घर: सच में मिल जायेगा अब ? | EDITORIAL by Rakesh Dubey

खबर है कि सरकार ने मकान के नाम पर पर बिल्डरों और रियल एस्टेट के दलालों पर शिकंजा कसने का निर्णय लिया है | इस निर्णय के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण फैसले से संकट में फंसे रियल एस्टेट को उबारने तथा बिल्डरों व डेवलेपरों की धोखाधड़ी का शिकार हुए लाखों खरीददारों को राहत देने की मुहिम को हरी झंडी दिखायी है।

इसके निमित्त 25 हजार करोड़ का वैकल्पिक निवेश कोष बनाया गया है, जिसमें सरकार दस हजार करोड़ का निवेश करेगी और सरकारी बीमा कंपनी एलआईसी तथा सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया पंद्रह हजार करोड़ देंगे। इस वैकल्पिक कोष से ऋण देते समय मध्यम आय वर्ग वाली किफायती आवासीय परियोजनाओं को वरीयता दी जायेगी। अगर ऐसा हो जाता है तो नि:संदेह सरकार द्वारा उठाये गये इस कदम से घर का सपना लेकर दर-दर की ठोकरें खाने वाले लाखों खरीददारों को राहत मिलेगी, जो मोटी रकम खर्च करने के बावजूद घर नहीं पा सके थे ,वास्तव  ये लोग लाखों रुपये लगाने के बावजूद बिल्डरों-डेवलेपरों की धोखाधड़ी के चलते घर का हक न पा सके थे।इसके पीछे  सरकार की मंशा यह भी दिखती  है कि वैकल्पिक कोष बनाये जाने से सुस्त पड़े रियल एस्टेट को गति देने में मदद मिलेगी। जहां निर्माण उद्योग से जुड़े विभिन्न कारोबारों को गति मिलेगी, वहीं रोजगार के नये अवसर भी सृजित होंगे।

वैसे यह कहीं न कहीं यह रियल एस्टेट क्षेत्र में सुस्त पड़ी मांग को बढ़ाने की भी कवायद है। मगर, यहां सरकार को आत्ममंथन करने की जरूरत है कि व्यवस्था में वे कौन से छेद हैं, जिसके जरिये बिल्डर व डेवलेपर खून-पसीने की कमाई से मकान बनाने की जुगत में लगे लोगों को चूना लगा जाते हैं? क्या रेरा के अस्तित्व में आने के बाद इस प्रवृत्ति में किसी सीमा तक अंकुश लग पाया है? बहरहाल, अच्छी बात यह है कि सरकार संकटग्रस्त रियल एस्टेट कारोबार को संबल देने आगे आयी है, जिसके सार्थक परिणाम आने वाले दिनों में नजर आ सकते हैं। कुछ सवाल भी हैं ,क्या इस कोष से उन अधूरी पड़ी आवासीय परियोजनाओं को पूरा करने के लिए भी ऋण दिया जायेगा, जिनके बिल्डर एनपीए के मामलों में लिप्त रहे हैं। वे बिल्डर जिन्हें बैंकों ने गैर-निष्पादित परिसंपत्ति घोषित किया है, साथ ही वे जो दिवालिया प्रक्रिया से गुजर रहे हैं, उनके साथ क्या नीति होगी । इसके लिये जरूरी है कि लाभ उठाने वाली परियोजनाओं का रेरा के अंतर्गत पंजीकरण हो। सरकार की मंशा है कि कुल सोलह सौ आवासीय परियोजनाओं से जुड़े करीब साढ़े चार लाख लोगों को जल्दी से जल्दी घर की चाबी मुहैया करायी जा सके, जिसके अंतर्गत चरणबद्ध तरीके से धन मुहैया कराकर अधर में लटकी परियोजनाओं को अंतिम रूप देने में तेजी लायी जा सकेगी। लगता है उन परियोजनाओं को प्राथमिकता दी जायेगी जो निर्माण के अंतिम चरण में अटकी हुई हैं।

सरकार की मंशा है कि एक विशेष रूप से खोले गए बैंक खाते यानी एस्क्रो अकाउंट के जरिये कई चरणों में आवासीय योजनाओं को पूरा करने के लिए  धन मुहैया कराया जाये। सरकार ने इस प्रक्रिया में सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि उपलब्ध कराये गये धन का उपयोग निर्माण कार्य को पूरा करने में किया जाये। जरूरी है इस सब पर नजर रखी जाए जिससे बिल्डर इस धन का उपयोग पुराने ऋण चुकाने में न कर दें। सरकार की इस पहल का रियल एस्टेट डेवलेपर्स एसोसिएशन क्रेडाई ने भी स्वागत किया है। सही मायनों में सरकार के इस फैसले से फंसे घर के खरीददारों को तो राहत मिलेगी ही, काफी समय से सुस्ती के चपेट में फंसे भवन निर्माण उद्योग को भी प्राणवायु मिल सकेगी। नि:संदेह जहां छत का सपना देख रहे लोग सरकार के इस फैसले से लाभान्वित होगे , वहीं सीमेंट, आयरन व स्टील इंडस्ट्री को भी संबल मिलेगा।  आवश्यकता ईमानदारी से पहल की है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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