ग्वालियर। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा का हाथ थामने के बाद अब तमाम सिंधिया समर्थक जबरदस्त असमंजस की स्थिति में है, वह यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि करें तो क्या? जब तक सिंधिया कांग्रेस में थे कोई गफलत नहीं थी, हर तरह से वही उनके रहनुमा थे, लेकिन अब हालात बदल गए हैं ऐसे में कुछ ने तो अपने राजनीतिक भविष्य को दांव पर लगाकर कांग्रेस को नमस्ते कर दिया, लेकिन अधिकांश जो दशकों से कांग्रेस में शामिल रहे हैं, वह निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है।
अब उन्हें इंतजार केवल इस बात का है कि प्रदेश में सरकार कायम रहती है या फिर गिरती है। यदि कांग्रेस सत्ता में बनी रहती है तो फिर कांग्रेस को छोडऩे वालों की गिनती उंगलियों पर की जा सकेगी, क्योंकि वह मंडल निकायों में अपनी नियुक्ति के साथ ही पार्टी के सत्ता में रहने का लाभ लेने से नहीं चूकेंगे। वहीं यदि हालात इसके विपरीत होते हैं तो फिर सिंधिया समर्थक अपनी निष्ठा को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हुए उनके पीछे चलने का खुला एलान कर देंगे।
एक ओर जहां कांग्रेस नेता राजू चौधरी व जितेंद्र शर्मा ने शहर जिला सदर देवेंद्र शर्मा को भी समझाइश दे डाली कि महाराज ने उन्हें घर से बुलाकर जिलाध्यक्ष जैसा पद उस वक्त सौंपा जबकि उन्हें कोई नमस्ते तक करने को तैयार नहीं था, तब सिंधिया का अहसान मानकर उनके साथ आना चाहिए, जबकि आप उनके खिलाफ कांग्रेस दफ्तर में बैठक कर अहसान फरामोश होने का परिचय दे रहे हैं।
इस दौरान भले ही अधिकारिक रूप से सिंधिया समर्थकों ने कांग्रेस जिलाध्यक्ष को अपने इस्तीफे नहीं सौंपे हैं, लेकिन सोशल साइट्स पर आरोप प्रत्यारोपों का सिलसिला तेज गति से जारी है। तमाम नेताओं ने टाइप करवाकर अपने इस्तीफे भी इन साइट्स पर डालकर खुद को सिंधिया समर्थक बताने और दूसरों को नामजद यह याद दिलाने से भी नहीं चूक रहे कि महाराज के उन पर कितने अहसान हैं, ऐसे में उन्हे इस्तीफे देकर महाराज के समर्थन में आ जाना चाहिए। वहीं सामने वालों का कहना यह है कि किसी भी व्यक्ति की पहचान पार्टी से होती है, व्यक्ति से नहीं, ऐसे में किसी के गलत निर्णय पर वह कांग्रेस कैसे छोड़ दें और उस दल में चले जाएं जहां उनकी विचारधारा कभी सम्मान नहीं पा सकती। वहीं तमाम बड़े नेता समय के इंतजार में मुंह खोलने को तैयार नहीं है।
इधर वरिष्ठ कांग्रेसी महाराज सिंह पटेल ने शर्मा के सामने यह प्रस्ताव रख दिया है कि जो बैठक में नहीं आए उन्हे पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जाए, यह मतलब परस्त लोग हैं और केवल भोपाल में चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम के थमने का इंतजार कर रहे हैं। वहीं जिन लोगों ने फेसबुक पर इस्तीफे दिए हैं उनसे भी कहा कि वह भी कांग्रेस दफ्तर पहुंचकर खुद इस्तीफा दें, अपने लाभ के लिए दोहरे मापदंड न अपनाएं।
सबसे बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि जिस तरह से कांग्रेसियों की भीड़ शुक्रवार को कांग्रेस दफ्तर में हुई बैठक में दिखाई दी, ऐसा नजारा सालों से नजर नहीं आया। न तो यह कांग्रेसी किसी बड़े नेता की जन्मतिथि और पुण्यतिथि के कार्यक्रम में जुटते थे और न ही अन्य आयोजनों में फिर क्या इनका विरोध केवल सिंधिया को लेकर था, जिनका अंचल की राजनीति पर गहरा प्रभाव था।
इधर पूर्व मंत्री भगवान सिंह यादव ने कहा है कि हर एक कार्यकर्ता की पहचान कांग्रेस है, मुझे भी जो मिला है कांग्रेस से मिला है, 1964 में अर्जुन सिंह मुझे कांग्रेस में लाए थे और आज साठ साल बाद भी मैं इसी संगठन से जुड़ा हूं।