भाजपा के मुख्यमंत्री चेहरे, जनता को रास नहीं आये | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। देश की राजनीति में एक नई कहावत ने जन्म ले लिया है कि भाजपा के प्रस्तावित मुख्यमंत्री के चेहरे जनता को पसंद नहीं आते। सही भी है भारतीय जनता पार्टी जहाँ भी मुख्यमंत्री का चेहरा बता कर चुनाव लड़ती है। वहां उसके लिए मुश्किल हार के कगार तक खड़ी हो जाती है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ हरियाणा महाराष्ट्र और अब झारखंड के चुनाव ने इस कहावत की पुष्टि कर दी है। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी बिना किसी चेहरे के चुनाव लड़ी थी और 400 में से 325 सीटें जीत कर कीर्तिमान बनाया था. भाजपा के एक वरिष्ठ नेता की बात माने तो “जैसे चेहरे गये थे लौटने पर वैसे नहीं मिले ” उनका इशारा इस बात को समझने के लिए काफी है, लौटे हए चेहरे स्याह परछाइयों से ओतप्रोत थे।

महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के ताज़ा उदहारण हैं, इन्ही राज्यों में 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा बिना चेहरे के उतरी थी, तो उसको उम्मीद से ज्यादा सीटें मिलीं थी। महाराष्ट्र में जहां पर भाजपा अकेले बहुमत के करीब पहुंची, वहीं झारखंड में अपने सहयोगी आजसू के साथ उसको स्पष्ट बहुमत मिला था। हरियाणा में तो भारतीय जनता पार्टी ने तब अकेले ही किला फतह किया था। इससे साफ है कि भारतीय जनता पार्टी के पास स्थानीय नेतृत्व का अभाव है और शीर्ष प्रादेशिक नेतृत्व ने द्वतीय पंक्ति निर्मित नहीं होने दी मध्यप्रदेश में दूसरी पंक्ति को प्रदेश बदर तक कर दिया गया।

इसके विपरीत इन 6 राज्यों में लोकसभा और विधानसभा चुनाव परिणामों ने साफ कर दिया है कि मत प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर मिलते हैं और देश की जनता प्रधानमंत्री मोदी को पसंद करती है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव के ठीक बाद हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 300 सीटें मिलीं| उन राज्यों में जहां भारतीय जनता पार्टी का सफाया हो गया था, वहां भी भारतीय जनता पार्टी ने करीब-करीब सारी सीटें जीत लीं। हरियाणा और झारखंड में भी भाजपा ने लोकसभा चुनाव में उम्मीद से ज्यादा सीटें जीती थीं. लेकिन जब चुनाव स्थानीय नेता के चेहरे पर हुआ तो भारतीय जनता पार्टी के हाथ से सरकार जाती रही। सम्पूर्ण भाजपा के लिए यह विचार का विषय है। यह साफ संकेत है कि भाजपा के मुख्यमंत्री जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे हैं। राज्यों के चुनाव में प्रधानमंत्री भले ही चुनाव प्रचार करें, लेकिन जब मुख्यमंत्री घोषित जाता है तो जनता को वोट देते समय उसका वह चेहरा याद आ जाता है जो भाजपा के कार्यकर्त्ता का नहीं, किसी मदमस्त शासक का हो गया था।

अब बात झारखंड की । इन नतीजो के बाद झारखंड विधानसभा की जो तस्वीर सामने आई है उसमे हेकड़ी, झूठ और दम्भ सामने स्पष्ट है। 2014 के विधानसभा चुनाव में आजसू को 3.68 प्रतिशत वोट मिले थे और उसने 5 सीटें जीती थीं. जबकि भारतीय जनता पार्टी 32 प्रतिशत वोट के साथ 37 सीटों पर जीती थी, दोनों ने मिलकर सरकार बनाई थी। आजसू ने 12 से ज्यादा सीटों की दावेदारी की तो भाजपा इसे देने को तैयार नहीं हुई। भाजपा की स्थानीय इकाई इसका आंकलन करने में विफल रही कि आजसू क्या कर सकती है? यहां तक कि केंद्रीय नेतृत्व को भी गलत जानकारी दी गई और कहा गया कि आजसू को मना लिया जाएगा, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। रही सही कसर सरयू राय के निष्कासन ने पूरी कर दी। वास्तव में पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व सरयू राय के खिलाफ इतनी कठोर कार्रवाई के मूड में नहीं था।

इसके संकेत इस बात से भी मिलते हैं कि पिछले 1 साल से लगातार सरकार और मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ बयानबाजी करने के बाद भी पार्टी ने सरयू राय को न तो पार्टी से बाहर निकाला और न ही उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया, लेकिन चुनाव से पहले रघुवर दास ने सरयू राय के टिकट कटवाने पर अपना पूरा जोर लगा दिया। नतीजा रघुवर दास खुद तो हारे पार्टी को भी हरा दिया। इसके अलावा एक वजह यह भी मानी जा रही है कि आदिवासी इलाकों में भाजपा से इस बात का गुस्सा था कि उन्होंने इस राज्य का मुख्यमंत्री किसी आदिवासी को क्यों नहीं बनाया ? इस बार भी जब चुनावों की घोषणा हुई तो मुख्यमंत्री का चेहरा रघुवर दास ही था, जो आदिवासी नहीं था।
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करें) या फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !