछ विधियां कानूनी होती हैं। मौलिक विधि, वह विधि होती है जिसे अनुच्छेद 32 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट का संरक्षण प्राप्त होता है एवं कानूनी विधि वह विधि होती है जो राज्य सरकार के बनाई जाती है एवं अनुच्छेद 226 के अंतर्गत संरक्षण दिया जाता है। हम बात कर रहे हैं आरोपी व्यक्ति को दोहरे दण्ड से कब संरक्षण प्राप्त होता है जानिए।

भारतीय संविधान अधिनियम,1950 के अनुच्छेद 20(2) की परिभाषा

किसी भी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक अभियोजित एवं दण्डित नहीं किया जाएगा। साधारण शब्दों में कहे तो किसी पुलिस अधिकारी को भ्रष्टाचार के आरोप में विभागीय अधिकारी द्वारा दण्डित किया गया है एवं उसी अपराध में न्यायालय द्वारा दण्ड संहिता की धारा के अंतर्गत दण्डित किया गया है तब ऐसा अधिकारी दोहरे दण्ड का संरक्षण लेने का अधिकार रखता है एवं न्यायालय द्वारा मौलिक विधि के अंतर्गत ही दण्ड मान्य होगा न की कानूनी विधि के अंतर्गत।

दोहरे दण्ड से संरक्षण के अधिकार लिए तीन शर्तो का होना आवश्यक है:-

1. व्यक्ति का आरोपी होना आवश्यक है।
2. कार्यवाही या विचारण किसी न्यायालय या न्यायिक अभिकरण के समक्ष हुई हो।
3. आपराधिक मामला किसी विधि अपराध के संबंध में हो एवं जिसमे दण्ड का प्रावधान भी हो।
Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665

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