Definition and punishment of section 248 of the Code of Criminal Procedure, 1973 in simple Hindi
यदि कोई व्यक्ति किसी अपराध में दोषी पाया गया और कोई अन्य व्यक्ति अपराधी के खिलाफ उसी प्रकार की एक नई शिकायत कर दे, तो क्या अपराधी व्यक्ति को इस आधार पर दंडित किया जा सकता है कि उसने पहले भी ऐसा अपराध किया है। आइए पढ़ते हैं कानून क्या कहता है:-
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 248 की परिभाषा:-
• परिवाद शिकायत पर मजिस्ट्रेट के समक्ष कोई आरोपी पेश हुआ है, एवं मजिस्ट्रेट की राय से लगता है कि लगाए गए आरोपी सही नही है तब मजिस्ट्रेट आरोपी व्यक्ति को छोड़ देगा।
• अगर मजिस्ट्रेट को लगता है की लगाए गए आरोप उचित एवं ठोस हैं तब मजिस्ट्रेट आरोपी व्यक्ति के अपराधों को विरचित करेगा।
व्यक्ति पर लगाए गए वर्तमान आरोप सिद्ध नहीं होते लेकिन पूर्व में वह इसी प्रकार के मामले में अपराधी पाया गया था, तब ऐसी स्थिति में उसके पूर्व के दोषों को तब तक नहीं देखा जाएगा जब तक कि वर्तमान का अपराध सिद्ध नहीं हो जाता।
CrPC 1978 section 248 Example
उदाहरण- एक व्यक्ति को मारपीट के मामले में पूर्व में दंडित किया जा चुका है और कोई दूसरा व्यक्ति फिर से मारपीट का आरोप लगाते हुए साक्ष्य प्रस्तुत किए बिना यह दलील देता है कि आरोपित व्यक्ति पूर्व में भी दंडित किया जा चुका है इसलिए यह विश्वास किया जाना चाहिए कि इस बार भी उसने अपराध किया है, तब मजिस्ट्रेट ऐसी दलील को खारिज कर देगा। वर्तमान अपराध का स्वतंत्रता पूर्वक सिद्ध होना अनिवार्य है। पुराने आपराधिक रिकॉर्ड के आधार पर सजा को कठोर किया जा सकता है परंतु किसी भी व्यक्ति का क्राइम रिकॉर्ड, किसी भी नए आरोप में दंडित करने के लिए उचित एवं पर्याप्त नहीं होगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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