भारत : या तो सपने या बदला | EDITORIAL by Rakesh Dubey

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नई दिल्ली। हम देश और विदेश दोनों में भारत के विकास के सपने दिखा रहे हैं | इन सपनों को पूरा करने के मंसूबे हिकमत और हिम्मत के कसीदे पढ़ रहे है| हकीकत कुछ और ही है | आर्थिक मंदी (financial crisis) से गुजरते देश के सामने बेरोजगारी (Unemployment) और गरीबी बड़े संकट है इनके मूल में जनसंख्या वृद्धि और प्राकृतिक आपदा हैं | इन चारों को नियंत्रित करने की कोई ठोस योजना नहीं दिख रही | देश की हालत यह है और हम भारत के लिए बल्कि नहीं बल्कि पूरे विश्व के प्रति सरोकार दिखा कर और अपनी चिंताएं साझा कर रहे हैं । प्रधानमन्त्री (Prime minister) के अमेरिका से लौटने और पिछले 3 दिनों में गाँधी जी के बहाने पक्ष-प्रतिपक्ष के देश में प्रचारित चिन्तन का तो यही सार है |

जैसा प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि भारत के विकास के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं, उनका परिणाम पूरी दुनिया के लिए लाभदायक होगा। इस तरह हम पूरी दुनिया के सपने के लिए काम कर रहे हैं। वे कहते हैं कि भारत ने दुनिया को युद्ध नहीं बुद्ध दिया है, वह विश्व बंधुत्व और शांति का पक्षधर है। दूसरी और कांग्रेस है,वो सारी बातें करती हैं, आलोचना भी करती है पर कोई ठोस उपाय नहीं सुझाती | प्रतिपक्ष कोई भी रहा हो, उसका रवैया हमेशा से ऐसा ही रहा है | हम कुर्सी पर तो ठीक वरन तो न रचनात्मक सुझाव देंगे और ही सही दिशा के लिए कोई जन जागरण ही करेंगे | आन्दोलन तो दूर की बात है | महात्मा गाँधी से दोनों को सीखने की जरूरत है |

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पूरा विश्व महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती मना रहा है। उनका सत्य और अहिंसा का संदेश आज भी दुनिया के लिए प्रासंगिक है। उन्होंने विवेकानंद का भी नाम भी कहीं लिया और कहा कि करीब सवा सौ साल पहले भारत के आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में विश्व धर्म संसद को शांति और सौहार्द का संदेश दिया था, आज सबसे बड़े लोकतंत्र भारत का भी दुनिया के लिए वही संदेश है- शांति और सौहार्द। क्या देश का पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों शांति और सौहाद्र के पक्ष में हैं ? शायद नहीं |

प्रधानमंत्री भारत के नव निर्माण अभियान कि चर्चा करते हैं और कहते हैं कि सरकार की कई योजनाएं देश की तस्वीर बदल रही हैं। इस क्रम में वे आयुष्मान भारत, स्वच्छता अभियान और जनधन योजना की प्रगति के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि जन भागीदारी से जन कल्याण की भावना बडी है शायद हकीकत ऐसी नहीं है । प्रधानमंत्री मोदी ने कहीं यह भी कहा कि भारत सरकार जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है और इसके तहत 15 करोड़ घरों को पानी की सप्लाई से जोड़ा जाएगा। अभी तो देश पानी-पानी है | हमारी जल संरक्षण की योजना सफल नहीं हुई है | भारी बरसात ने हमारे जल संचय की नीति को नाकाफी साबित किया है | सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्ति के लिए पूरे देश में एक बड़ा अभियान शुरू हो गया है। भारत विश्व स्तर पर भी सोलर ऐनर्जी को प्रोत्साहित करने का काम कर रहा है। आतंकवाद पर हमारी आवाज से आतंक के खिलाफ दुनिया को सतर्क हुई है | लेकिन अभी और गंभीरता की जरूरत है । गाँधी जी तरक्की के रास्ते पर पूरे विश्व के साथ मिलकर चलना चाहते थे और वे हमेशा दुनिया में अमन-चैन की स्थापना का पक्षधर रहे ।

देश का दुर्भाग्य है देश का प्रतिपक्ष इससे मुतमईन नहीं है | जैसा श्रीमती सोनिया गाँधी ने कहा कि “ पिछले 5 सालों में जो हुआ उससे बापू की आत्मा दुखी होगी |” अगर बापू होते तो वे रचनात्मक सुझाव देते, जन जागरण करते और बात न बनने पर आन्दोलन करते | अब प्रतिपक्ष सिर्फ वो आन्दोलन करता है जिसका उद्देश्य कतई रचनात्मक नहीं होता और सरकार भी व्यवस्था सुधार के नाम पर प्रतिपक्षियों पर जो कार्रवाई करती है वो बदले जैसी दिखती है | दोनों को बापू को समझना चाहिए, इसी में सार है |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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