आपने कभी-कभी सुना होगा यदि कोई मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति किसी प्रकार का अपराध कर दे तो न्यायालय उसे अपराध के लिए निर्धारित दंड नहीं देती लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उसे स्वतंत्र कर दिया जाता है। भारतीय दंड संहिता के अनुसार उसे सामान्य कैदियों के साथ जेल में नहीं रखा जा सकता लेकिन न्यायालय ऐसे व्यक्तियों को समाज में स्वतंत्र घूमने की अनुमति भी नहीं देता। ऐसे लोगों को विशेष प्रकार के अस्पतालों में तब तक के लिए भेज दिया जाता है जब तक कि वह पूरी तरह से स्वस्थ ना हो जाए।
आईपीसी की धारा 84 के तहत विकृत-चित व्यक्ति कौन होते हैं
1. जड़ बुद्धि (स्वस्थ-मस्तिष्क न होना) के व्यक्ति।
2. विक्षिप्त व्यक्ति (मानसिक रोग से पीड़ित) होना।
3. अकुशल बुद्धि (मंदबुद्धि) का व्यक्ति होना।
4. पागलपन होना।
5. अच्छे-बुरे का भेद न समझने वाला व्यक्ति।
ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया कोई अपराध भारतीय दंड संहिता की धारा 84, के अंतर्गत अपराध नहीं माना जाएगा।
परन्तु निम्न तथ्य ध्यान देने योग्य है:-
1. वह व्यक्ति अपराध करते समय विकृत-चित होना चाहिये।
2.उस व्यक्ति को अपराध की जानकारी न होना।
【नोट:-अगर कोई व्यक्ति शराब या अन्य नशे में कोई अपराध करता है तो उसे इस धारा के अंतर्गत कोई संरक्षण प्राप्त नहीं है】
उधारानुसार वाद:- श्रीराम बनाम महाराष्ट्र राज्य- अभियुक्त (आरोपी) व्यक्ति पर अपनी तीन नातिनों को चक्की के पाट से हत्या करने का आरोप लगाया गया। आरोपी ने उन लाशों को इधर से उधर भी नहीं किया, न ही कोई साक्ष्य मिटाए एवं वहीं पाया गया और न ही उन बालिकाओं को मारने का कोई उसका उद्देश्य था, न ही कोई पूर्व तैयारी थी। न्यायालय द्वारा बताया गया कि यह कृत्य मानसिक विक्षिप्तता के प्रभाव में किया गया है। अतः आरोपी को धारा 84 के अंतर्गत संरक्षण देकर अपराध से दोषमुक्त कर दिया गया।
बी.आर. अहिरवार होशंगाबाद (पत्रकार एवं लॉ छात्र) 9827737665