मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ मोहन यादव ने आज मंत्रालय में एक बैठक को संबोधित किया जिसमें निर्णय लिया गया कि प्रदेश में उच्च शिक्षा के निजीकरण को प्रोत्साहित किया जाएगा। उन्होंने अधिकारियों को निर्देशित किया कि इसके लिए एक पॉलिसी बनाई जाए जिसे कैबिनेट से मंजूर करवाया जाएगा। इस बैठक में अपर मुख्य सचिव उच्च शिक्षा श्री शैलेन्द्र सिंह प्रमुख रूप से उपस्थित थे।
मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री का एजेंडा
मध्य प्रदेश शासन के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ मोहन यादव का मानना है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप मध्य प्रदेश को अन्य राज्यों की तुलना में आगे निकलने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी आवश्यक है। डॉ यादव का मानना है कि निजी क्षेत्र की भागीदारी से मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कंपटीशन पैदा होगा। इससे शिक्षण प्रणाली, तकनीक के प्रयोग, शिक्षण संस्थानों के प्रबंधन, शिक्षक-प्रशिक्षण शिक्षण संस्थानों के प्रबंधन, पाठ्यक्रम निर्माण, कौशल संवर्धन आदि महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विकास की गति तीव्र होगी।
मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षा की स्थिति
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में पिछले 10 सालों में दो दर्जन से ज्यादा प्राइवेट यूनिवर्सिटी खुल चुकी हैं। एक तरफ प्राइवेट यूनिवर्सिटी लगातार खुल रही है दूसरी तरफ सरकारी कॉलेजों में पढ़ाने के लिए प्रोफेसरों की नियुक्ति नहीं हो रही है। सरकारी यूनिवर्सिटी में स्टाफ की कमी है। सुविधाओं को लगातार कम किया जा रहा है। आत्मनिर्भरता के नाम पर बजट में कटौती की जा रही है।
उच्च शिक्षा मंत्री के इस फैसले से जहां एक और मध्य प्रदेश में हायर एजुकेशन महंगी हो जाएगी वहीं दूसरी ओर सरकारी नौकरियां भी कम हो जाएगी। देशभर के रिकॉर्ड बताते हैं कि हायर एजुकेशन के मामले में बड़ी उपलब्धियां सरकारी यूनिवर्सिटी से ही प्राप्त होती हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह होता है कि सरकारी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों को उनकी योग्यता के अनुसार वेतन मिलता है और उन्हें अपनी नौकरी की चिंता नहीं होती। वह अपना पूरा समय रिसर्च एंड डेवलपमेंट में लगाते हैं।
यहां उल्लेख करना अनिवार्य है कि कृषि प्रधान मध्यप्रदेश में इंदौर में रिसर्च, इनोवेशन एवं इन्वेंशन के लिए आरक्षित एग्रीकल्चर कॉलेज को बनाने के बजाय उसकी जमीन को शॉपिंग मॉल बनाने या किसी अन्य व्यवसायिक उपयोग के लिए के लिए आवंटित किया जा रहा है।
शिक्षा क्षेत्र के वकील की दलील
शिक्षा क्षेत्र से जुड़े उमाकांत कश्यप का कहना है कि शिक्षा और अनुसंधान के केंद्र निजी हाथों में पहुंचने के बाद कभी भी कुछ नया नहीं कर पाते क्योंकि उनकी बैलेंस शीट बनने लगती है। हर साल प्रॉफिट एंड लॉस का हिसाब किया जाता है। यदि इसरो जैसा संस्थान किसी प्राइवेट कंपनी के पास होता तो क्या कोई मिशन मंगल की कल्पना भी कर सकता था।