नयी दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने नवनियुक्त कर्मचारी को प्रशिक्षण के दौरान बर्खास्त कर देने के मामले में महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए कहा कि सरकारी नौकरी प्राप्त करने के लिए प्रकार की सूचना को छुपाना या झूठी जानकारी देना, उसे बर्खास्त करने का आधार नहीं हो सकता, क्योंकि वह डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन की प्रक्रिया को पूरा कर चुका है।
डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन में गलत जानकारी के कारण नियुक्ति रद्द नहीं की जा सकती: सुप्रीम कोर्ट
भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने प्रस्तुत मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुनाते हुए कहा कि एक उम्मीदवार जो चयन प्रक्रिया में भाग लेना चाहता है, उसे सेवा में शामिल होने से पहले और बाद में सत्यापन/प्रमाणीकरण प्रपत्र में हमेशा अपने चरित्र और महत्वपूर्ण जानकारी प्रस्तुत करना आवश्यक है, लेकिन उसकी नियुक्ति को इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता कि उसने डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन के समय जानकारी छुपाई या फिर गलत जानकारी दी।
भारत की सर्वोच्च न्यायालय में पवन कुमार द्वारा दिल्ली हाई कोर्ट के डिसीजन के खिलाफ अपील दाखिल की गई थी। पवन कुमार को रेलवे सुरक्षा बल (RPF) में कांस्टेबल के पद के लिए चुना गया था। ट्रेनिंग के दौरान उनकी नियुक्ति को इस आधार पर रद्द कर दिया गया कि उन्होंने दस्तावेज सत्यापन के दौरान उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले की जानकारी नहीं दी।
जानकारी छुपाने वाले उम्मीदवार को अपील का अधिकार नहीं लेकिन...
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जिस व्यक्ति ने जानकारी को छिपाया है या गलत घोषणा की है, उसे नियुक्ति या सेवा में बनाये रखने की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है, लेकिन कम से कम उसके साथ मनमाने ढंग से व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता द्वारा भरे गए सत्यापन फॉर्म के समय, उसके खिलाफ पहले से ही आपराधिक मामला दर्ज किया गया था, शिकायतकर्ता ने अपना हलफनामा दायर किया था कि जिस शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की गई थी वह गलतफहमी के कारण थी।
पीठ ने कहा, हमारे विचार में 24 अप्रैल 2015 को सक्षम प्राधिकारी द्वारा पारित सेवा से हटाने का आदेश उपयुक्त नहीं है और इसके बाद दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा पारित निर्णय सही नहीं है और यह रद्द करने योग्य है। भारत के महत्वपूर्ण समाचारों के लिए कृपया Hindi national news पर क्लिक करें.