जबलपुर। कमलनाथ सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% किए जाने के खिलाफ मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में लगी याचिका में सरकार की तरफ से जवाब आ गया है। कमलनाथ सरकार ने दलील दी है कि मध्यप्रदेश में पिछड़ा वर्ग की आबादी 50% से ज्यादा है इसलिए उन्होंने आरक्षण भी 14% से बढ़ाकर 27% कर दिया। 500 पन्नों के बयान में कमलनाथ सरकार ने यह साबित करने की कोशिश की है कि मध्य प्रदेश में पिछड़ा वर्ग के लोग अनुसूचित जाति के लोगों के समान पिछड़ेपन का शिकार हैं।
सरकार ने 500 पन्नों का जवाब पेश किया
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की सख्ती के बाद सरकार ने ओबीसी वर्ग को दिए गए 27 प्रतिशत आरक्षण मसले पर करीब 500 पन्नों का जवाब अदालत में पेश किया है। आज हुई सुनवाई के दौरान सरकार ने अपने जवाब में बताया कि मध्यप्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी 51 प्रतिशत से भी अधिक है। राज्य में बढ़ी हुई आबादी और सामाजिक आर्थिक पिछड़ेपन के कारण ओबीसी वर्ग के आरक्षण का प्रतिशत 14 से बढ़ाकर 27 कर दिया गया है। सरकार ने आरक्षण को बढ़ाने की मूल वजह ओबीसी वर्ग के पिछड़ेपन को दूर करना बताया है। सरकार के जवाब को हाईकोर्ट ने रिकार्ड में ले लिया है, जबकि मामले पर बहस के लिए याचिकाकर्ता की ओर से समय मांगा गया, जिस पर अदालत ने मामले की सुनवाई दो हफ्ते बाद नियत कर दी है।
सरकार के जवाब पर उठे सवाल
बढ़े हुए ओबीसी आरक्षण को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता की ओर से सरकार के जवाब पर सवाल उठाए गए हैं। उनका कहना है कि आरक्षण बढ़ाने के लिए सरकार का तर्क किसी वोट पॉलिटिक्स से कम नहीं लगता है। फिर भी जो जवाब सरकार हाईकोर्ट में लेकर आई है वो सुप्रीम कोर्ट और संविधान के विपरीत है।
आरक्षण का प्रतिशत 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता
इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए न्याय दृष्टांत मे स्पष्ट है कि ओबीसी समेत एससीएसटी वर्ग को दिए जाना वाले आरक्षण का प्रतिशत 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता. लेकिन मध्यप्रदेश में इसका दायरा 63 प्रतिशत हो गया है। याचिकाकर्ता का एक पक्ष ये भी है कि जिस तरह छत्तीसगढ़ में बढ़े हुए आरक्षण पर हाईकोर्ट ने स्टे दिया है, कुछ वैसा ही मध्यप्रदेश मे भी हो सकता है। अब देखना होगा कि अगली सुनवाई में सरकार के जवाब पर याचिकाकर्ता का पक्ष सुनने के बाद अदालत क्या रूख अपनाती है।