'फ्री' से जीते केजरीवाल | MY OPINION by ANAND BANDEWAR

जी हां दिल्ली विधानसभा चुनाव का रिजल्ट लगभग आ चुका है आम आदमी पार्टी यहां पर बढ़त बनाकर अपनी जीत की तरफ बढ़ चुकी है वहीं बीजेपी के हाथ पूरी तरीके से तो नहीं लेकिन निराशा जरूर हाथ लगी है। यहां पर बीजेपी ने पिछले चुनाव के मुकाबले एक अच्छी बढ़त जरूर हासिल की है और इस बार थोड़ी ज्यादा सीट हासिल करके दिल्ली विधानसभा में अपनी बेहतर उपस्थिति दर्ज कराएगी।

वहीं कांग्रेस का कंसिस्टेंट परफॉर्मेंस जारी है जैसा कि कांग्रेस पिछले विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन कर रही थी वही परफॉर्मेंस इस विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस की तरफ से जारी है यानी पिछले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस शून्य पर थी और इस विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस शून्य पर काबिज है। लगातार इसी तरह की कंसिस्टेंट परफॉर्मेंस के लिए कांग्रेस को बधाई।

हालांकि कांग्रेस की इस हालत पर कांग्रेस के नेताओं के बयान आने भी शुरू हो गए हैं जैसे कमलनाथ ने कहा है कि कांग्रेस ने दिल्ली विधानसभा चुनाव केवल औपचारिकता के लिए लड़ा था। वहीं कांग्रेस के प्रवक्ता टीवी चैनलों पर बयान देते नजर आ रहे हैं कि वे इस मुकाबले में अपनी उपलब्धियों के साथ उतरे ही नहीं यानी एक तरह से उन्होंने आम आदमी पार्टी को वॉक ओवर दे दिया था।

'मुफ्त' में जीते केजरीवाल

इन सभी बातों से ऊपर उठकर अगर देखें तो दिल्ली का यह चुनाव एक और बात कहता है। वह यह कि दिल्लीवासियों को फ्री पसंद है चाहे वह गरीब तबका हो या अमीर तबका हो या मध्यमवर्ग सभी को मुफ्त की चीजें बहुत लुभाती हैं दिल्ली में भी यही हुआ इसलिए सभी कह रहे हैं 'मुफ्त में जीते केजरीवाल'। अब मुफ्त की इस राजनीति का असर देश के अन्य चुनाव पर भी देखने को मिलेगा क्योंकि आने वाले अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों में, नगरपालिका चुनावों में और पंचायत के चुनावों में 'मुफ़्त' की राजनीति हावी होती हुई दिखाई देगी जो कि आर्थिक दृष्टिकोण से अच्छा नहीं है।

केजरीवाल ने दूसरी अच्छी रणनीति अपनाई वह यह कि वे हिंदू मुस्लिम, और शाहीन बाग जैसे मुद्दे से दूरी बनाकर रह सके, वहीं जब मनीष सिसोदिया की तरफ से शाहिनबाग पर बयान आया तो इसका नतीजा मनीष सिसोदिया की विधानसभा सीट पर साफ देखा जा सकता है।

क्या रही बीजेपी की गलती 

मेरा व्यक्तिगत मानना है कि बीजेपी की गलती में से एक गलती यह भी है कि बीजेपी ने यह चुनाव राष्ट्रिय मुद्दों पर लड़ा और विकास एवं ज़मीन से जुड़े मुद्दों जैसे आमजन की समस्या, बिजली, पानी, सफ़ाई, शिक्षा और स्वास्थ्य से भटक गयी। जिस चुनाव को सबसे ज्यादा जमीनी मुद्दों के बल पर लड़ा जाना चाहिए था उस चुनाव को राष्ट्रीय मुद्दे पर लड़ा और यही गलती बीजेपी को भारी पड़ गई। यहां पर अमित शाह को यह ध्यान रखना होगा कि विधानसभा और नगर पालिका जैसे चुनाव मुख्य तौर पर केवल आमजन की समस्याओं से जुड़े होते हैं वहां पर हर बार राष्ट्रीय मुद्दा काम नहीं आता। हो सकता है कि शाहीन बाग जैसा मुद्दा लोकसभा चुनाव में बीजेपी को फायदा पहुंचाएगा लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव यह साफ तौर पर दिखाता है कि राज्य स्तर के चुनाव में जनता जमीन से जुड़े हुए मुद्दों पर ही वोट करती है।

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