नई दिल्ली। भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड विरुद्ध घनश्याम चंद शर्मा मामले में फैसला (Decision) सुनाते हुए कहा कि निर्धारित समय पर रिटायर होने वाले कर्मचारियों के अलावा स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति यानी वीआरएस लेने वाले कर्मचारी को पेंशन (pension) का अधिकार होता है लेकिन निर्धारित नियमों (central Civil Service rules) के विरुद्ध जाकर इस्तीफा (resignation) देने वाला कर्मचारी (employee) अपनी सेवा अवधि के सभी लाभ पाने का अधिकार खो देता है।
हाई कोर्ट ने फैसला दिया था: इस्तीफा देने वाले कर्मचारी को भी पेंशन का अधिकार
बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड में चपरासी के पद पर कार्यरत घनश्याम चंद शर्मा ने 7 जुलाई 1990 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। सेंट्रल सिविल सर्विस (CCS) के रूल्स के तहत BSES ने घनश्याम को पेंशन का लाभ देने से इनकार कर दिया था। इसके अलावा कंपनी ने कहा था कि उसने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के लिए जरूरी 20 साल की सेवा भी पूरी नहीं की है। कंपनी के फैसले के खिलाफ घनश्याम ने दिल्ली हाईकोर्ट में वाद दायर कर दिया। दिल्ली हाईकोर्ट की सिंगल बेंच पीठ ने घनश्याम के पक्ष में फैसला सुनाते हुए पेंशन देने का आदेश दिया। हाईकोर्ट की डिविजन बेंच ने भी सिंगल बेंच के फैसले को बरकरार रखा।
सेंट्रल सिविल सर्विस रूल्स के अनुसार इस्तीफा देने वाला कर्मचारी पेंशन का हकदार नहीं: सुप्रीम कोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ BSES ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घनश्याम ने 20 साल की सेवा पूरी नहीं होने के कारण स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का आवेदन रद्द होने के बाद इस्तीफा दिया था। कोर्ट ने कहा कि सेंट्रल सिविल सर्विस पेंशन रूल्स के तहत यदि कोई कर्मचारी इस्तीफा दे देता है तो उसकी पिछली सेवा जब्त मानी जाती है। हालांकि, यदि कोई कर्मचारी 20 साल की सेवा पूरी कर लेता है तो वह स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले सकता है और वह पेंशन का हकदार है। सेंट्रल सिविल पेंशन रूल्स 31 दिसंबर 2003 से पहले सामान्य और डिफेंस सेक्टर में नियुक्त सरकारी कर्मचारियों पर लागू होते हैं।