आज दीपावली है। प्रकाश और समृद्धि का त्यौहार। प्रकाश में ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत दिखाई दे रहा है, साथ ही सरकार के समृद्धि के दावे भी। आंकड़ों के मुताबिक भारत 117 देशों की रैंकिंग में 102 वें नंबर पर है। सोचिये और कहिये ऐसे में मैं कैसे दीया जलाऊँ ? जिस देश में भूख के आंकड़े चुनौती दे रहे हों ऐसे में कैसे कोई त्यौहार मना सकता है। हंगर इंडेक्स में भारत अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका से भी पीछे है। फिर हम कैसी समृद्धि का दावा करते हैं। जो देश अपने पडौसी देशों से भूख के मामले में पीछे हो, वहां समृद्धि के त्यौहार का कितना मायने रखता है, सोचिये।
हाल ही में जारी रिपोर्ट कहती है कि भारत, दुनिया के उन 45 देशों में शामिल है जहां भूख को लेकर हालात बेहद गंभीर हैं। भारत में लोगों के स्वास्थ्य, पोषण और विकास के मुद्दों पर पर्याप्त काम नहीं किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक देश में भूखे लोगों की संख्या साल २०१५ में ७८ करोड़ थी जो अब बढ़कर८३ करोड़ हो गई है। यही नहीं देश में ६ से २३ महीने उम्र के बच्चों में से सिर्फ ९.६ प्रतिशत को न्यूनत्तम पौष्टिक आहार मिल पाता है।
सरकारी आंकड़े भी कुछ इससे इतर बात नहीं करते। इसी साल संसद को बताया गया है कि देश में ९३ लाख से ज़्यादा बच्चे गंभीर कुपोषण के शिकार हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स ही नहीं, 'भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद्' (आईसीएमआर), 'पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया' की अगुवाई में हुआ एक अध्ययन में भी यह चौंकाने वाला खुलासा करता है कि देश में हर तीन में से दो बच्चों की मौत कुपोषण से हो रही है।
आयरलैंड की 'कन्सर्न वर्ल्डवाइड' तथा जर्मनी की 'वेल्थहंगरहिल्फे' संस्था द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाशित यह 'ग्लोबल हंगर इंडेक्स' वैश्विक, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर भूख को मापने का पैमाना है। ये इंडेक्स दुनिया भर में कुपोषण और भूख को चार पैमानों पर रिकॉर्ड करता है। कुपोषण, बाल मृत्युदर, उम्र के अनुपात में कम विकास, लंबाई के अनुपात में कम वजन। चारों पैमाने पर आकलन के बाद, सभी देशों को ० से १०० तक अंक मिलते हैं। इसी आधार पर सभी देशों में भुखमरी के हालात का अंदाजा लगाया जाता है। रिपोर्ट में भारत को महज ३०.३ अंक मिले, जो भुखमरी की गंभीर स्थिति को दर्शाता है। 'ग्लोबल हंगर इंडेक्स' में भारत की रैंकिंग में लगातार गिरावट हो रही है। साल २०१४ में भारत ७७ देशों की रैंकिंग में ५५ नंबर पर था, तो साल २०१७ में बनी ११९ देशों की सूची में उसे १०० वां स्थान मिला था और साल २०१८ में वह ११९ देशों की सूची में १०३ वें स्थान पर आ गया। वर्ष २०१९ में स्थिति और भी ज्यादा बिगड़ गई।
सरकार, लगातार यह दावा करती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था, दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। देश में तेज आर्थिक विकास हो रहा है। साल २०२४ तक देश की अर्थव्यवस्था ५ ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगी। सरकार की यह बात मान भी ली जाए, तो आर्थिक विकास लोगों की जिंदगी को संवारने में मदद करता है। तेज आर्थिक वृद्धि दर से प्रति व्यक्ति आय दर में बढ़ोतरी होती है। साथ ही सार्वजनिक राजस्व में भी बढ़त देखी जाती है। जिसका इस्तेमाल सरकार कहीं न कहीं समाज के विकास में ही करती है। लेकिन ग्लोबल हंगर इंडेक्स, सरकार के तमाम दावों और आंकड़ों पर सवाल खड़े करता है। बढ़ रही अर्थव्यवस्था क्या इतनी भी सक्षम नहीं है कि वह अपनी आबादी के एक बड़े तबके को भोजन करा सके? उनकी गरीबी और भुखमरी को दूर कर सके।
आर्थिक वृद्धि हुई का लाभ देश के चंद पूंजीपति घरानों को ही मिला है। तथाकथित तेज आर्थिक वृद्धि दर के इस चमकते दौर में पूंजीपतियों ने तो काफी तरक्की की है। अमीर और अमीर होते जा रहे हैं, तो गरीब और गरीब। कोई भी त्यौहार तभी अच्छा लगता है, जब सब सुखी हो | प्रभु ! कुछ कीजिये, जिससे देश में सभी को पेट भर अनाज मिले | आप सबको दीपावली की शुभकामनायें।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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