SC-ST सदस्य की FIR से पहले पुलिस अधिकारी अन्वेषण कर सकता है या नहीं जानिए- SC-ST Act,1989

Bhopal Samachar
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम में धारा 3 के अंतर्गत वे सारे अपराधों का वर्णन संज्ञेय अपराध में किया है जो भारतीय भारतीय दंड संहिता की धाराओ में छोटे-मोटे भी होंगे। अगर कोई थाने का थाना प्रभारी इन अपराधों की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं करता है तो वह कर्तव्य उपेक्षा अधिनियम की धारा 4 के अंतर्गत दोषी होगा। बहुत से थानों में एट्रोसिटी एक्ट में FIR लिखने से पहले थाना प्रभारी पीड़ित व्यक्ति को जांच का हवाला देकर FIR दर्ज नहीं करते हैं, पुलिस थाना अधिकारी द्वारा किया गया ऐसा कृत्य वैधानिक हैं या अवैधानिक जानते हैं।

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम,1989 की धारा 18(क) की परिभाषा:-

कोई अनुसूचित जाति एवं जनजाति का सदस्य किसी ऐसे अपराध जो धारा 3(1) एवं 3(2) में वर्णित उपधाराओं के अपराध की शिकायत लेकर थाने जाता है तब उपर्युक्त धारा 18(क) के अंतर्गत बिना अन्वेषण एवं बिना प्रमाण (अप्रूवल) के FIR दर्ज करेगा एवं तुरंत आरोपी को गिरफ्तार करेगा।
नोट:-  अधिनियम की धारा 3(1) एवं धारा 3(2) के अंतर्गत गिरफ्तार व्यक्ति को किसी भी प्रकार की अग्रिम जमानत नहीं दी जाएगी-【अधिनियम की धारा 18】।

FIR दर्ज होने के बाद अन्वेषण अधिकारी कौन होगा जानिए:-

थाना प्रभारी का कर्तव्य है कि वह बिना जाँच किए एट्रोसिटी एक्ट में FIR दर्ज करे एवं इसकी रिपोर्ट तुरंत जिले के पुलिस अधीक्षक को दे। राज्य सरकार या जिला पुलिस अधीक्षक किसी ऐसे अधिकारी को जांच या अन्वेषण का आदेश देगा जो उप पुलिस अधीक्षक (DSP) रैंक से नीचे की पंक्ति का न हो-【अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण)नियम,1995 का नियम क्रमांक 07】।

अतः उपर्युक्त धारा से स्पष्ट हो जाता है की अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति एक्ट,1989 के अपराध के आरोप की FIR से पहले जाँच अन्वेषण का अधिकार नहीं होता है। (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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