दुष्काल में बुढ़ापा : हमसे क्या भूल हुई, जो ये .....! / EDITORIAL by Rakesh Dubey

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कोविड-19 का दुष्काल सबसे ज्यादा कठिन समय वरिष्ठ नागरिकों के लिए लेकर आया है। इनको विकट स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।वर्तमान स्थिति में 90 प्रतिशत अंतः एवं बाह्य रोगी अस्पताल सेवाएं बंद पड़ी हैं। वरिष्ठ नागरिकों न केवल कोरोना वायरस से संक्रमित होने और इसका परिणाम जानलेवा बनने का खतरा ज्यादा है बल्कि पहले से अनेक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, मसलन हृदय रोग, मधुमेह या मोटापा इत्यादि से ग्रस्त होनेके कारण स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रतिकूलता ज्यादा है।

सच में वरिष्ठ नागरिकों को गैर-कोविड संक्रमण और गैर-छूत रोगों से भी उतना ही खतरा है, जितना कि कोरोना वायरस से। एक सर्वे के अनुसार कोरोना काल में ही लगभग लाखों लोगों में तपेदिक रोग पनप सकता है और इनमें से बड़ी संख्या में वरिष्ठ नागरिक इसकी चपेट में आ सकते हैं। हृदय, फेफड़ों, गुर्दा, दिमाग, लीवर, कैंसर या मनोरोग इत्यादि बीमारियों से ग्रस्त बड़ी उम्र के लोगों के इलाज में कोरोना काल का यह लम्बा एकांतवास ज्यादा कष्टदायक होने जा रहा है। ज्यादातर मामलों में इलाज में यह अंतराल और अधिक गंभीर स्थिति पैदा कर सकता है। गैर कोविड-१९ मरीजों के लिए अस्पताल वाले अभी भी बाह्य रोग विभाग खोलने को तैयार नहीं हैं।निजी चिकित्सक आपदा के अवसर को पूरी तरह नहीं बुरी तरह लूट रहे हैं।

सब जानते है वरिष्ठ नागरिकों में लगभग 70 प्रतिशत पहले से ही स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं झेल रहे हैं जो इस काल के दौरान और गंभीर बन गई हैं। आज सबसे ज्यादा तकलीफ यही वर्ग झेल रहा है। शारीरिक व्याधियों के अलावा वरिष्ठ नागरिकों की भावनात्मक एवं मानसिक समस्याएं जैसे कि व्यग्रता, अवसाद, उनींदापन, नींद न आना, संत्रास, गुस्सैलपन, नाउम्मीदी, आलस्य और आत्मघाती प्रवृत्ति बनना जैसी मानसिक स्थितियां बनने कोई इंकार नहीं कर सकता है। एक अध्ययन के अनुसार लगभग 65 प्रतिशत वरिष्ठ नागरिकों को शिकायत है कि लॉकडाउन की वजह से उनकी आजादी, स्वाभिमान और यहां तक कि गरिमा पर गहरा असर हुआ है क्योंकि उन्हें मूल आवश्यकताओं के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहना पड़ा है।

कहने को राष्ट्रीय तालाबंदी [लॉक डाउन ] लगभग खत्म हो चुकी है, इसके बावजूद 65 साल से ज्यादा उम्र वालों के लिए प्रतिबंध अभी भी कायम हैं , उन्हें बाहर निकलने की मनाही है। इसलिए स्वास्थ्य संबंधी या सुबह की सैर जैसी आम क्रियाओं में राहत मिलने की उम्मीद फिलहाल दिखाई नहीं दे रही है। मुंह पर मास्क का प्रयोग अनिवार्य बनाना बेशक सुरक्षा के लिहाज से जरूरी है, लेकिन जिनको पहले से ही श्वास संबंधी समस्या है, उन वरिष्ठ नागरिकों के लिए इस निर्देश ने और तंगी खड़ी कर दी है। वरिष्ठ नागरिकों को घर की चारदीवारी तक सीमित होकर रहना पड़ रहा है, ऐसे में अधिकतर टेलीविजन, कंप्यूटर या मोबाइल फोन इत्यादि चिपके रहने के अलावा कोई विकल्प नही है। लंबे समय तक इनके प्रयोग से दृष्टि में धुंधलापन, आंखों में खुजली-जलन या तीखा सिरदर्द होना आम शिकायत है। लंबे समय तक एक मुद्रा में बैठे अथवा लेटे रहने की वजह से उन्हें शरीर में कई जगह दर्द और ऐंठन का सामना करना पड़ रहा है।

क्षीण होती जा रही जीवनशक्ति, अपनों की उपेक्षा के चलते यूं भी वरिष्ठ नागरिक अपने ही घर में हाशिए पर होते हैं। मीडिया में रात-दिन चल रही खबरें कि कोविड-19 से बुजुर्ग सबसे ज्यादा मर रहे हैं रोज डराती हैं। यह मनोवस्था-सामाजिक असुरक्षा से उनके अंदर एकाकीपन, व्यग्रता और अनिश्चितता की भावना भर रही है, जिससे आगे अवसाद संबंधी मुश्किलें, नींद न आना और गहरा अवसाद पैदा हो सकता है। अकेला पड़ने या प्रियजनों से दूर होने पर पैदा हुई उदासी और छिन जाने की भावना बहुत गहरी और दीर्घकालीन असर दिखा सकती है।

सरकारी एजेंसियां, गैर-सरकारी संगठन, परिवार और देखभालकर्मी मिलकर बुजुर्गों को सामाजिक, भावनात्मक, मेडिकल और खुशमिजाजी का संबल दे सकते हैं। अस्पताल उनके लिए आखिरी विकल्प होना चाहिए। अभी तो ये वरिष्ठ नागरिक सिर्फ यही सोच रहे हैं, “हमसे क्या भूल हुई, जो ये सजा .....”
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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