एक बार एक चोर ने गुरु से नाम ले लिया, और बोला गुरु जी चोरी तो मेरा काम है ये तो नहीं छूटेगी मेरे से..
अब गुरु जी बोले ठीक है मैं तुझे एक दूसरा काम देता हुँ, वो निभा लेना...
बोले पराई इस्त्री को माता बहन समझना..
चोर बोला ठीक है जी ये मैं निभा लूंगा।
एक राजा के कोई संतान नहीं थी तो उसने अपनी रानी को दुहागण कर रखा था
10-12 साल से बगल मे ही एक घर दे रखा उसमे रहती और साथ ही सिपाहियों को निगरानी रखने के लिए बोल दिया।
उसी चोर का उस रानी के घर मे चोरी के लिए जाना हुआ.. रानी ने देखा के चोर आया है।
उधर सिपाहियों ने भी देख लिया के कोई आदमी गया है रानी के पास...
राजा को बताया राजा बोला मैं छुप-छुप के देखूंगा... अब राजा छुप छुप के देखने लगा।
रानी बोली चोर को कि तुम किस पे आये हो..
चोर बोला ऊंट पे..
रानी बोली की तुम्हारे पास जितने भी ऊंट हैं मैं सबको सोने चांदी से भरवां दूंगी बस मेरी इच्छा पुरी कर दो।
चोर को अपने गुरु का प्रण याद आ गया.. बोला नहीं जी.. आप तो मेरी माता हो..
जो पुत्र के लायक वाली इच्छा हो तो बताओ और दूसरी इच्छा मेरे बस की नहीं है।
राजा ने सोचा वाह चोर होके इतना ईमानदार...
राजा ने उसको पकड़ लिया और महल ले गया.. बोला मैं तेरी ईमानदारी से खुश हुँ तू वर मांग..
चोर बोला जी आप दोगे पक्का वादा करो..
राजा बोला हाँ मांग..
चोर बोला मेरी मां को जिसको आपने दुहागण कर रखा है उसको फिर से सुहागन कर दो..
राजा बड़ा खुश हुआ उसने रानी को बुलाया.. और बोला रानी मैंने तुझे भी बड़ा दुख दिया है तू भी मांग ले कुछ भी आज..
रानी बोली के पक्का वादा करो दोगे और मोहर मार के लिख के दो के जो मांगूंगी वो दोगे।
राजा ने लिख के मोहर मार दी।
रानी बोली राजा हमारे कोई औलाद नहीं है इस चोर को ही अपना बेटा मान लो और राजा बना दो।