विक्षिप्त, मंदबुद्धि या भ्रमित व्यक्ति को बंधक बनाना अपराध है या नहीं, यहां पढ़िए / ASK IPC

कुछ महीने पहले हमने आपको भारतीय दण्ड संहिता के अध्याय 4 के साधारण अपवाद की धारा 84 की परिभाषा बताई थी जिसमे आपको बताया था कि किसी पागल या विकृतचित व्यक्ति द्वारा किया गया कोई अपराध क्षमा योग्य होता है लेकिन पागल, मंदबुद्धि या भ्रम द्वारा कोई व्यक्ति अपराध करता है तो उसको अपराध करने से रोकना या उतने ही बल का प्रयोग करना जितना पागल, मंदबुद्धि, विकृतचित कर रहा है, निजी सुरक्षा का अधिकार है जानिए।

भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 98 की परिभाषा :-

अगर कोई पागल, विकृतचित, मंदबुद्धि या भ्रमित होकर कोई व्यक्ति किसी पर हमला करता है,अन्य व्यक्ति या स्वंय वह व्यक्ति जिस हमला किया जा रहा है,अपने आप को बचाव के लिए या दूसरों के बचाव या सुरक्षा के लिए उतने ही बल का प्रयोग कर सकता है जितना विकृतचित व्यक्ति कर रहा है। यह अधिकार भारतीय दण्ड संहिता की धारा 98 के अंतर्गत निजी सुरक्षा का अधिकार होगा।

नोट:- इस धारा का मुख्य उद्देश्य यह है कि अक्षम, विकृत-चित, मंदबुद्धि या भ्रम के अधीन व्यक्तियो के कृत्यों को अंकुशित किया जा सके ताकि वे समाज में खुलकर अपराध करने की ओर प्रवृत्त न हो। 
बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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