मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के अस्तित्व पर खतरा अंदरूनी विवाद से - Khula Khat

"मप्र तृतीय वर्ग शास कर्म संघ" मप्र सोसायटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम-1973 के अधीन एक पंजीकृत व शासन द्वारा पत्राचार हेतु मान्य संस्था है। इसका पंजीयन दिनांक 05/07/1968 को क्रमांक-1079 पर किया गया था। संस्था का गौरवशाली इतिहास रहा है। युग-पुरुष स्वर्गीय श्री नारायणप्रसाद शर्मा निर्विवाद प्रांताध्यक्ष रहे है। इनके कार्यकाल में एतिहासिक आंदोलनों के माध्यम से प्रदेश के सभी विभाग के लाखों कर्मचारियों का जीवन बेहतर हुआ। 

संगठन में पहली बार गुटबाजी कब आई

श्री शर्मा जी के सेवानिवृत्त होने पर संस्था के विधिवत प्रांतीय अध्यक्ष स्वर्गीय श्री सत्यनारायण तिवारी निर्वाचित हुए। श्री तिवारी जी के कार्यकाल में असंतुष्ट गुट अस्तित्व में आया जो त्रिपाठी गुट के नाम से जाना गया। श्री तिवारी जी ने मप्र तृतीय वर्ग शास कर्म संघ के लगभग तीन लाख सत्तर हजार सदस्यों की सूची व वैधानिक दस्तावेज बोरों में भरकर माननीय रजिस्ट्रार फर्म्स एवं संस्थाएं भोपाल के समक्ष प्रस्तुत कर श्री त्रिपाठी का अस्तित्व मिटा कर संस्था को गुटबाजी से उबार लिया था। 

आंदोलन में बर्खास्त कर्मचारियों को संगठन ने 51 रुपए ज्यादा वेतन दिया था

कर्मचारियों के हितों में प्रभावी प्रांतव्यापी आंदोलन कर "चौधरी वेतनमान, वोरा वेतनमान, केंद्र के समक्ष वेतनमान व केंद्रीय पांचवां वेतनमान के साथ प्रथम बार गृह भाड़ा भत्ता भी प्राप्त हुआ। यह समय कर्मचारियों के लिए स्वर्णिमकाल कहा जाता है। आंदोलन के कारण प्रदेश के सत्रह कर्मचारियों को बर्खास्त किया गया था। श्री तिवारी जी ने प्रदेश के कर्मचारियों के सहयोग से उत्पीडन फंड के माध्यम से सभी बर्खास्त साथियों को प्रतिमाह के अंतिम दिवस वेतन के साथ 51/- रूपये अधिक दिये। माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दया याचिका दायर कर सभी बर्खास्त साथियों को बहाल करवाया गया था। 

सरकार ने कर्मचारियों को जाति, विभाग और संवर्ग के आधार पर बांट दिया

कर्मचारियों की एक जुटता से परेशान सरकार ने कर्मचारियों के बीच विभागवार, संवर्गवार, जाति वर्ग वाले संगठनों को मान्यता देकर बंटवारा किया है। श्री तिवारी जी ने प्रदेश बंटवारे के समय छत्तीसगढ़ प्रांतीय इकाई को अपने प्रांतीय अंशदान से सम्मानजनक निधि सौंप कर बड़े भाई का फर्ज निभाया था। अपने सेवानिवृत्ति के अंतिम माह में स्वर्गीय श्री महेन्द्र शर्मा को प्रांताध्यक्ष बनाकर शांतिपूर्ण तरीके से पद हस्तांतरित किया था। 

अरूण द्विवेदी को हाईकोर्ट ने वैधानिक प्रांतीय अध्यक्ष मान्य किया था

श्री महेन्द्र जी शर्मा ने सेवानिवृत्ति पर पद छोड़ने के बजाय ग्वालियर में महासमिति की बैठक बुलाकर असंवैधानिक तरीके से आजीवन प्रांताध्यक्ष बने रहने का प्रस्ताव पारित करवा लिया था, जो अमान्य हुआ। इसके बाद श्री रामसिंह रघुवंशी जी व बाद में श्री एल एन कैलाशिया प्रांतीय अध्यक्ष बने इनके चलते संगठन में पुनः विवाद की स्थिति निर्मित हो गई। मामला माननीय उच्च न्यायालय पहुँच गया। यहां से श्री अरूण द्विवेदी जी को वैधानिक प्रांतीय अध्यक्ष मान्य किया गया। 

गुटबाजी: एक साथ कई कर्मचारी नेताओं ने खुद को प्रांताध्यक्ष घोषित कर दिया

श्री द्विवेदी जी का कार्यकाल संगठन के इतिहास में सबसे विवादित कार्यकाल के रूप में दर्ज हो गया। जुलाई 2015 में इनके द्वारा कार्यकारिणी भंग करते ही श्री ओपी कटियार ने संस्था के प्रांताध्यक्ष का दावा ठोक दिया। इसके बाद डाॅ सुरेश गर्ग ने भी अपने को प्रांताध्यक्ष घोषित कर दिया। विवाद के चलते श्री अरूण द्विवेदी जी ने श्री प्रमोद तिवारी जी को सभी अधिकारों सहित कार्यकारी प्रांतीय अध्यक्ष मनोनीत किया था। इस बीच में कमजोरियों का लाभ उठाकर श्री विजय जी मिश्रा ने अपने स्तर से निर्वाचन करवाकर प्रांतीय अध्यक्ष पद पर काबिज हो गये। 

विवाद के निराकरण के लिए निर्वाचन

विवाद निराकरण हेतु पांच सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया था जिसमें श्री अरूण द्विवेदी, श्री ओपी कटियार, श्री सुरेश गर्ग, श्री लक्ष्मीनारायण शर्मा व विजय मिश्रा को विवाद निराकरण का जिम्मा सौंपा था। बहुमत से विवाद निवारण कमेटी के तीन सदस्यों (श्री अरूण जी द्विवेदी, श्री सुरेश जी गर्ग व श्री लक्ष्मीनारायण जी शर्मा) ने श्री प्रमोद जी तिवारी को प्रांताध्यक्ष मनोनीत किया है। श्री ओपी कटियार ने पूर्व प्रांतीय अध्यक्ष श्री एलएन कैलाशिया जी को निर्वाचन अधिकारी बनाकर अपने निर्वाचन की प्रक्रिया शुरू की। 

कुल मिलाकर मप्र तृतीय वर्ग शास कर्म संघ के दावेदारों में अपने को वैधानिक प्रांतीय अध्यक्ष मानने वाले श्री प्रमोद जी तिवारी, श्री विजय जी मिश्रा, श्री सुरेश जी गर्ग व श्री ओपी कटियार प्रबल दावा ठोक रहे है। संगठन की दुर्दशा के लिए अपने ही जिम्मेदार हैं जो मानते नहीं! विगत 31 दिसम्बर 2020 को माननीय असि• रजिस्ट्रार फर्म्स एवं संस्थाएं भोपाल ने संस्था के पंजीयन को निरस्तीकरण हेतु पत्र जारी कर 30 दिनों में अध्यक्ष एवं सचिव से अपना पक्ष रखने का नोटिस थमाया है। प्रदेश के कर्मचारियों की निगाह टिकी हुई है की एतिहासिक संस्था अपना वजूद कैसे कायम रख पायेगी कौन होगा तारणहार?
लेखक कन्हैयालाल लक्षकार मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के प्रांतीय उपाध्यक्ष हैं। 

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