वैवाहिक विवाद या मानहानि जैसे सिविल मामलों में चरित्र का साक्ष्य उपयोगी है या नहीं- पढ़िए Law of Evidence 1872

हमने आपको बताया था कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 52 के अनुसार किसी सिविल मामले में व्यक्ति के चाल-चलन को गलत बताना कोई उचित साक्ष्य नहीं हो सकता है, लेकिन कुछ सिविल मामले में जैसे कि व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान होता है जिसके लिए वह नुकसानी की रकम प्राप्त करने का हकदार होगा वहाँ साक्ष्य के रूप में चरित्र का उल्लेख करना उचित हो सकता है जैसे कि मानहानि, वैवाहिक मामले आदि।

साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 55 की परिभाषा:-

अगर किसी सिविल मामले में व्यक्ति के मान सम्मान, प्रतिष्ठा का व्यवहार आदि को क्षति होती है एवं उसके पूर्व के चरित्र को गलत बताया जाता है तब ऐसा साक्ष्य उचित होगा। अर्थात विवाह संबंधित विवाद में पति या पत्नी के पूर्व के आचारण (चरित्र) को देखा जा सकता है कि उसका पहले व्यवहार कैसा था।

अगर किसी की प्रतिष्ठा को वादी (शिकायतकर्ता) द्वारा गलत चाल-चलन का बताया गया है सिविल न्यायालय ठोस साक्ष्य एवं तथ्यों के साथ इसे उचित मानेगा लेकिन अगर किसी ने अपवाह फैलाने के उद्देश्य से प्रतिवादी की प्रतिष्ठा को नुकसान पंहुचाया हैं तब प्रतिवादी इस ख्याति (प्रतिष्ठा) की नुकसानी की रकम प्राप्त करने का हकदार होगा। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com

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