भ्रूण हत्या ना की जाए, क्या तब भी लिंग परीक्षण अपराध माना जाएगा / ABOUT IPC

विगत दशकों में भारतीय समाज में हुई शैक्षणिक और वैचारिक प्रगति के बावजूद बालिका-शिशु के प्रति अधिकांश लोगों में अनचाहत आज भी बनी हुई हैं। आज भी हमारे समाज में लड़कियों के जन्म को पारिवारिक बोझ माना जाता है। भ्रूण परीक्षण में बालिका का जन्म होने की संभावना है तो अनेक लोग गर्भपात करा लेने में भी नही हिचकिचाते हैं। 

इसी सब को रोकने के लिए भ्रूण परीक्षण तकनीक (विनियमन एवं दुरपयोग का निवारण) अधिनियम 1994 पारित किया गया। लेकिन फिर भी भ्रूण लिंग परीक्षण पहचान पर नियंत्रण नहीं हो सका। एवं वर्ष 2003 में इस अधिनियम में कुछ संशोधन हुआ और भ्रूण लिंग परीक्षण पर पूर्णतः प्रतिबंधित कर दिया गया। ताकि गर्भ में पल रहे शिशु की हत्या न हो सके। फिर भी इस पर कुछ लोग भ्रष्टाचार करके गुप्त तरीके से भ्रूण लिंग परीक्षण करा लेते है। इस अधिनियम को प्रभावी बनाने में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 315, अधिक प्रभावी है।

भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 315 की परिभाषा:-

अगर कोई कार्य आरोपी द्वारा सद्भावना के बिना इस उद्देश्य से किया गया हो। जिससे गर्भस्थ शिशु जीवित जन्म न ले सके या जन्म लेने के पश्चात उसकी मृत्यु हो जाए। वह व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा। 
इस अपराध के लिए निम्न तत्व का होना भी आवश्यक है:- 
1. संबंधित महिला का गर्भवती होना जरूरी है।
2. ऐसा कार्य शिशु की माता का जीवन बचाने के लिए न किया गया हो।
3. आरोपी द्वारा कार्य बिना सदभावना के इस उद्देश्य से किया गया हो जिससे गर्भस्थ शिशु का जीवित जन्म लेना रुक जाए या जन्म लेने के पश्चात उसकी मृत्यु हो जाये।
5. बच्चे की मृत्यु आरोपी के कार्य के परिणामस्वरूप हुई हो।

आईपीसी की धारा धारा 315 के तहत दण्ड का प्रावधान:- 

धारा 315 का अपराध समझौता योग्य नहीं होता है। यह अपराध संज्ञये एवं अजमानतीय अपराध की श्रेणी में आते हैं। इनकी सुनवाई सेशन न्यायालय द्वारा की जाती हैं। सजा - दस वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनो से दण्डित किया जा सकता है।
बी. आर. अहिरवार होशंगाबाद (पत्रकार एवं लॉ छात्र) 9827737665

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