आपका लाडला बेटा जब बाप बनेगा, उसकी संतान को नहाने के लिए पानी नहीं बचेगा | WORLD WATER DAY

यदि 2020 में आपके घर में संतान ने जन्म लिया है और आप खुशियां मना रहे हैं। उसके नहान (स्नान) और अन्नप्राशन संस्कार का आयोजन कर रहे हैं तो तय मानिए आपके परिवार में इस तरह का यह आखिरी आयोजन है। आपकी यह बेटी या फिर बेटा 2050 में जब बाप बनेगा तो उसकी संतान को स्नान के लिए धरती पर पानी नहीं बचेगा। आज विश्व जल दिवस है और आपको इस कड़वी सच्चाई से परिचित कराना जरूरी है। आपके पास सिर्फ 25 साल बचे हैं। नदियों के किनारे जितने फोटो खिंचवाने हो खिंचवा सकते हो। तालाब में वोटिंग कर सकते हो। इन सब का वीडियो बना कर रखना क्योंकि आपकी संतानों को यह सब कुछ नहीं मिलेगा। आपकी मृत्यु के बाद आप की संताने आपको इस गंभीर लापरवाही के लिए जिम्मेदार मानेगी।

भारत में 2050 में पानी के लिए हत्याएं होंगी

आज भी भारत में 7.5 करोड़ लोग पीने के शुद्ध पानी से वंचित है। सबसे पहले कल के लिए जल। यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक भारत में भारी जल संकट आने वाला है। अनुमान है कि कल अर्थात आगामी 30 सालों में देश के जल संसाधनों में 40% तक की कमी आएगी। देश की बढ़ती आबादी को ध्यान में रखें तो प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता बड़ी तेजी से घटेगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर भारत में स्थिति पहले से ही बेहद खराब है। अब देश के और हिस्से भी इस संकट की चपेट में आ जाएंगे। 

सिर्फ पीने के लिए पानी बचेगा, नहाने या कपड़े धोने के लिए नहीं

भारत में प्रति व्यक्ति के हिसाब से सालाना पानी की उपलब्धता तेजी से नीचे जा रही है। 2001 में यह 1820 घन मीटर था, जो 2011 में 1545 घन मीटर ही रह गया। 2025 में इसके घटकर 1341 घन मीटर और 2050 तक 1140 घन मीटर हो जाने की आशंका जताई गई है। सरल शब्दों में सिर्फ इतना कि 25 साल बाद सिर्फ पीने के लिए पानी बचेगा। स्नान करने या कपड़े धोने के लिए पानी नहीं होगा। आपको ऐसे कपड़े पहनने होंगे जिनके गंदे हो जाने के बाद आप उन्हें फेंक सके। भारत में लोग सिर्फ तीज त्यौहारों पर या फिर जन्मदिन के मौके पर नहाया करेंगे।

ट्यूबवेल जमीन से पानी नहीं उसका खून चूस रहे हैं

आज भी करीब 70.5 करोड़ हिंदुस्तानी शुद्ध पेयजल से वंचित हैं। हर साल देश के कोई 1.4 लाख बच्चे गंदे पानी से होने वाली बीमारियों से मर जाते हैं। इस संकट की बड़ी वजह है भूमिगत जल का लगातार दोहन, जिसमें भारत दुनिया में अव्वल है। पानी की 80 प्रतिशत से ज्यादा जरूरत हम भूजल से पूरी करते हैं, लेकिन इसे दोबारा भरने की बात नहीं सोचते। 

और ऋषि-मुनियों ने यह सिस्टम बनाया था जो आपने तोड़ दिया

कहने को जल संचय भारत की पुरानी परंपरा रही है, मन्दिर के साथ जल संचय की परम्परा थी जो अब समाप्त हो गई है। बारिश का पानी बचाने के कई तरीके लोगों ने विकसित किए थे। दक्षिण में मंदिरों के पास तालाब बनवाने का रिवाज था। पश्चिमी भारत में इसके लिए बावड़ियों की और पूरब में आहार-पानी की व्यवस्था थी। समय बीतने के साथ ऐसे प्रयास कमजोर पड़ते गए। बावड़ियों की कोई देखरेख नहीं होती और तालाबों पर कब्जे हो गए हैं। 

आप क्या समझते हैं ट्यूबवेल से शुद्ध पेयजल निकलता है

संकट का दूसरा पहलू यह है कि भूमिगत जल लगातार प्रदूषित होता जा रहा है। औद्योगिक इलाकों में घुलनशील कचरा जमीन में डाल दिया जाता है। हाल में गांव-गांव में जिस तरह के शौचालय बन रहे हैं, उनसे गड्ढों में मल जमा हो रहा है, जिसमें मौजूद बैक्टीरिया भूजल में पहुंच रहे हैं। 

चलते चलते समाधान पढ़ लीजिए

जल संकट लाइलाज नहीं है। हाल में पैराग्वे जैसे छोटे, गरीब देश ने सफलता पूर्वक इसका इलाज कर लिया है। दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन शहर ने इस संकट से निपटने के रास्ते खोजे हैं। हमारे लिए भी यह असंभव नहीं है, बशर्ते सरकार और समाज दोनों मिलकर इसके लिए प्रयास करें। समाज शोर मचाता है, सरकार सोती रहती है। जागिये, कल के लिए जल के निमित्त आज से ही कुछ कीजिये।

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