पहले हमें विकल्प तलाशने होंगे / EDITORIAL by Rakesh Dubey

भारत और चीन के बीच का तनाव सीमा से चलकर अब नागरिक समाज में उतर आया है सवाल यह है की चीन का बहिष्कार कहाँ से कहाँ तक भारत और चीन के बीच संघर्ष तो 1962 से चला आ रहा है। परन्तु चीन ने पिछले कई वर्षों में जिस तरह भारत में पांव पसारे हैं कि भारत के रसोई घर, बेडरूम और ऑफिस, सभी स्थानों पर चीन किसी-न-किसी रूप में मौजूद है। 

शाओमी, वीवो, ओपो से लेकर टीवी, फ्रिज बनाने वाली कंपनी से लेकर एमजी मोटर्स तक सभी चीनी कंपनियां हैं मुख्य रूप से भारत को विभिन्न उद्योगों में इस्तेमाल होने वाली मशीनरी, टेलिकॉम उपकरण, बिजली से जुड़े उपकरण, दवा उद्योग में इस्तेमाल होने वाले अधिसंख्य रसायन भारत को निर्यात करता है भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा दवा निर्माता है, लेकिन दवा के निर्माण के लिए 70 प्रतिशत थोक दवा, जिन्हें तकनीकी भाषा में एक्टिव फार्मास्यूटिकल्स इंग्रेडिएंट्स कहते हैं, उनका आयात चीन से करता है

अगर चीनी आयात पर असर पड़ा, तो असर दवा,ऑटो, इलेक्ट्रानिक वस्त्र टेलीकाम क्षेत्र में दिखेगा ये आयत प्रभावित होंगे | दो चीनी कंपनियों- जेडटीई और हुवाई ने भारतीय टेलिकॉम कंपनियों को 15 अरब डॉलर मूल्य और उनकी कुल जरूरत के 40 प्रतिशत उपकरण प्रदाय किये हैं भारत की सोलर परियोजनाओं में 78 प्रतिशत उपकरण चीन निर्मित हैं देश में स्थापित 61371 मेगावाट क्षमता के बिजली संयंत्र चीन में बने उपकरणों पर चल रहे हैं लगभग 75 प्रतिशत मोबाइल फोन बाजार पर चीनी कंपनियों का कब्जा है आप अपने घर-परिवार में देखिए, अधिकांश मोबाइल चीनी कंपनियों के हैं। भारत में बिकने वाले हर दस में से आठ स्मार्टफोन चीनी कंपनियों के हैं भारत में स्मार्टफोन बनाने वाली पांच शीर्ष कंपनियों में चार चीन की हैं

कहने को भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता है, इसमें चीनी कंपनियां भी शामिल हैं, लेकिन हम मोबाइल सीधे चीन से आयात नहीं करते हैं। मेक इन इंडिया के तहत चीनी कंपनियां उनका निर्माण भारत में करती हैं| यह सेक्टर सात लाख लोगों को रोजगार देता है

भारत और चीन के बीच कारोबार की स्थिति पर भी एक नजर सन् 2000 में भारत और चीन के बीच कारोबार केवल तीन अरब डॉलर का था| अब चीन अमेरिका को पीछे छोड़ कर भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है| वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार सन् 2018 में दोनों देशों के बीच कारोबार 89.71 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया, पर व्यापार संतुलन चीन के पक्ष में था यानी भारत से कम निर्यात हुआ और चीन से आयात में भारी बढ़ोतरी हुई भारत ने जो सामान निर्यात किया, उसकी कीमत केवल 13.33 अरब डॉलर थी, जबकि चीन से 76 अरब डॉलर का आयात हुआ यानी 63.05 अरब डॉलर का व्यापार घाटा था

इसी तरह 2019 में चीन से 70.31 अरब डाॅलर का आयात हुआ, जबकि 16.75 अरब डाॅलर के उत्पाद निर्यात किये गये. इसका मतलब है कि चीन ने भारत के मुकाबले चार गुने से भी अधिक का सामान बेचा चीन ने भारत में ई-कॉमर्स, फिनटेक, मीडिया, सोशल मीडिया और लॉजिस्टिक्स में चीनी कंपनियों ने भारी निवेश कर रखा है

क्या ऐसे में अचानक चीन पर अपनी निर्भरता समाप्त कर सकते हैं? इसका जवाब शायद नहीं ही है इसके लिए लंबी मुहिम चलानी होगी और धीरे-धीरे हमें चीनी उत्पादों पर अपनी निर्भरता समाप्त करनी होगी इसके लिए सबसे पहली शर्त होगी कि हमें सस्ते और टिकाऊ विकल्प उपलब्ध कराने होंगे| विकल्प तलाशने होने ?
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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