सामान्य मामलों में आरोपी को समन के जरिए बुलाया जाता है और गंभीर मामलों में वारंट के जरिए लेकिन कई बार ऐसा होता है कि सामान्य मामलों में कोर्ट के द्वारा वारंट जारी कर दिया जाता है। आइए जानते हैं कि ऐसा कब होता है जब मजिस्ट्रेट किसी सावन मामले को वारंट मामले में परिवर्तित कर सकता है:-
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 259 की परिभाषा:-
किसी समन मामले के ऐसे अपराध का दण्ड जो छः माह के कारावास से ऊपर हो और मजिस्ट्रेट को लगता है की ऐसे अपराध की सुनवाई वारण्ट के बिना नहीं हो सकती है तब मजिस्ट्रेट को धारा 259 के अनुसार यह शक्ति प्राप्त है कि वह समन मामलों की वारण्ट मामलों में परिवर्तन कर सकता है एवं अगर चाहे तो वह साक्षियो को पुनः गवाही के लिए बुलवा सकता है।
रिवीजन
हमने आपको पहले ही बताया है कि समन मामले ऐसे होते हैं जिसमे आरोपी को मजिस्ट्रेट समन जारी कर न्यायालय बुलाता है एवं कुछ मामलों में आरोपी की उपस्थिति भी अनिवार्य नहीं होती है। परिवादी आपने वाद को भी मजिस्ट्रेट की आज्ञा से वापस ले सकता है। वारण्ट मामले में मजिस्ट्रेट आरोपी को वारण्ट द्वारा पुलिस के माध्यम से बुलवाता हैं एवं वारण्ट मामले में विचारण के दौरान परिवादी को वाद वापस लेने की आज्ञा मजिस्ट्रेट द्वारा नहीं दी जा सकती है। वारण्ट मामले में मजिस्ट्रेट यह देखता है की आरोपी को पुलिस रिपोर्ट, FIR या NRC एवं अपराध जिस का उस पर आरोप लगा है उसे जानकारी है या नहीं। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665