कोर्ट, क्या अपराध की FIR से पहले इन्वेस्टिगेशन के आदेश दे सकता है- CrPC section 200

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 190 में हमने बताया था कि कोई भी मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी अपराध का संज्ञान स्वयं अथवा परिवादी की शिकायत पर ले सकता है, लेकिन क्या मजिस्ट्रेट सिर्फ एक सादे आवेदन पर ही मामले का संज्ञान लेगा या वह अपराध का संज्ञान से पहले शिकायतकर्ता को न्यायालय बुलाएगा जानिए।

दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 200 की परिभाषा:-

किसी भी शिकायत का संज्ञान लेने से पहले मजिस्ट्रेट शिकायतकर्ता की एवं यदि कोई गवाह उपस्थित है तो उनकी शपथ पत्र पर परीक्षा करेगा एवं ऐसी परीक्षा का सारांश लेखबद्ध किया जाएगा, एवं शिकायतकर्ता (परिवादी) एवं साक्षियों द्वारा तथा मजिस्ट्रेट द्वारा भी हस्ताक्षर किया जाएगा।

मजिस्ट्रेट द्वारा परिवादी एवं साक्षियों की परीक्षा कब नहीं करेगा

1. जब परिवाद किसी पदीय कार्य करने वाले लोक-सेवक द्वारा न्यायालय में दायर किया गया हो।
2. दण्ड प्रक्रिया संहिता,192 के अंतर्गत परिवाद अन्य मजिस्ट्रेट द्वारा सौंपा गया हो तब।

मोना पावर बनाम उच्च न्यायालय, इलाहाबाद द्वारा रजिस्ट्रार एवं अन्य

उक्त मामले यह अभिनिर्धारित किया कि जब कभी कोई परिवाद मजिस्ट्रेट के समक्ष दाखिल की जाती हैं कि किसी संज्ञेय अपराध के बारे में प्रथम सूचना रिपोर्ट पुलिस द्वारा पंजीकृत नहीं की गयी है तो ऐसी दशा में मजिस्ट्रेट को यह विवेकाधीन शक्ति है कि चाहे वह दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) अर्थात मजिस्ट्रेट मामले के संज्ञान के पूर्व पुलिस द्वारा अन्वेषण का आदेश देता है और उस पर रिपोर्ट प्राप्त करता है, अथवा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 200 के अधीन वह स्वयं उसका परीक्षण करे। मजिस्ट्रेट द्वारा इस प्रकार अपने विवेक के प्रयोग करने में मात्र इस कारण किसी प्रकार का हस्तक्षेप उचित नहीं होगा कि इस सम्बंध में दूसरा दृष्टिकोण भी सम्भव है।  :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com

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