प्राइमरी के मास्टर भूपेंद्र शर्मा ने वो कर दिखाया जो करोड़ों की बजट योजनाएं नहीं कर पाईं | BHOPAL NEWS

स्नेहा खरे | भोपाल। कौन कहता है आसमां में सुराग हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो... दुष्यंत कुमार की ये पक्तियां प्राइमरी शिक्षक भूपेंद्र शर्मा के जीवन का फलसफा हैं। भोपाल की बैरसिया तहसील के हर्राखेड़ा गांव की शासकीय प्राथमिक शाला के इस शिक्षक ने वह कर दिखाया जो शिक्षा विभाग का करोड़ों का बजट और योजनाएं भी नहीं कर पाई। तीन साल पहले बंद होने की कगार पर पहुंच गए इस स्कूल में अब 157 बच्चे पढ़ते हैं। भूपेंद्र की मेहनत से स्कूल में आए सकारात्मक बदलाव के चलते इस साल यहां 54 नए बच्चों ने एडमिशन लिया है। इनमें से 29 बच्चे तो प्राइवेट स्कूल छोड़कर यहां आए हैं।

घर-घर जाकर पेरेंट्स को समझाया

हर्राखेड़ा में एक ही परिसर में बालक एवं बालिका प्राइमरी पाठशाला संचालित होती थी। भूपेंद्र ने सहमति बनाकर दोनों स्कूलों को मर्ज करवाया। यहां 2014-15 और 15-16 में सिर्फ 10-10 नए एडमिशन ही हुए थे। 2017-18 में यह संख्या बढ़कर 38 हो गई । भूपेंद्र ने गर्मी की छुटि्टयों में घर-घर जाकर लोगों की से बात की। 2018-19 में 45 और 2019-20 में यहां 54 नए बच्चों ने एडमिशन लिया है। इनमें से 25 बच्चों ने पहली कक्षा में प्रवेश लिया जबकि 29 बच्चे तो ऐसे हैं जो दूसरे निजी स्कूल छोड़कर यहां पढ़ने आए हैं। इनमें दूसरी कक्षा से पांचवीं तक के बच्चे शामिल हैं। स्कूल में हर तीन माह में पेरेंट़्स टीचर मीटिंग होती है।

पढ़ाने का तरीका बदला..  

हिंदी और गणित के साथ अंग्रेजी व जनरल नॉलेज पर किया फोकस : 2006 में शादी के समय भूपेंद्र एक फाइनेंस कंपनी में अच्छी पोजिशन पर थे। पत्नी संगीता एक सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं। संगीता को जब उनके डीएड डिप्लोमा का पता चला तो उन्होंने व्यापमं द्वारा आयोजित संविदा शिक्षक परीक्षा देने को कहा। पहले तो भूपेंद्र इसके लिए तैयार नहीं थे, लेकिन पत्नी की जिद पर 2008 में परीक्षा दे दी। नौकरी भी लग गई। भूपेंद्र बताते हैं कि 2015 में जब हर्राखेड़ा प्राइमरी स्कूल में आया तो बच्चों की कम संख्या के चलते माध्यमिक स्कूल में पढ़ाने भेज दिया गया। 2017 में पता चला कि प्राइमरी स्कूल में केवल 24 बच्चे ही बचे हैं। मैंने संकुल प्राचार्य से कहा कि मुझे प्राइमरी स्कूल भेज दीजिए। मैं अपने बच्चों के लिए कुछ करना चाहता हूं। भूपेंद्र ने सबसे पहले टीचर्स के साथ मिलकर पढ़ाई का तरीका बदला। उन्होंने हिंदी ,गणित के साथ-साथ अंग्रेजी और जनरल नॉलेज पर भी फोकस किया। स्कूल की प्रभारी प्राचार्य संगीता साहू और दूसरे शिक्षकों ने भी भूपेंद्र के प्रयासों को सफल बनाने में पूरा सहयाेग दिया।

काश सभी स्कूल ऐसे हों : 

हर साल 25-30 हजार रुपए खर्च करने के बाद भी बच्चे कुछ सीख नहीं पा रहे थे। अब यहां कम समय में ही बच्चों में बहुत बदलाव आया है। काश सभी सरकारी स्कूल ऐसे हो जाएं । 
गौरीशंकर नागर, निवासी हर्राखेड़ा 

सकारात्मक बदलाव आए : 

भूपेन्द्र बहुत ही उत्साही और मेहनती शिक्षक हैं। उनके प्रयासों से स्कूल में सकारात्मक बदलाव आया है। विभाग उनकी हर संभव मदद करता है। 
शैलेन्द्र मोहन श्रीवास्तव, संकुल प्राचार्य , बैरसिया

ऐसे जीता बच्चों और परिजनों का भरोसा 

बच्चों की पंसद से स्कूल की यूनिफॉर्म की डिजाइन बदली। 
पूरे स्कूल में पांच हाउस हैं। हर हाउस में एक लड़के और एक लड़की को कैप्टन बनाया है। बोर्ड पर सभी हाउस कैप्टन के नाम और फोटो लगाए हैं। 
जनसहयोग से यहां तीन स्मार्ट क्लास शुरू होने वाली हैं। स्कूल की टीचर गीता ठाकुर ने बच्चों के लिए एक एलईडी दिया है। दूसरी एलईडी के लिए परिजनों ने पैसे जुटाए हैं। 
गर्मी की छुटि्टयों में समर क्लासेस लगाई गईं। स्कूल लाइब्रेरी में कहानियों के साथ-साथ जनरल नॉलेज से जुड़ी दो सौ से ज्यादा किताबें हैं। 
Tags

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !