शीतला अष्टमी की पूजा विधि, कथा एवं महत्व | SHEETALA ASHTAMI KI PUJA VIDHI, KATHA OR MAHATAV

नई दिल्ली। शीतला अष्टमी का व्रत चैत्र मास की अष्टमी तिथि (Chitra Ashtami Tithi) के दिन रखा जाता है। सभी व्रतों में केवल यही एक मात्र एक ऐसा व्रत है जिसमें बासी भोजन का भोग लगाया जाता है और बासी भोजन ही ग्रहण किया जाता है। शीतला अष्टमी (Sheetala Ashtami) के दिन चूल्हा बिल्कुल भी नहीं जलाया जाता है। 

शीतला अष्टमी तथा बासोड़ा पूजन का महत्व / Sheetala Ashtami Or Basoda Poojan Ka Mahatva/ Importance


शीतला अष्टमी के दिन माता शीतला की पूजा की जाती है। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन मनाया जाने वाला पर्व शीतला अष्टमी के नाम से जाना जाता है। शीतला अष्टमी ही एक ऐसा पर्व है जब माता शीतला को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। शीतला अष्टमी के दिन माता शीतला की पूजा पूरे विधि विधान से करने पर माता शीतला रोगों से बचाती हैं साथ ही शीतला माता भक्तों के तन मन को शीतल कर उनके पापों का नाश भी करती हैं। शीतला अष्टमी के दिन माता शीतला को भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग यानी बसोड़ा तैयार किया जाता है।

शीतला अष्टमी के दिन बासी भोजन से भी माता शीतला का भोग लगाया जाता है और भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में भी इसे बांटा जाता है। माना जाता है कि शीतला अष्टमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है। माता शीतला को भोग लगाने के लिए एक दिन पहले ही बने भोजन से भोग लगाया जाता है। माता शीतला के भक्त पूरी श्रद्धा से इस नियम का पालन करते हैं। शीतला माता की पूजा बसंत और ग्रीष्म ऋतु में ही होती है। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ के कृष्ण पक्ष की अष्टमी शीतला देवी की पूजा अर्चना करने के लिए समर्पित है। इसलिए ये दिन शीतला अष्टमी के नाम से जाना जाता है।

शीतला अष्टमी तथा बासोड़ा की पूजन विधि (Sheetala Ashtami Or Basoda Pooja Ki Vidhi/ Pujan Vidhi)


1. शीतला अष्टमी से एक दिन पहले ही सप्तमी के दिन मीठा भात, खाजा, चूरमा, कच्चा और पक्का खाना,नमक पारे, बेसन की पकौड़ी आदि बना लेनी चाहिए। यह सभी समान बनाकर आपको अगले दिन यानी शीतला अष्टमी की पूजा में रखना है और यदि आप रोटी बना रहे हैं तो ऐसी रोटी बनाएं जिसमें लाल रंग के सिकाई के निशान न हो।

2.बसोड़े के दिन यानी शीतला अष्टमी के दिन ठंडे पानी से नहाएं और साफ वस्त्र धारण करें।

3. इसके बाद एक कड़वारे भरे। कड़वारे में रबड़ी, चावल, पुए,पकौड़े और कच्चा पक्का खाना रखें।

4.इसके बाद एक दूसरी थाली में काजल, रोली,चावल, मौली, हल्दी, होली वाले बड़गुल्लों की एक माला व एक रूपए का सिक्का रखें।

5. बिना नमक का आंटा गूथकर उससे एक दीपक बनाएं और उसमें रूई की बाती घी में डुबोकर लगाएं।

6. यह दीपक बिना जलाए ही माता शीतलो चढ़ा दें। पूजा की थाली पर कंडवारो से तथा घर के सभी सदस्यों को रोली और हल्दी से टिका लगाएं।

7. इसके बाद मंदिर में जाकर पूजा करें या शीतला माता घर हो तो सबसे पहले माता को स्नान कराएं।

8. इसके बाद रोली और हल्दी से मां का टीका करें।

9. माता शीतला को काजल, मेहंदी, लच्छा और वस्त्र अर्पित करें। तीन कंडवारे का समान अर्पित करें। बड़ी माता बोदरी और अचपडे के लिए

10. माता शीतला को बड़गुल्ले अर्पित करें। आटें का दीपक बिना जलाएं अर्पित करें। इसके बाद मां की आरती उतारें।

11. माता को भोग की चीजें अर्पित करें और जल चढ़ाएं और जो जल बहे। उसमें से थोड़ा सा जल लोटे में डाल लें

12. इसके बाद यह जल घर में छिड़क दें। इससे घर की शुद्धि होती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।


शीतला अष्टमी 2020 की तिथि एवं शुभ मुहूर्त (Sheetala Ashtami 2020 ki Tithi or Subh Muhurat)


16 मार्च 2020
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त - सुबह 6 बजकर 29 मिनट से 

शीतला अष्टमी की कथा (Sheetala Ashtami Ki Katha/ Story)

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार एक बूढ़ी औरत और उसकी दो बहुओं ने शीतला माता अष्टमी का व्रत रखा। जिसमें उन्होंने माता को बासी चावल चढ़ाए और खाए। लेकिन उन्होंने शीतला अष्टमी के दिन सुबह ही ताजा भोजन बना लिया। क्योंकि उनकी दोनों को हाल में ही संताने हुई थी। जिसकी वजह से उन्हें डर था कि उन्हें बासी भोजन से नुकसान पहुंच सकता है। जब सास को इस बारे में पता चला तो वह बहुत क्रोधित हुई। कुछ देर के बाद ही उनकी दोनो संतानों की मृत्यु हो गई। जब सास को यह पता चला तो उसने दोनो बहुओं को घर से निकला दिया

उस बुढ़िया की दोनो बहुएं बच्चों के साथ घर से निकला दिया। दोनो बहुएं चलते- चलते बहुत थक गई जिसके बाद वह आराम करने के लिए रूक गईं। वहां उन दोनों बहनों को ओरी और शीतला मिली। वह दोनों अपने सिर की जुओं से बहुत परेशान थी। बुढिया की बहुओं को दोनों बहनों को इस दशा में देखकर बहुत दया आ गई और दोनों बहुएं उनका सिर साफ करने लगी। कुछ देर के बाद जब दोनों बहनों को आराम मिल गया तो उन्होंने उन बहुओं को आर्शीवाद दिया की जल्द ही तुम्हारी कोख हरी हो जाए। यह देखकर दोनो बहने रोने लगी।

जिसके बाद दोनों बहुओं ने अपने बच्चों के शव उन दोनों बहनों को दिखाए। ये सब देखकर शीतला ने उनसे कहा कि तुमने शीतला अष्टमी के दिन ताजा भोजन बनाया था। जिसकी वजह से तुम्हारे साथ ऐसा हुआ। यह सब जानकर उन्होंने शीतला माता से क्षमा याचना की। इसके बाद माता ने दोनों बच्चों के मृत शरीर में प्राण डाल दिए। जिसके बाद शीतला अष्टमी का व्रत पूरे धूमधाम से मनाया जाने लगा।
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