प्रमोशन में आरक्षण: सरकार क्रीमी लेयर सिद्धांत भी लागू करना नहीं चाहती | RESERVATION IN PROMOTION

नई दिल्ली। सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को पदोन्नति के लिए आरक्षण देने के मामले में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार किसी भी प्रकार का समझौता करने के लिए तैयार नहीं है। कांगरे सरकार के बनाए इस कानून को भाजपा की सरकार अक्षर से यथावत रखना चाहती है। सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पदोन्नति के लिए आरक्षण के मामले में क्रीमी लेयर के सिद्धांत को मानने से भी इनकार कर दिया है साथ ही इस मामले को बड़ी पीठ के सामने ले जाने का निवेदन किया है।

सुप्रीम कोर्ट: तीन सदस्यीय पीठ सुनवाई कर रही है 

सुप्रीम कोर्ट में तीन सदस्य पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। याचिका समता आंदोलन समिति की ओर से लगाई गई है। सरकार की तरफ से सोमवार को अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल उपस्थित हुए। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के के समक्ष आज की कार्रवाई हुई। सरकार ने SC-ST आरक्षण में क्रीमी लेयर को बाहर करने का मामला बड़ी पीठ में भेजने की मांग की। 

पदोन्नति के लिए आरक्षण: सुप्रीम कोर्ट दो बार फैसला सुना चुका है

केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने एससी, एसटी को सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण के मामले में क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू करने का मुद्दा बड़ी पीठ को भेजने की मांग रखी तो याचिकाकर्ता समिति की ओर से पेश वकील गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि एससी, एसटी आरक्षण से क्रीमी लेयर को बाहर करने का मुद्दा पहले संविधान पीठ को भेजा गया था और दो बार इस पर फैसला आ चुका है। पहले एम. नागराज केस में और फिर पिछले वर्ष जरनैल सिंह के मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ एससी एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण से क्रीमी लेयर को बाहर करने की बात कह चुकी है। इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि जरनैल सिंह के मामले में दिया गया फैसला पुनर्विचार के लिए सात न्यायाधीशों को भेजा जाना चाहिए। पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद मामले पर दो सप्ताह बाद विचार करने की बात कही।

SC-ST आरक्षण में क्रीमिलियर: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का फैसला

पिछले वर्ष 26 सिंतबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने जरनैल सिंह के मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के 2006 के नागराज केस के फैसले पर पुनर्विचार की मांग ठुकराते हुए एससी एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर के सिद्धांत को सही ठहराया था। हालांकि, कोर्ट ने नागराज फैसले में सिर्फ इतना संशोधन किया था कि एससी- एसटी को आरक्षण देने के लिए उनका पिछड़ापन साबित करने की जरूरत नहीं है। यानी उन्हें आरक्षण देने के लिए पिछड़ेपन के आंकड़े जुटाने नहीं पड़ेंगे लेकिन जरनैल सिंह के फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि एससी एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देते समय सरकार अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और प्रशासनिक दक्षता को देखेगी।

भारत के संविधान का अनुच्छेद 16 आरक्षण की सीमाएं निर्धारित करता है

नागराज मामले के फैसले में शीर्ष अदालत ने ये भी कहा था कि आरक्षण के मामले में 50 फीसद की सीमा, क्रीमी लेयर सिद्धांत, पिछड़ापन और अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और प्रशासनिक दक्षता संवैधानिक जरूरतें हैं और इसके बगैर संविधान के अनुच्छेद 16 में दिया गया बराबरी का सिद्धांत ध्वस्त हो जाएगा। केंद्र सरकार सहित कई राज्य सरकारों और संगठनों ने नागराज के फैसले में दी गई इस व्यवस्था को गलत बताते हुए इस फैसले को सात जजों की पीठ को पुनर्विचार के लिए भेजे जाने की मांग की थी।

मामला दोबारा सुप्रीम कोर्ट में क्यों है

मामला दोबारा कोर्ट के सामने इसलिए आया था कि पिछड़ेपन के आंकड़े न जुटाने के कारण कई राज्यों के एससी एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने के कानून कोर्ट से रद्द हो गए थे। सरकार का कहना था कि एससी एसटी पिछड़े ही होते हैं इसलिए उनके लिए अलग से पिछड़ेपन के आंकड़े जुटाने की शर्त गलत है।

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