कमलनाथ सरकार जीरो बजट खेती फॉर्मूला बना रही है | MP NEWS

भोपाल। विधानसभा चुनाव प्रचार के समय कांग्रेस सरकार ने किसानों की आय दोगुना करने की बात की थी। अब निष्कर्ष निकला है कि आय दोगुना नहीं की जा सकती। मंडी में फसल का समर्थन मूल्य दोगुना नहीं किया जा सकता परंतु लागत घटाई जा सकती है। सरकार ने विशेषज्ञों को इस काम पर लगाया है कि वो जीरो बजट खेती के तरीके खोज निकाले। 

किसानों की लागत आधी करके सरकार वचन निभाएगी

सरकारी सूों का कहना है कि इस काम में राज्य के कृषि और वेटनरी विश्वविद्यालयों को लगाया जा रहा है। कृषि और वेटनरी विश्वविद्यालयों द्वारा कम लागत में अधिक कृषि उत्पादन का व्यवहारिक मॉडल बनाया जाएगा, जो जीरो बजट की खेती के उपाय खोजेगा। विश्वविद्यालय स्वयं की जमीन पर पायलट प्रॉजेक्ट को क्रियान्वित करेंगे और उसकी प्रमाणिकता की जांच करेंगे। इस परियोजना में गाय के गोबर और गौमूत्र से बनाए गए खाद और कीटनाशक का उपयोग होगा, ताकि रसायनिक उर्वरकों पर होने वाला बड़ा खर्च बचाकर भी किसानों की आय दोगुनी की जा सके। 

हल्दी, अदरक और काली मिर्च की मिश्रित खेती पर जोर

आधिकारिक जानकारी के अनुसार, सोमवार को राज्यपाल लालजी टंडन ने कृषि और वेटनरी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के साथ हुई बैठक में किसानों की आय बढ़ाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा, 'विश्वविद्यालय किसान की अतिरिक्त आय के माध्यम खोजें और उन्हें उन माध्यमों को अपनाने के लिए प्रेरित भी करें। साथ ही फलों के बगीचे में हल्दी, अदरक और काली मिर्च की मिश्रित खेती पर जोर दिया जाए।' 

उत्पादक और उपभोक्ता के बीच सीधा सम्पर्क

राज्यपाल टंडन का मानना है, 'किसानों की समस्या के मूल मुद्दों पर मात्र चिंतन करना पर्याप्त नहीं है। विश्वविद्यालयों को समस्या के समाधान का व्यवहारिक उदाहरण भी प्रस्तुत करना होगा। इसके लिए जरूरी है कि उत्पादक और उपभोक्ता के बीच सीधा सम्पर्क हो। इसमें बिचौलियों की लम्बी शृंखला को कम करना होगा। किसान को फसल का उचित मूल्य दिलाने के लिए विश्वविद्यालयों को खाद्य प्रसंस्करण की व्यवस्था का भी व्यवहारिक क्रियान्वयन करना चाहिए। इससे जल्द नष्ट होने वाले उत्पादों को संरक्षित कर किसानों को उसका उचित मूल्य दिलाया जा सकेगा।' 

राज्यपाल ने पशुओं की नस्ल सुधारने के लिए ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया में किए प्रयासों से भी सीख लेने की हिदायत देते हुए देशी पशुधन की नस्ल सुधार के प्रयासों को बढ़ाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा, 'तीन वर्ष के चक्र में उन्नत नस्ल तैयार की जा सकती है। आवश्यकता समग्रता से प्रयास करने की है।' 

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