हे ! भगवान, भारत पर दया करना - Pratidin

देश विदेश खास और पर यूरोप के अनेक देशों में कोरोना वायरस के संक्रमण की दूसरी लहर का के खतरे की खबरें आ रही है| ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और स्पेन के विभिन्न क्षेत्रों में फिर से कड़े उपाय किये जा रहे हैं| कुछ स्थानों पर पारिवारिक बैठकों और आयोजनों से संक्रमण का प्रसार होने से चिंता बढ़ गयी है| अब तक दुनियाभर में लगभग साढ़े तीन करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं तथा 10 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई है| यूरोप में संक्रमितों की कुल संख्या 53 लाख से अधिक है और सवा दो लाख से अधिक जानें जा चुकी हैं| आगे क्या होगा ? सारे विश्व के लिए चिंता का विषय है |सच में यह विश्व स्वास्थ्य सन्गठन के लिए अग्नि परीक्षा है |

कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए, अस्पतालों को मुस्तैद रखने के लिए भारत समेत समूचे विश्व में अन्य बीमारियों के इलाज और ऑपरेशन को कुछ महीनों तक रोक दिया गया था| लॉकडाउन की वजह से भी चिकित्सा सुविधाएं बाधित हुई थीं| बड़ी संख्या में क्लीनिक और छोटे अस्पतालों ने तो अपनी सेवाएं ही बंद कर दी थीं| आकलनों की मानें, तो दुनियाभर में 2.85 करोड़ ऑपरेशनों का समय बदला गया |इसे देखते हुए कहा जा सकता है कि करोड़ों ऐसे मरीज भी होंगे, जो अपनी गंभीर बीमारियों की नियमित जांच नहीं करा सके होंगे तथा उन्हें समुचित देखभाल नहीं मिली होगी| कई मामले तो ऐसे भी सामने आये हैं, जिनमें हड्डी टूटने या नस खिसकने जैसी सामान्य समस्याएं समय पर उपचार नहीं मिलने के कारण जटिल हो गयीं| भारत में अगली परिस्थिति और जटिल हो सकती हैं |

इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि गंभीर और जानलेवा बीमारियों से ग्रस्त लोगों ने कितनी तकलीफें उठायी होंगी. इस स्थिति में बहुत सी मौतें ऐसी हुई हैं| जिन्हें टाला जा सकता था| कोरोना संक्रमण से पैदा हुई स्थितियों ने स्वास्थ्य सेवा की संरचना और प्रणाली को बेहतर बनाने का अवसर दिया है| बीते महीनों के अनुभव से हम अस्पतालों को इस तरह से प्रबंधित करने का प्रयास कर सकते हैं कि महामारियों जैसी आपातकालीन परिस्थितियों में व्यवस्था सुचारू ढंग से संचालित की जा सके|

हमारे देश भारत में हाल के दशकों में कैंसर का प्रकोप तेजी से बढ़ा है| इसकी रोकथाम के लिए नियमित जांच और दवाइयों की उपलब्धता बहुत जरूरी है| इसमें रेडियोथेरेपी की बड़ी भूमिका होती है| यदि कैंसर के मरीज को सेवाएं मिलने में या उनका ऑपरेशन होने में देरी हो, तो बचने की संभावना क्षीण हो सकती है| यही हाल कुछ अन्य रोगों के साथ है|ऐसे में जरूरी है, संक्रामक बीमारियों के इलाज के लिए अस्पतालों में अलग से व्यवस्था की जानी चाहिए|

इसी तरह से अन्य रोगों, खासकर कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों, के लिए भी ऐसी प्रणाली बनायी जानी चाहिए कि संकट के समय मरीजों को मुश्किल न हो| लॉकडाउन जैसे उपायों में अस्पतालों के लिए विशेष दिशा-निर्देश निर्धारित होने चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अन्य रोगों के इलाज और जांच में बाधा न हो| कोरोना काल का एक अनुभव यह भी है कि लॉकडाउन और अन्य नियमों की वजह से बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल और उनके उपचार में बड़ी कठिनाइयां आयी हैं| इसके आधार पर भविष्य में समुचित पहल की जानी चाहिए|

मानसिक स्वास्थ्य के मोर्चे पर भी भारत के लिए बड़ी चुनौतियां हैं| कोरोना संकट से इनमें बढ़ोतरी ही हुई है| अवसाद और चिंता के गहरा होने तथा आत्महत्या की घटनाओं के बढ़ने से समझा जा सकता है कि मानसिक स्वास्थ्य को महामारी के दौर में किनारे करना नुकसानदेह ही है, बहरहाल, अब स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता सामान्य होने लगी है तथा मरीजों को इलाज मिलने लगा है| अब कोरोना काल की सीख के अनुरूप चिकित्सा व्यवस्था में सुधार की जरूरत है|
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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