जबलपुर। मध्यप्रदेश माइनर मिनरल एक्ट में पिछले दिनों किए गए संशोधन के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। आरोप लगाया गया है कि यह संशोधन संविधान की मंशा के अनुसार नहीं बल्कि भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए किया गया है। हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश राज्य सरकार को नोटिस जारी कर के जवाब मांगा है।
याचिकाकर्ता ने कहा है मध्य प्रदेश सरकार ने 22 जनवरी 2021 को गौण खनिज नियम 1996 में संशोधन किया है। इस संशोधन के मुताबिक मध्यप्रदेश में खनिजों के उत्खनन पट्टे को मंजूरी देने से पहले विभागीय मंत्री की अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है। सरकार ने यह संशोधन अपने मंत्रियों को लाभ पहुंचाने के लिए किया है क्योंकि बिना मंत्री की अनुमति के खनिजों के उत्खनन के लिए मंजूरी नहीं दी जा सकेगी। ऐसे में मंत्री अपने लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए इस नियम का गलत इस्तेमाल करेंगे। साथ ही मध्य प्रदेश में मंत्री इस नियम का इस्तेमाल कर भ्रष्टाचार को अंजाम देंगे।
मध्य प्रदेश गौण खनिज नियम 1996 में संशोधन पर हाई कोर्ट का नोटिस
हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि इस संशोधन को रद्द किया जाना चाहिए ताकि खनिजों के उत्खनन लीज में पारदर्शिता आ सके। याचिका में उठाए गए तर्कों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है। सरकार को 3 हफ्ते में जवाब देना है।
मंत्री अनुमति क्यों नहीं दे सकता, क्या बुराई है
किसी भी काम को शुरू करने के लिए विशेषज्ञों की अनुमति या फिर NOC जरूरी होती है। पर्यावरण व्यवहार अपने नजरिए से और वन विभाग अपने नजरिए से मामले को देखते हैं। किसी भी प्रकार की अनुमति पर हस्ताक्षर करने वाला हमेशा किसी विषय का विश्लेषण किया होता है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि कोई नियमानुसार अनुमति देने से इंकार कर दे तो उसकी शिकायत विभागीय मंत्री से की जा सकती है। यदि विभागीय मंत्री के कार्यालय से गड़बड़ी होगी तो फिर इसकी शिकायत कहां करेंगे। मंत्री परिषद नियमों को बनाने और नियमानुसार व्यवस्था को संचालित करने वाले अधिकारियों पर नियंत्रण रखने के लिए होता है। किसी सांसद को कलेक्टर का प्रभार नहीं दिया जा सकता।