देश की जय होगी, तभी आपकी विजय होगी | EDITORIAL by Rakesh Dubey

आज विजयादशमी है | मेरा आपका देश विजयी हो, यह भावना देश के हर नागरिक में संचारित हो | विजय तभी होती है, जब हम अपनी कमजोरियों को पहचानें | आज देश के सामने अनेक ऐसी समस्याएं हैं जिनके निवारण के बगैर विजय होना असम्भव है | हम कितनी ही बड़ी-बड़ी बातें कर, देश के नागरिकों का मानस तैयार करने की कोशिश करते हैं, पर स्वयं का आचरण उस अनुकूल न होने से देश प्रगति के स्थान पर विपरीत दिशा को चल पड़ता है |इससे सबको बचना चाहिए, सरकार को, राजनीतिक दलों को सारे समाज और नागरिकों को भी |

आज देश की सबसे बड़ी समस्या यह है, की यह देश अपनी  प्राचीन और गौरवमयी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत से पूरी तरह कट चुका है। यहाँ का जन मानस चेतना और आत्म गौरव से रिक्त लोगों का देश बन चुका है, लोग आत्महीन, और दूषित प्रभावों के आधीन हो गए हैं |

आज इस देश के लोग अपने प्राचीन आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक खोजों, ऋषियों, वैज्ञानिकों और उनकी विश्व को दी गयी देन के प्रति पूर्णतया अनभिज्ञ हैं। इस देश के जन मानस के दिल दिमाग को अपने अतीत के महान  वैभव, श्रेष्ठतम खोजों, अविष्कारों और महानतम जीवन मूल्यों के सृष्टा और उद्घोषकों के सम्बन्ध में पूर्णतया अनभिज्ञ और अँधा बनाये रखा गया  है और यह प्रक्रिया निरंतर जारी है |

देश के नागरिकों को विद्रूपित इतिहास और तथ्य उपलब्ध कराये गये  है| उससे  उन्हें इतना बीमार और भ्रमित कर दिया है कि वो अपने ही पूर्वजों और उनके गरिमामयी कार्यों को, अद्भुत उपलब्धियों को स्वीकार करने को राजी नहीं है । वे अपने पुरातन इतिहास को संदेह और घृणा की दृष्टि से देखते है|  गुलामी से हुए पतन और बेहद कुटिलतापूर्वक आयोजित सामूहिक ब्रेनवाश का भयानकतम परिणाम यही है।वर्तमान में देश नागरिकों के अवचेतन में यह घर कर गया है की इस देश को जो कुछ मिला है, विदेशी हमलावरों और पाश्चात्य जगत से मिला है, यहाँ के लोग अपनी विराट सांस्कृतिक और ऐतिहासिक और आद्यात्मिक विरासत के प्रति बिलकुल भी जागरूक और संज्ञान में नहीं है, यही इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की वजह है।जो देश और उसके नागरिक अपनी संस्कृति और अतीत के गौरव के प्रति सम्मान और चेतना का भाव खो देते हैं वे राष्ट्र हर तरह दुर्गति को प्राप्त होते हैं, वो अपने ऊपर हमला करने वालों उन्हें लूटने और पद दलित और भ्रष्ट करनेवालों को अपने से श्रेष्ट और श्रेयस मानने लगते हैं।यह उनके पतन और आत्महीनता की पराकाष्ठा होती है, और देश इसी प्रोपेगंडा और षड़यंत्र का पिछले 1000 वर्षों से शिकार रहा है और अपनी रुग्णता के चरम से मुक्त होने की दिशा में अग्रसर हो रहा है।

आज इस देश के लोगों में अपनी धरती के लिए प्रेम और निष्ठा का बेहद अभाव है, इतने गद्दार और देशद्रोही कहीं और नहीं होंगे जितने इस देश में हर काल में हुए और आज भी हैं, और वे देश को कमजोर और खोखला करने में लगे हुए हैं। इस देश के लोगों को अपने व्यक्तिगत स्वार्थ पूर्ति से ऊपर कोई भी चीज नहीं है, सब अपने स्वार्थों की पूर्ति में लगे हैं, आप आसानी से इन्हें लालच देकर कोई भी कार्य करवा सकते हैं, यही तो चारित्रिक पतन की पराकाष्ठा है।इस देश के लोग जाति, धर्म और वर्ग में बंटे हुए है, और इस आधार पर लाभ लेने के लिए कुछ भी करने को तैयार है, राजनेता उनकी इस कमजोरी का पिछले 75 सालों से दोहन कर रहे हैं| यहां अयोग्य और अपराधी लोग हमारा प्रतिनिधित्व करते हैं, और लोग उन्हें स्वीकार और सहयोग प्रदान करते है, यहाँ घनघोर अपराधों और अन्यायपूर्ण कार्यों और भ्रष्ट लोग लोगों द्वारा चुने जाते हैं।यहां गुण की कोई कीमत नहीं है, लोगों की गुणवान और श्रेष्ठ होने में कोई रुचि नहीं है, बिना किसी योग्यता और गुण के लोग हर किस्म का लाभ और सुख सुविधा चाहते है, गुणवान, प्रतिभावान इस देश से बाहर जाने के लिए मजबूर हें, आज पूरे विश्व में भारतीय मूल के लोग सर्वाधिक धनी और प्रभावशाली पदों पर कार्यरत हैं।

ऐसे में विजयी होने की कल्पना बेमानी है | जब देश की जय होगी, तभी हमारी विजय होगी | इसी आशा के साथ विजयदशमी की शुभकामनायें |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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