पेट्रोल : सरकार जनता के हित में, अपना कर कम करे - Pratidin

भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें आसमान छूने को आमादा हैं| तेल की कीमत के गणित को समझने के लिए कच्चे तेल के पेट्रोल और डीजल में तब्दील होने की पूरी कहानी को समझनी होगी. भारत कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयातक है| भारत में लगभग ८० प्रतिशत कच्चे तेल का आयात किया जाता है, जबकि २० प्रतिशत कच्चे तेल का उत्पादन देश में किया जाता है| कच्चे तेल का उत्पादन ऑयल इंडिया, ओएनजीसी, रिलांयस इंडस्ट्री, केयर्न इंडिया आदि कंपनियां करती हैं| राजस्थान के श्रीगंगानगर में पेट्रोल की कीमत ३ दिन पहले रुपये पर पहुंच ही चुकी है,|मध्यप्रदेश में पेट्रोल की सबसे अधिक कीमत है| मुंबई में भी पेट्रोल की कीमत ९५.७५ रुपये प्रति लीटर हो चुकी है| फरवरी में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में १० बार बढ़ोतरी हो चुकी है, जबकि बीते ४७ दिनों में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में २० बार बढ़ोतरी हो चुकी है| अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी कच्चे तेल की कीमत १३ महीनों में सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गयी है| वैसे वर्ष २०२१ में कच्चे तेल की कीमत में २१ प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.

वैश्विक स्तर पर आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि होने से ईंधन की मांग बढ़ रही है, तो दूसरी तरफ ओपेक और सहयोगी देशों द्वारा कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती करने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक बैरल की कीमत ६३.८५ डॉलर के स्तर पर पहुंच गयी है| अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में बढ़ोतरी की संभावना बनी हुई है| हालांकि, भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमत में बढ़ोतरी का कारण केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा बहुत ज्यादा उत्पाद कर एवं वैट आरोपित करना है|

तेल आयात करनेवाली कंपनियों को ओएमसी यानी ऑयल मार्केटिंग कंपनियां कहते हैं|इसमें इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड, भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड प्रमुख हैं| कच्चे तेल का ९५ प्रतिशत आयात इन्हीं तीन कंपनियों द्वारा किया जाता है| शेष पांच प्रतिशत का आयात रिलायंस, एस्सार आदि कंपनियां करती हैं| कच्चे तेल को आयात करने के बाद उसे रिफाइनरी भेजा जाता है| जहां से पेट्रोल और डीजल को तेल कंपनियों को भेजा जाता है, जिस पर तेल कंपनियां अपना मुनाफा जोड़ कर उसे पेट्रोल पंप के डीलरों को भेजती हैं|

डीलर उस पर अपना कमीशन जोड़ता है, जिसका निर्धारण भी तेल कंपनियां करती हैं. उसके बाद केंद्र और राज्य सरकार उस पर कर आरोपित करती हैं|१६ फरवरी, २०२१ को दिल्ली में पेट्रोल की आधार कीमत ३१.८२ रुपये थी. इसमें किराया की लागत ०.२८ पैसे, उत्पाद कर ३२.९० रुपये, डीलर कमीशन ३.६८ रुपये और वैट २०.६१ रुपये जोड़ा गया, जिससे एक लीटर पेट्रोल की कीमत ८९.२८ रुपये हो गयी. इस उदाहरण से साफ है कि उपभोक्ताओं को महंगे दर पर पेट्रोल या डीजल मिलने के मूल में सरकार द्वारा आरोपित कर है|

नई व्यवस्था के तहत वर्तमान में पेट्रोल एवं डीजल के खुदरा बिक्री मूल्य का निर्धारण रोज किया जाता है.|सरकारी तेल विपणन कंपनियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों की हर पखवाड़े यानी एक और १६ तारीख को समीक्षा करती हैं| हालांकि, रोज सुबह छह बजे से पेट्रोल एवं डीजल की नयी कीमत लागू होती हैं| वैसे यह प्रक्रिया विकसित देशों अमेरिका, जापान आदि में भी लागू हैं|

वैश्विक बाजार में कच्चे तेल के लेन-देन में खरीदार, बेचने वाले से निश्चित तेल की मात्रा पूर्व निर्धारित कीमतों पर किसी विशेष स्थान पर लेने के लिए सहमत होता है. ऐसे सौदे नियंत्रित एक्सचेंजों की मदद से संपन्न किये जाते हैं. कच्चे तेल की न्यूनतम खरीदारी 1000 बैरल की होती है. एक बैरल में करीब 162 लीटर कच्चा तेल होता है. चूंकि, कच्चे तेल की कई किस्में व श्रेणियां होती हैं, इसलिए, खरीदार एवं विक्रेताओं को कच्चे तेल का एक बेंचमार्क बनाना होता है|

ज्ञात तथ्य के अनुसार 'ब्रेंट ब्लेंड' कच्चे तेल का सबसे प्रचलित वैश्विक मानदंड है| इंटरनेशनल पेट्रोलियम एक्सचेंज के अनुसार दुनिया में दो तिहाई कच्चे तेल की कीमतें 'ब्रेंट ब्लेंड' के आधार पर तय की जाती हैं| अमेरिका ने अपना अलग मानदंड बना रखा है, जिसका नाम है 'वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट' है|

यह भी तथ्य है एक कच्चे तेल के आयात से चालू खाते के घाटे में बढ़ोतरी होती है. आम तौर पर हर साल कच्चे तेल की कीमत में एक डॉलर की बढ़ोतरी से लगभग 1.6 बिलियन डॉलर की वृद्धि होती है| कीमतों में वृद्धि मुद्रास्फीति को बढ़ा सकती है, जिससे भारतीय रिजर्व बैंक को नीतिगत दरों में कटौती करने में परेशानी हो सकती है| अगर सरकारें आरोपित करों में कटौती करेंगी तो आमलोगों को जरूर राहत मिलेगी|

पेट्रोल एवं डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी से भारतीय तेल और गैस कंपनियों को ज्यादा लाभ हो सकता है और खाड़ी देशों में रहने वाले प्रवासी भारतीय ज्यादा धनराशि अपने गांव-घर भेज सकते हैं. बहरहाल, सरकारें उत्पाद कर या वैट कम करने के मूड में नहीं हैं| उन्हें अपने राजस्व में कमी आने का डर है. हर राज्य में अलग-अलग दरों के वैट होने से पेट्रोल और डीजल की कीमतें राज्यों में अलग-अलग होती हैं|जीएसटी में शामिल करने से कीमतों में एकरूपता आ सकती है. पेट्रोल और डीजल की कीमत को कम करना पूरी तरह से केंद्र, राज्य सरकार, विपणन कंपनियों, डीलर आदि के हाथों में है, लेकिन कोई अपने हिस्से की कमाई को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है| ऐसे में आमजन को कोई भी राहत मिलना मुश्किल प्रतीत हो रहा है|
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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