मध्य प्रदेश के शिक्षाकर्मियों को पुरानी पेंशन क्यों नहीं जबकि हिमाचल में कोर्ट के आदेश हो गए / EMPLOYEE and LAW

अमित चतुर्वेदी। हिमाचल प्रदेश में विद्या उपासक योजना के अंतर्गत सन 2000 में नियुक्त किए गए एवं सन 2007 में नियमित/ संविलियन प्राप्त प्राइमरी स्कूल शिक्षक अंशदायी पेंशन योजना के स्थान पर, पुरानी पेंशन योजना (ओल्ड पेंशन स्कीम) के लाभ के पात्र न्यायालय द्वारा पाए गए हैं जबकि मध्यप्रदेश में शिक्षाकर्मियों ( जो वर्तमान में प्राथमिक/ माध्यमिक शिक्षक/ उच्च माध्यमिक शिक्षक पद पर कार्यरत हैं) को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश का लाभ मिलने की गुंजाइश नहीं है। आइए जानने की कोशिश करते हैं कि हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश के क्या अंतर है:-

सबसे पहले हिमाचल प्रदेश के शिक्षकों की विधिक स्थिति देखते हैं। आखिर क्यों हिमाचल प्रदेश के शिक्षक विधिक लड़ाई जीत पाये। न्यायालय द्वारा निम्न कारणों का हवाला दिया गया था:-
1) चूंकि याचिकाकर्ता शिक्षक कठिन चयन प्रक्रिया का सामना करने के पश्चात प्राइमरी शिक्षक के रिक्त पद के विरुद्ध, विद्या उपासक योजना के अंतर्गत नियुक्त हुए थे। 
2) चूँकि, एक वर्ष के शिक्षण प्रशिक्षण के पश्चात एवं नियुक्ति आदेश की शर्तानुसार, प्राइमरी शिक्षक के रिक्त नियमित पद पर  वर्ष 2007 में संविलियन किया गया था। दूसरे शब्दों मे मर्ज किया गया था। 

3) चूँकि, पेंशन हेतु क्वालीफाइंग सेवा की गणना केंद्रीय सिविल सेवा( पेन्शन) नियम 1972, के नियम 13 के अनुसार, नियुक्ति के पश्चात, कार्यभार ग्रहण करने के दिनाँक से होती है। कर्मचारियों ने बिना किसी व्यवधान के 7 वर्ष तक निरंतर सेवा की है। उपरोक्त अवधि को व्यर्थ मानकर समाप्त नही किया जा सकता है।

4) वर्ष 2000 से 2007 की अवधि को पेंशनरी लाभ एवं वर्षिक वेतन वृद्धि हेतु, गणना में नही लिया जाना, संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 16 का अतिक्रमण है। कल्याण कारी राज्य से यह अपेक्षित नही है। अतः कर्मचारी/प्राइमरी शिक्षकों के द्वारा वर्ष 2000 से 31/10/2007 के बीच की सेवा अवधि की गणना पेंशन हेतु, केंद्रीय पेंशन नियम 1972, के अनुसार की जाएगी।

अब मध्यप्रदेश में शिक्षा कर्मी/अध्यापकों / प्राथमिक/ माध्यमिक/ उच्च शिक्षकों, की विधिक स्थिति देखते हैं:-
1) शिक्षा कर्मी पद की उत्पत्ति, शिक्षक के पद को मृत संवर्ग घोषित होने के पश्चात हुआ। शिक्षा कर्मियों की सेवाओं के विनियमित करने हेतु, पंचायत शिक्षा कर्मी नियम बनाये गए। शिक्षा कर्मी, नया संवर्ग था।
2) वर्ष 2008 में, एक नए संवर्ग अध्यापक का निर्माण किया गया। संविलियन के द्वारा शिक्षा कर्मियों को अध्यापक पद पर नियुक्ति दी गई। अध्यापक संवर्ग का निर्माण भी वर्ष 2008 में ही हुआ था।

3) वर्ष 2018 के नियुक्ति नियम भी पेंशन इत्यादि हेतु शिक्षा कर्मियों के प्रकरणों को विद्या उपासक शिक्षकों के प्रकरणों से भिन्न बनाते हैं। कारण स्पष्ट है कि, पुराने संवर्ग में संविलियन सीधे , शिक्षा कर्मियो 1998 के पेंशन दावे को पुनर्जीवित करता था। 

हिमाचल प्रदेश में विद्याउपासक योजना, के शिक्षक 2007 में पेंशन्सबल पोस्ट पर, संविलियन/ मर्ज किए गए थे,  इसलिये उनकी पूर्व सेवाएँ पेंशन हेतु गिनी गई। हिमांचल में विद्या उपासक शिक्षकों का संविलियन, उन पदों पर हुआ था , जिन पर पुरानीं पेन्शन देय थी। अतः उनकी 2007 के पूर्व की सेवायें पेंशन हेतु मानी गई। मध्यप्रदेश में शिक्षा कर्मियों की नियुक्ति नवीन संवर्गो में हुई। 
(संदर्भ: जोगा सिंह बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य।)
लेखक श्री अमित चतुर्वेदी मध्यप्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर में एडवोकेट हैं। (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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