इंदौर। इंदौर, जी हाँ मध्यप्रदेश का इंदौर और उसकी वणिक बस्ती अनूप नगर में जो घटा उससे पुलिस हैरान है। 11 लाख में पत्नी की अस्मत के सौदे के दस्तावेज उसके पास लेकर पति और पत्नी मौजूद है और किसी ने नहीं पति ने ही ३ घंटे के लिए पत्नी की अस्मत का सौदा स्टाम्प पर लिख कर किया। समाज मौन है, यह मौन स्वीकृति है या किसी भूचाल का संकेत अभी कहा नहीं जा सकता। जिस महिला के साथ यह सब बीता उसके पक्ष में खड़े होकर सोचिये क्या यही विवाह है ?
विवाह मानव समाज की अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्रथा या संस्था है। यह समाज का निर्माण करने वाली सबसे छोटी इकाई परिवार का मूल है। इसे मानव जाति के अस्तित्व को बनाए रखने का प्रधान साधन माना जाता है। इस शब्द का प्रयोग मुख्य रूप से दो अर्थों में होता है। इसका पहला अर्थ वह क्रिया, संस्कार, विधि या पद्धति है जिससे पति-पत्नी के स्थायी संबंध का निर्माण होता है।
मनुस्मृति के टीकाकार मेधातिथि के शब्दों में 'विवाह एक निश्चित पद्धति से किया जाने वाला, अनेक विधियों से संपन्न होने वाला तथा कन्या को पत्नी बनाने वाला संस्कार है।' रघुनंदन के मतानुसार 'उस विधि को विवाह कहते हैं जिससे कोई स्त्री (किसी की) पत्नी बनती है।' वैस्टरमार्क ने इसे एक या अधिक पुरुषों का एक या अधिक स्त्रियों के साथ ऐसा संबंध बताया है, जो इस संबंध को करने वाले दोनों पक्षों को तथा उनकी संतान को कुछ अधिकार एवं कर्तव्य प्रदान करता है।
कुल मिलाकर विवाह का अर्थ समाज में प्रचलित एवं स्वीकृत विधियों द्वारा स्थापित किया जाने वाला दांपत्य संबंध और पारिवारिक जीवन भी होता है। इस संबंध से पति पत्नी को अनेक प्रकार के अधिकार और कर्तव्य प्राप्त होते हैं। इससे जहाँ एक ओर समाज पति पत्नी को कामसुख के उपभोग का अधिकार देता है, वहाँ दूसरी ओर पति पत्नी तथा संतान के पालन एवं भरणपोषण के लिए बाध्य करता है। संस्कृत में 'पति' का शब्दार्थ है पालन करने वाला तथा 'भार्या' का अर्थ है भरणपोषण की जाने योग्य नारी। पति के संतान और बच्चों पर कुछ अधिकार माने जाते हैं। विवाह प्राय: समाज में नवजात प्राणियों की स्थिति का निर्धारण करता है। संपत्ति का उत्तराधिकार अधिकांश समाजों में वैध विवाहों से उत्पन्न संतान को ही दिया जाता है।
इंदौर की इस कहानी में और भी कई राज है। जिसमे एक पति, पत्नी, साहूकार, नोटरी, समाज और अब पुलिस की भूमिका भी आ गई है। विवाह के प्रकार और पद्धति जो भारत में प्रचलित है यह उस सब से इतर मामला है और उस सब के प्रतिकूल है जिसे पाणिग्रहण संस्कार कहा जाता है।
पाणिग्रहण को आप और हम विवाह के नाम से जानते हैं। शास्त्रों के अनुसार विवाह आठ प्रकार के होते हैं। ब्रह्म, दैव, आर्य, प्राजापत्य, असुर, गन्धर्व, राक्षस और पिशाच। नारद पुराण के अनुसार, सबसे श्रेष्ठ प्रकार का विवाह ब्रह्म ही माना जाता है। इसके बाद दैव विवाह और आर्य विवाह को भी बहुत उत्तम माना जाता है। प्राजापत्य, असुर, गंधर्व, राक्षस और पिशाच विवाह को बेहद अशुभ माना जाता है।
कुछ विद्वानों के अनुसार प्राजापत्य विवाह भी ठीक है।ब्रह्म, दैव, आर्य और प्राजापत्य विवाह में शुभ मुहूर्त के बीच अग्नि को साक्षी बना कर मंत्रों के उच्चारण के साथ विवाह संपन्न कराया जाता है। इस तरह के विवाह के समय नाते-रिश्तेदार उपास्थित रहते हैं। आजकल जिस तरह से लड़के-लड़की के बीच प्रेम होता है और उसके बाद प्रेम विवाह होता है, उसे गंधर्व विवाह की श्रेणी में रखा जाता है। इसे हमारे ऋषि-मुनियों ने विवाह का सर्वश्रेष्ठ तरीका क्यों नही माना, यह अचरज की बात है।
संभवत उस समय दहेज की समस्या इतनी विकराल नहीं रही होगी या फिर ज्योतिष के हिसाब से श्रेष्ठ मुहूर्त उपलब्ध नहीं होंगे।पैसा आदि लेकर या देकर विवाह करना असुर विवाह की श्रेणी में आता है। युद्ध के मैदान में विजय प्राप्त करने के बाद लड़की को घर में लाना राक्षस विवाह कहलाता है। लड़की को बहला-फुसला कर भगा ले जाना पिशाच विवाह कहलाता है। बलात्कार आदि के बाद सजा आदि से बचने के लिए विवाह करना, जैसा कि आजकल अखबारों में अक्सर पढ़ने को मिलता है, भी पिशाच विवाह की श्रेणी में आता है।
इंदौर में जो कुछ घटा उससे समाज अपरिचित नहीं है। प्रताड़ित महिला ने अपने नातेदारों और समाज में घटना, उसके परिणाम स्वरूप प्रसव, सन्तान उत्पत्ति का वर्णन और स्टाम्प पर लिखापढ़ी सब का वर्णन किया अब थाना और उसके बाद कचहरी होगी। समाज और उसके सारे संवेदनशील हिस्सों का मौन खतरनाक है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।