समाज : इन बड़बोलों को हिम्मत कौन दे रहा है ? | EDITORIAL by Rakesh Dubey

Bhopal Samachar
क्या हो गया है इस देश को, बडबोले इतने बेलगाम कैसे ? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि इन बड़बोलों को हिम्मत कौन दे रहा है ? आज तो हालत यह है कि देश का एक मुख्यमंत्री दूसरे मुख्यमंत्री को ‘आतंकवादी’ कह रहा है और कहने वाले की पार्टी के बड़े नेता उसका बचाव करते हैं। दक्षिण के एक नेता स्वतंत्रता आंदोलन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के योगदान को एक ‘नाटक’ कह रहे हैं। उन्हें लगता है कि गांधीजी की अंग्रेज़ शासकों से मिलीभगत थी। इसके साथ भी इस ओर भी देखिये कार्यपालिका में कार्यरत अफसर संसद द्वारा पारित कानून की आलोचना करते हैं,अपनी पदोन्नति की खुद सिफारिश करते हैं | अपने से कनिष्ठों पर थप्पड़ चलाते हैं | यह सब स्वत: नहीं हो सकता, इसके पीछे “हिम्मत देने वाले कौन हैं|” इन चेहरों की पहचान जरूरी है |

सरकार हो या प्रतिपक्ष अथवा नौकरशाही सब एक समान ‘चरित्तर’ दिखा रहे हैं| नौ साल की बच्ची की मां ‘देशद्रोह’ के आरोप में बीदर की जिला जेल में बंद है। पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाली उसकी बेटी ने कुछ दिन पहले स्कूल में बच्चों द्वारा खेले गये नाटक में कुछ ऐसा बोल दिया जो नागवार गुज़रा। बच्ची ने पुलिस को बताया कि यह डायलॉग उसे मां ने याद करवाया था। किसी की शिकायत पर इस बात को देशद्रोह मान लिया गया और पुलिस ने बच्ची की मां को दोषी ठहराकर जेल में डाल दिया| एक चुनावी सभा में शाहीन बाग में नागरिकता कानून का विरोध करने वालों को ‘गद्दार’ कहकर उन्हें गोली मारने की बात होती है। मंच से नारे लगते है कि ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो… को’। इस भाषण और नारेबाजी के बाद शाहीन बाग इलाके में गोली चलाने की तीन घटनाएं भी घटी |  क्या देश के नागरिकों को इन  हथकंडो से भड़काना देशद्रोह नहीं है?

सवाल देश की राजनीति चलाने वालों की समझ का है। राजनीति का जो स्तर आज देश में दिख रहा है, और जिस तरह की भाषा का उपयोग हमारे नेता कर रहे हैं, उसे देखकर शर्म भी आती है, और गुस्सा भी। राजनीति में भाषा का यह अवमूल्यन कुछ व्यक्तियों और कुछ दलों तक ही सीमित नहीं है। हमारे राजनेताओं ने यह मान लिया है कि राजनीति के खेल में वे कुछ भी कर सकते हैं, कुछ भी बोल सकते हैं। सब कुछ क्षम्य है उनके लिए। अपने राजनीतिक विरोधी पर किसी भी तरह का आरोप लगाने में हमारे नेताओं को कोई संकोच नहीं होता। देशद्रोह तो एक बहुत ही गंभीर अपराध है, और देशद्रोही को सज़ा मिलनी ही चाहिए। पर ज़रा इस तरफ भी देखें देश में ऐसे कितने लोगों को सज़ा मिली है जिन पर देशद्रोह के आरोप लगे हैं? इससे जुडा एक सवाल यह भी है कि यदि किसी पर लगाया गया देशद्रोह का आरोप ग़लत सिद्ध होता है तो झूठा आरोप लगाने के लिए कितने लोगों को सज़ा मिली है? किसी एक को भी नहीं! मान लिया गया है कि इस तरह आरोप लगाना राजनीतिक दांव-पेंच का हिस्सा है और राजनीति में सब कुछ माफ होता है।

इसके विपरीत प्रशासन में तो बिलकुल नहीं प्रशासनिक पद पर नियुक्ति का अर्थ जिम्मेवारी होता है | खुद ब खुद अपने को श्रेष्ठ मान लेना कौन सा गुण है ? देश में यही हो रहा है, नौकर शाही अपने को  श्रेष्ठ मानने की बातें अपने मुंह से कहने लगी है | मध्यप्रदेश इसका उदहारण है| बड़े अधिकारी अपने मातहतों को पीट रहे है, सरकार की नीति और नीयत पर सवाल उठा रहे हैं| ये सब इसलिए हो रहा है कि सरकारें पारदर्शी न होकर भाई भतीजावाद से ग्रस्त हैं ? चुनिदा पदों पर नियुक्ति का मापदंड “खुशामद” होगया है |

समझने की कोशिश करें, सब कुछ माफ नहीं होता। होना भी नहीं चाहिए। घटिया भाषा, झूठे आरोप, भड़काऊ नारेबाज़ी आदि सब अपराध है। कानून के शासन में विश्वास करने वाली व्यवस्था में अपराधी को सज़ा मिलनी ही चाहिए। बिना प्रमाण के किसी को गद्दार घोषित कर देना, देशद्रोही बताना, किसी को अर्बन नक्सली की ‘उपाधि’ दे देना, किसी को आतंकवादी कह देना और बिना सर पैर के बडबोलापन एक गंभीर अपराध माना जाना चाहिए और अपराधी को दंड मिलना ही चाहिए। कोई व्यवस्था ऐसी भी होनी चाहिए कि झूठे आरोप लगाने वाले को ऐसा करने में कुछ डर लगे, पर हमारे यहां तो मुख्यमंत्री को यह कहने में भी संकोच नहीं करते कि ‘बोली से नहीं माने तो गोली से मानेंगे| “बोली” एक अर्थ नीलामी भी है, पदों की नीलामी |
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करें) या फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!