Prevention of Corruption Act, 1988 के अनुसार रिश्वत लेना और रिश्वत देना दोनों अपराध होते हैं। रिश्वत लेने वाले लोकसेवक के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 के अंतर्गत मामला दर्ज किया जाता है लेकिन क्या जो व्यक्ति रिश्वत देता है उसके खिलाफ भी मामला दर्ज हो सकता है। आइए पढ़ते हैं कानून की किताब में क्या लिखा है:-
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 8 की परिभाषा:-
जो कोई किसी अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए किसी लोकसेवक को किसी भी प्रकार की रिश्वत देता है या अवैध कार्य करवाने के लिए कोई उपहार भेंट करता है। तब ऐसा करने वाला व्यक्ति अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत दोषी होगा। रिश्वत से अर्थ होगा किसी भी प्रकार का उपहार, पैसे, जेवरात, सामग्री, चल अचल किसी भी प्रकार की संपत्ति आदि।
रिश्वत देने का अपराध कब नहीं होगा:- जब कोई उचित एवं वैध कार्य के लिए दिया गया उपहार रिश्वत देने का अपराध नहीं माना जायेगा।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 8 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान:-
इस धारा के अपराध संज्ञेय एवं अजमानतीय अपराध है, इनकी सुनवाई का अधिकार प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को होता है। सजा- इस धारा के अंतर्गत किए गए अपराध के लिए अधिकतम सात वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
उधानुसार:- मोहन सिंह अपनी निजी भूमि में सरकारी ट्यूबवेल का उत्खनन करवाना चाहता है। नियम अनुसार निजी भूमि में सरकारी ट्यूबवेल नहीं लगाया जा सकता लेकिन मोहन सिंह नियम विरुद्ध ट्यूबवेल लगाने के लिए संबंधित अधिकारी को लालच देता है ताकि अधिकारी उसके हित में अपने पद का दुरुपयोग करें। इस प्रकार के प्रकरण में मोहन सिंह दोषी माना जाएगा और उसे दंडित किया जाएगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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