मध्यप्रदेश उपचुनाव के सबक- जानिए जनता का मूड कैसे बदल रहा है- EDITORIAL

मध्यप्रदेश उपचुनाव के नतीजे कई नए सबक देकर जा रहे है। एक तरफ जनता का बदलता हुआ मूड बता रहे हैं तो दूसरी तरफ दिग्गज नेताओं को उनके दायरे भी समझा रहे हैं। आगामी विधानसभा चुनाव के लिए उपचुनाव के नतीजों का अध्ययन निश्चित रूप से लाभदायक होगा और किसी भी प्रकार की गलतफहमी बड़े नुकसान का कारण बन सकती है। 

जनता अब अनुकंपा वोटिंग नहीं करती

उपचुनाव के नतीजों का सबसे पहला सबक तो यह है कि जनता अब विधायक और सांसद जैसे पदों पर अनुकंपा वोटिंग नहीं करती। पृथ्वीपुर में कमलनाथ ने स्वर्गीय विजेंद्र सिंह राठौर के पुत्र जितेंद्र सिंह राठौर को टिकट दिया था। यह सीट कांग्रेस का गढ़ है। बावजूद इसके कांग्रेस पार्टी को 15,000 से ज्यादा वोटों से पराजित होना पड़ा। दूसरी तरफ खंडवा लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने इस प्रकार की गलती नहीं की। स्वर्गीय नंदकुमार सिंह चौहान को श्रद्धांजलि दी गई। उनके सपनों को पूरा करने का वचन दिया गया लेकिन उनके बेटे हर्षवर्धन सिंह चौहान को टिकट नहीं दिया गया। एक योग्य प्रत्याशी ज्ञानेश्वर पाटिल को उतारा गया और कांग्रेस पार्टी के माहौल में रंग चुकी खंडवा लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी की विजय हुई।

स्थानीय नेता महत्वपूर्ण होता है, हमेशा सही फीडबैक लेना चाहिए 

अलीराजपुर की जोबट विधानसभा सीट के नतीजे यह बताते हैं कि स्थानीय नेता काफी महत्वपूर्ण होता है। कांग्रेस पार्टी के लिए कमलनाथ बड़े नेता हो सकते हैं लेकिन जोबट विधानसभा सीट की जनता के लिए कमलनाथ का कोई महत्व नहीं था। गलत फीडबैक के कारण गलत डिसीजन होते हैं। बड़े नेताओं को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि फीडबैक सही आए, फिर चाहे वह मनमाफिक हो या ना हो। जी हुजूरी करने वाले, कभी सही फीडबैक नहीं देते। कमलनाथ जैसे नेताओं को यह बात ठीक प्रकार से समझना चाहिए। सुलोचना रावत कांग्रेस पार्टी से भी विधायक थी और पार्टी बदलने के बाद भी चुनाव जीत गई। 

अति आत्मविश्वास हमेशा हार का कारण होता है

सतना जिले की रैगांव विधानसभा सीट पर भी बिल्कुल यही सबक सामने आया है। सीएम शिवराज सिंह चौहान ने स्थानीय नेताओं को महत्व नहीं दिया। उन्हें खुद पर विश्वास था कि ताबड़तोड़ चुनावी सभाएं करेंगे और वोट भाजपा की झोली में जाकर गिरेंगे। सत्ता का लाभ भी मिलेगा। यहां भी फीडबैक देने वाले चापलूस किस्म के लोग रहे होंगे, अपना नुकसान नहीं चाहते थे इसलिए वही बताया जो मुख्यमंत्री सुनना चाहते थे। नतीजा शिवराज सिंह चौहान के दामन पर दाग लग गया। बात यह नहीं है कि 4 में से 1 सीट हार गए, चिंता का विषय है कि 1993 से लगातार भाजपा का गढ़ रही सीट पर पराजय हो गई।

अपने नेता और हाईकमान की स्थिति पर नजर रखनी चाहिए 

खंडवा लोकसभा का उपचुनाव यह सबक भी देता है कि स्थानीय नेताओं को अपने बड़े नेता और हाईकमान की स्थिति पर नजर रखनी चाहिए। अरुण यादव जैसे नेता बस यही बड़ी गलती कर गए थे। उन्होंने ना तो कांग्रेस पार्टी में राहुल गांधी की स्थिति पर ध्यान दिया और ना ही मध्यप्रदेश में कमलनाथ की पॉलिसी को समझने की कोशिश की। चुनाव की तैयारियों में जुटे रहे। अंत में टिकट नहीं मिला और मजाक का पात्र बन गए। अरुण यादव भले ही खुद को चुनावी शहीद बताने की कोशिश करते रहे परंतु कड़वा सच तो यह है कि अरुण यादव के पास परफेक्ट एनालिसिस नहीं था। ✒ उपदेश अवस्थी

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