अनंत चतुर्दशी की व्रत, पूजन विधी एवं कथा | ANANT CHATURDASHI KA VRAT, POOJAN VIDHI OR KATHA

Anant Chaturdashi 2019 Vrat: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी व्रत किया जाता है। यह व्रत इस वर्ष 12 सितंबर दिन गुरुवार को पड़ रहा है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है, जिससे भक्तों के सभी कष्टों का निवारण हो जाता है। अनंत चतुर्दशी को विघ्नहर्ता श्रीगणेश जी का विसर्जन भी किया जाता है, ऐसे में अनंत चतुर्दशी का महत्व और भी बढ़ जाता है। जो लोग गणेश चतुर्थी से 10 दिनों के लिए गणपति बप्पा की मूर्ति स्थापित करते हैं, वे अनंत चतुर्दशी को हर्षोल्लास के साथ बप्पा को विदा करते हैं और अगले वर्ष फिर आने की प्रार्थना करते हैं।

अनंत चतुर्दशी व्रत एवं पूजा विधि / Anant Chaturdashi Vrat and Puja Vidhi

व्रत करने वाले व्यक्ति को चाहिए कि चतुर्दशी के दिन प्रातः काल में स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करे। उसके पश्चात 'ममाखिलपापक्षयपूर्वकशुभफलवृद्धये श्रीमदनन्तप्रीतिकामनया अनन्तव्रतमहं करिष्ये' मंत्र से व्रत का संकल्प करके वास स्थान को स्वच्छ और सुशोभित करें।

फिर संभव हो तो एक स्थान को या चौकी आदि को मंडप रूप में परिवर्तित करें और उसमें भगवान विष्णु की साक्षात् मूर्ति अथवा कुश से बनाई हुई सात फणों वाली शेष स्वरुप भगवान अनन्त की मूर्ति स्थापित करें। फिर उसके आगे 14 गांठ का अनन्त दोरक रखें, इस अनंत सूत्र सूत के धागे को हल्दी में भिगोकर 14 गांठ लगाकर तैयार किया जाता है।

इसके पश्चात नवीन आम्र पल्लव एवं गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्यादि से भगवान का पूजन करें। पूजन में पंचामृत, पंजीरी, केले और मोदक आदि का प्रसाद श्रीहरि को अर्पण करें।

अनंत चतुर्दशी व्रत कथा /Anant Chaturdashi Vrat Katha


प्राचीन काल में सुमन्तु ब्राह्मण की सुशीला कन्या कौण्डिन्य को व्याही थी। उसने दीन पत्नियों से पूछकर अनन्त व्रत धारण किया। एक बार कुयोगवश कौडिन्य ने अनन्त के डोरे को तोड़ कर आग में फेंक दिया, जिससे उसकी संपत्ति नष्ट हो गई। तब वह दुखी होकर अनन्त को देखने वन में चला गया। वहाँ आम्र, गौ, वृष, खर, पुष्करिणी और वृद्ध ब्राह्मण मिले।

ब्राह्मण स्वयं अनन्त थे। वे उसे गुहा में ले गए, वहां जाकर बताया कि वह आम वेद पाठी ब्राह्मण था। विद्यार्थियों को न पढ़ाने से आम हुआ। गौ पृथ्वी थी, बीजापहरण से गौ हुई। वृष धर्म, खर क्रोध और पुष्करिणी बहनें थीं।

दानादि परस्पर लेने देने से पुष्करिणी हुई और बृद्ध ब्राह्मण मैं हूं। अब तुम घर जाओ। रास्ते में आम्रादि मिले, उनसे संदेशा कहते जाओ और दोनों स्त्री-पुरुष व्रत करो, सब आनंद होगा।

इस प्रकार 14 वर्ष या (यथा सामर्थ्य) व्रत करें। नियत अवधि पूरी होने पर भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को उद्यापन करें। उसके लिए सर्वतोभद्रस्थ कलश पर कुश निर्मित या सुवर्णमय अनन्त की मूर्ति और सोना, चांदी, ताँबा, रेशम या सूत्र का (14 ग्रंथ युक्त) अनंत दोरक स्थापन करें।

उनका वेद मंत्रों से पूजन और तिल, घी, खांड, मेवा आदि से हवन करो। गोदान, शय्यादान, अन्नदान (14 घट, 14 सौभाग्य द्रव्य और 14 अनंत दान) करके 14 युग ब्राह्मणों को भोजन कराएं और फिर स्वयं भोजन करके व्रत को समाप्त करें।
ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र
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