बरसते पानी से धरती का पेट भरें | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। दिल्ली देश की राजधानी है | उसके बारे में कुछ भी कहने के पहले सारे विभागों को सोचना होता है | केन्द्रीय भूजल बोर्ड ने भी सोचा होगा, अपनी इस रिपोर्ट से पहले | केंद्रीय भूजल बोर्ड की राजधानी में भूजल स्तर के बारे में हाथ लगी रिपोर्ट चौंकाने वाली है| इसके मुताबिक भूजल स्तर में जबर्दस्त गिरावट आयीं है| बोर और कुओं में पानी का स्तर 50 फीट तक नीचे चला गया है और औद्योगिक इलाके के 25 प्रतिशत से ज्यादा कुएं और बोरवेल सूख गए हैं। 

नगर निगम की जांच के मुताबिक इस घने शहर में निगम के द्वारा कराए गये 1100 से ज्यादा नलकूपों में लगभग 15 प्रतिशत सूख चुके हैं, यानी उसमें पानी निकलना बंद हो गया है| राजधानी इलाके में भूजल स्तर में कुल मिलाकर औसत गिरावट 6 मीटर से ज्यादा (लगभग 20 फीट) आँकी गई है| चावल के दाने की तरह इस रिपोर्ट से पूरे देश का मिजाज समझा जा सकता है | बरसता पानी सीमेंट कंक्रीट का जंगल जमीन को पानी पीने नहीं देता | खेती में प्रयुक्त भारी मात्रा में खाद ने भी एक ऐसी ही जल रोधी परत तैयार कर दी है |

बात खेती की | अलग-अलग फसलों के लिए अलग-अलग नमी रहनी चाहिए | जैसे -धान के लिए अधिक नमी की जरूरत है लेकिन बाजरा, कौनी वगैरह कम नमी में भी उपजाई जा सकती है| पौधों के लिए आवश्यक नमी का होना बहुत ही जरूरी है, क्योंकि नमी के चलते ही पौधों की जड़ें फैलती हैं और पौधे नमी के साथ ही मिट्टी से अपना भोजन लेते हैं | मिट्टी के सूक्ष्म जीवाणु भी मिट्टी में हवा और पानी के एक निश्चित अनुपात में ही अपना काम कर पाते हैं और पौधों के लिए भोजन तैयार करते हैं | ऐसा स्कूल में पढ़ा है और सब जानते हैं, लेकिन करते कुछ नहीं |

अलग- अलग जगहों में सिंचाई क्षमता अलग- अलग है | जैसे पठारी क्षेत्रों में सिचाई की क्षमता काफी कम है | यहाँ खरीफ में केवल सात प्रतिशत जमीन में ही सिंचाई हो सकती है, जबकि रबी के मौसम में तो सिंचाई सिर्फ 3 प्रतिशत जमीन में ही हो सकती है . इन क्षेत्रों के सभी सिंचाई श्रोतों का उपयोग यदि सही ढंग से और पूर्ण क्षमता के साथ की जाए तो यहाँ सिंचाई सिर्फ 15 प्रतिशत जमीन में ही की जा सकती है | पठारी क्षेत्रों की जमीन ऊबड़-खाबड़ है | मिट्टी की गहराई भी कम है यहाँ एक हजार से पंद्रह सौ मि.मी. वर्षा होती है | इस वर्षा का 80 प्रतिशत भाग जून से सिंतबर महीने तक होता है जो चल रहा है | मिट्टी की कम गहराई और खेत के ऊबड़-खाबड़ होने से वर्षा का पानी तो खेत से निकल ही जाता है, यह अपने साथ खेत की उपजाऊ मिट्टी भी ले जाता है |

यह सब इसलिए होता है की देश के अलग- अलग हिस्से की जमीन के स्वभाब अलग – अलग थे, हैं और रहेंगे भी | हमने अपने स्वार्थ के कारण हर जगह सीमेंट कंक्रीट की सडक, बड़े भवन बना दिए है | कभी यह नहीं सोचा कि बरसने वाला पानी जमीन के भीतर नहीं गया तो भूजल के रूप में हमारा पानी का खजाना कैसे पूरा होगा ? जमीन सूखी रही तो पौधे कैसे पनपेगें? बरसात के पानी का शहरों में कैसे संचय होगा ? हमने सिर्फ अपना स्वार्थ देखा और देख रहे हैं |

बड़ी त्रासदी सामने है |वर्षा जल का संचय करने के लिए कुछ करना जरूरी है | जल संचय के लिए तालाब का निर्माण करना चाहि‍ए| मौजूदा तालाबों को बरसात के पहले गहरे किया जाना चाहिए | नये तालाब यदि संभव हो तो ऐसी जगह बनाया जाए जहाँ भूमि की सतह की प्राकृतिक बनावट में थोड़ा-सा ही फेर बदल कर के तालाब का रूप दिया जा सके और जहाँ से कम से कम खर्च में अधिक से अधिक खेतों और मानवीय जरूरत को पूरा किया जा सके | सबसे जरूरी बात, ऐसे तालाब विशेषज्ञों से सलाह लेकर ही बनाना चाहिए|
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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