प्रधानमंत्री की सीमाएं निर्धारित कर गया था जबलपुर का दंगा - HISTORY OF JABALPUR

जबलपुर
। भारत की आजादी के बाद जबलपुर में हुआ एक दंगा भारत की राजनीति में दर्ज हो गया। आज भी उसका उदाहरण दिया जाता है। दरअसल इस दंगे ने प्रधानमंत्री की सीमाएं निर्धारित कर दी थी। मध्य प्रदेश के राज्यपाल ने भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के बयान पर कड़ी आपत्ति जताई थी।

मध्य प्रदेश के राजभवन की वेबसाइट के मुताबिक राज्यपाल हरि विनायक पाटस्कर के कार्यकाल के दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जबलपुर में हुए दंगों के कारण तत्कालीन मुख्यमंत्री केएन काटजू की सार्वजनिक तौर पर आलोचना की थी। इस आलोचना से नाराज राज्यपाल श्री पाटस्कर ने प्रधानमंत्री नेहरू को लिखा कि कानून व्यवस्था राज्य सूची का विषय है, इसलिए केंद्र सरकार को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि संघीय ढांचे के अंतर्गत प्रधानमंत्री राज्य के मुख्यमंत्री को इस तरह दोषी नहीं ठहरा सकते। यह प्रसंग भारत की राजनीति के इतिहास में दर्ज हो गया। इसलिए भी क्योंकि राज्यपाल को, राज्य में केंद्र सरकार का प्रतिनिधि माना जाता है।

जबलपुर में 6 बार आए थे पंडित जवाहरलाल नेहरू

पहली बार-1933 में पहली बार अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की गोष्ठी का उद्घाटन करने। 
दूसरी बार-सेठ गोविंददास और द्वारका प्रसाद मिश्र में असेंबली की टिकटों को लेकर विवाद चल रहा था। जिसका पता नेहरूजी को चला और वे सहजपुर लौटते समय 1937 दोनों के बीच सुलह कराने आए। 
तीसरी बार- 5 मार्च 1939 को त्रिपुरी कांग्रेेस अधिवेशन में आए थे। इस अधिवेशन में सुभाषच्रद बोस जीते गए थे और गांधीजी भी आगमन हुआ था। इस दौरान नेहरूजी ने भी अपनी उपस्थिति जबलपुर शहर में दर्ज कराई थी। 
चौथी बार- 26 अप्रैल 1958 में शहीद स्मारक का उद्घाटन करने आए थे। शहीद स्मारक शहर का सबसे जाना-पहचाना स्थान हैं जहां कई दिग्गजों का साल दर साल आगमन हुआ। ये जबलपुर के ऐतिहासिक स्थानों में से एक है। 
पांचवी बार- 1959 में आए कमला नेहरू नगर का शिलान्यास करने आए। 
छठवीं बार- 1961 में अंतिम बार नेहरूजी का जबलपुर आगमन हुआ। जब वे रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय भवन का उद्धाटन करने यहां पधारे थे। 
1962 में चीन युद्ध के बाद पराजय के सदमे में पंडित जवाहरलाल नेहरू की तबीयत खराब हुई और 1964 में उनका निधन हो गया था।
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