राजनीति : नैतिक – अनैतिक सोशल मीडिया ?

सोशल मीडिया और उसमें भारत राजनीति का रंग विदेश में भी दिखने लगा है | फेसबुक और भारतीय राजनीति के गठ्बन्धन को लेकर अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जनरल में छपी एक खोज खबर ने भारत में कई समीकरण बदल दिए हैं। समाचार एजेंसी रायटर्स का दावा है कि उसके पास वह पत्र मौजूद है, जिसमें खुलासा किया गया है कि भारत में कम्पनी की नीति निदेशक आंखी दास ने भारतीय जनता पार्टी से जुड़े लोगों की साम्प्रदायिक-भड़काऊ सामग्री हटाने से रोका। इस पत्र के लेखक फेसबुक के ११ पूर्व कर्मचारी हैं | पत्र में यह भी कहा गया है कि ऐसी पोस्ट डालने वालों पर कोई कार्रवाई से भी आँखी दास ने मना किया। वर्तमान में भारत विश्व में फेसबुक का सबसे बड़ा उपभोक्ता है जहां उसके ३२  करोड़ से ज्यादा उपयोगकर्ता हैं। इस खबर ने देश की राजनीति की रार को और बढ़ा दिया है। विश्व में आज फेसबुक को  २०० करोड़ से अधिक लोग जुड़े है और यह जुड़ाव  व्यसन की तरह बढ़ता ही जा रहा है। अब जब यह संख्या २०० करोड़ पर पहुंच गई है, उनमें से ६५  प्रतिशत लोग इसका प्रतिदिन इस्तेमाल कर रहे हैं।

भारत और दक्षिण एशिया में कम्पनी की नीति निर्देशक आंखीदास से उनके आचरण के लिए चौतरफा जवाब मांगे जा रहे हैं। फेसबुक के ही स्टाफ के कुछ लोगों की ओर से यह जानकारी दी गई है कि व्यावसायिक फायदे के लिए आंखीदास ने मुस्लिम विरोधी भड़काऊ पोस्ट हटाने से मना किया। इनमें सबसे प्रमुख नाम तेलंगाना के भाजपा विधायक टी. राजासिंह का है, जिनके पोस्ट फेसबुक के अपने ही नियम-कायदों के खिलाफ थे और जिनमें मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध बहुत आपत्तिजनक बातें कही गई थीं। ऐसे ही संदेश नेशन ऑफ़ इस्लाम के नेता लुइस फरक्खन और रेडियो होस्ट अलेक्स जोन्स ने भी पोस्ट किए। आपत्तिजनक होने के बावजूद आंखीदास ने न हटाने के निर्देश  दिए | भाजपा के प्रति नरमी की बात सामने आने के बाद कांग्रेस ने इस पूरे प्रकरण की जांच संयुक्त संसदीय समिति से कराने की मांग की है। दिल्ली विधानसभा की एक समिति भी दिल्ली में फरवरी महीने में हुए दंगों के दौरान व्हाट्सएप और फेसबुक द्वारा अपनाई गई भूमिका को लेकर जांच कर रही है।

वैसे विश्व में अकेले फेसबुक और व्हाट्सएप पर ही उंगलियां नहीं उठती रही हैं, गूगल भी उसमें शामिल है। इन कम्पनियों ने लाखों लोगो का डाटा व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए बेच दिया। इस डिजिटल तकनीकी को लेकर दुनियाभर में पेचीदा समस्याएं सामने आ रही हैं। भारत में भी एक फोन सेवा प्रदाता कम्पनी ऐसा कर चुकी है। बाद में वह गलती से ऐसा होना बताकर बरी हो गई। डाटा के दुरुपयोग का प्रश्न भी बड़ा होता जा रहा है। प्रायः सभी देशों में सत्ताधारी अपने राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने के लिए इस तकनीकी का बेजा इस्तेमाल करते हैं। वे इस तकनीकी की सुविधा प्रदान वाली कंपनियों से सांठगांठ करके अपनी ही जनता के साथ छल करते हैं। इसके लिए एक विश्वसनीय निगरानी तंत्र बनाए जाने की जरूरत है।

यहां विकीलीक्स के संस्थापक जूलियस असांजे की बात याद आती है “इंटरनेट मानव सभ्यता के लिए अब तक का सबसे बड़ा खतरा है।“ असांजे ने अपनी पुस्तक “सायफरपंक्स-फ्रीडम एंड फ्यूचर ऑफ इंटरनेट” में यहां तक आगाह किया है कि फेसबुक और गूगल हमारी लोकेशन, हमारे संपर्क और हमारी खुफियागिरी करने वाले अब तक के सबसे बड़े आविष्कार हैं। वाल स्ट्रीट जनरल के खुलासे के बाद भारत में फेसबुक और उसकी सहयोगी व्हाट्सएप की भूमिका के मामले को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच पैदा हुई राजनीतिक गरमागरमी को एक सामान्य घटनाक्रम के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। यह बहुत गंभीर मसला है, जिसका सीधा संबंध लोगों की वैचारिक स्वतंत्रता, उनकी सामाजिक चेतना और राजनीतिक समझ से जुड़ा हुआ है। कांग्रेस तो सीधा आरोप है कि सोशल मीडिया, फेसबुक और व्हाट्सएप पर भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कब्जा किया हुआ है।

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