भोपाल। जीवन के साठ बरस बीत गये | उनका कैसे आभार मानूं ,जिनके कारण मेरा अस्तित्व इस पायदान तक पहुंचा है | उनके उपकार को चुकाने के लिए मेरा शब्दकोष, कोई शब्द नहीं सुझा रहा है | नतमस्तक हूँ, निशब्द हूँ | आत्मा के अस्तित्व का हामी हूँ | मम्मीजी- पापाजी सहित वे सभी पूर्वज आगे भी अपनी कृपा ऐसे ही बरसाते रहेंगे | साठ के बाद की डगर कठिन होती है, परिवार के बाहर के कई और परिवार के एक दो अनुभव मनसा- वाचा- कर्मणा में संतुलन की शिक्षा दे रहे हैं | प्रभु कृपा करना आगे का जीवन संतुलित रहे | इस पायदान पर खड़े होकर जब पीछे देखता हूँ, तो वो सब याद आते हैं , जो इस यात्रा में मेरे प्रकाश स्तम्भ रहे हैं, और आगे भी मार्गदर्शन कर रहे हैं |
बड़ी बहिन का निरंतर जारी संघर्ष, छोटे भाईयों का जाना, निरंतर संदेश देता है काश तुम कुछ और अच्छा कर पाते | जो बन सका किया और आगे भी शुभ सोचने और करने का संकल्प | असली जीवन और संघर्ष घर के बाहर की दुनिया में होता है | स्कूल में ही स्व. श्री हजारीलाल जी वोहरा ने सिखा दिया था कि “ अभाव से स्वभाव का निर्माण होता है, बहुत बारीक़ सी लाइन होती है जिसके इस पार श्रम और कष्ट होता है और उस पार बैगेरती और भ्रष्टाचार | इस पार ही रहना |” कष्ट सहे, परिवार को कष्ट में रखा | पूर्वजों और गुरु का आशीर्वाद फलीभूत हुआ, अब आनन्द है | इस उम्र में जितना स्वस्थ होना चाहिए, उससे अधिक स्वस्थ हूँ | बेटे बेटी सब स्वस्थ, अपने-अपने कामों में लगे हुए |
लिखने- पढने के संस्कार बचपन से ही मिल गये थे, वे बचपन समाप्त होने से पहले ही वृत्ति में बदल गये | स्कूल में ताली बजाकर मेरा उत्साह बढ़ाते दोस्त संतोष गर्ग, डॉ प्रमोद अग्रवाल, दिनेश नेमा आज भी उसी भाव से साथ हैं | जब हम मिलते हैं, उस दिन उम्र, वहीँ पहुँच जाती है, जहाँ से हम जुड़े हैं | कोशिश करता हूँ, मेरे बाल सखा मेरे हर अच्छे-बुरे से जुड़े रहें | महाविद्यालयीन साथी परिचित बने दोस्त नहीं | मैं नियमित छात्र होते हुए भी परिवार को सहारा देने में अधिक समय जीविका को देता था | फिर भी विधि स्नातक साथ- साथ हो गया |
पत्रकारिता 1975 के दशक में वैसे भी अनुभव और वरिष्ठों की कृपा से सीखी जाती थी | मध्यप्रदेश के सागर वि वि में पहला पत्रकारिता अध्ययन विभाग में 1983 में ही खुला | तब तक क्रियात्मक पत्रकारिता में स्व. भाई रतन कुमार, स्व गंगा प्रसाद ठाकुर, स्व. मायाराम सुरजन, स्व. त्रिभुवन यादव, स्व के पी नारायणन से बहुत कुछ समझा सीखा | बड़े भाई की भांति स्व. राजेन्द्र नूतन और पद्म श्री विजय दत्त श्रीधर ने बारीकियां सिखाई | स्वदेश में स्व.सूरज पोतदार ने लिखने का निर्बाध मौका दिया, खबरें चमकने लगी | दैनिक जागरण ने राजनीतिक समझ का विकास किया |
90 का दशक भोपाल में पत्रकारिता के वेतन और परिवार के खर्चों के बीच असंतुलन रहने लगा | एक विचित्र स्थिति बनने लगी तो देश की राजधानी नई दिल्ली का सहारा लिया | स्व. रज्जू बाबू [राजेन्द्र माथुर ] ने स्वतंत्र लेखन का मन्त्र दिया | भोपाल और दिल्ली के बीच काम करते हुए कैसे संतुलन बनाये की दीक्षा स्व. प्रभाष जोशी ने दी | स्व. एन राजन भोपाल से सहारा देते रहे | श्री महेश श्रीवास्तव की तो अनुजों पर हमेशा कृपा रही है, मुझ पर कुछ ज्यादा रही और है |
यायावरी पत्रकारिता का यह दौर भारत भ्रमण करा ही रहा था | साथ यह भी अहसास दिलाता था, कुछ अपूर्ण है | पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की डिग्री करने का मन सालों से था | 2012 में वह भी कर डाला | दिल्ली में रहने का ठिकाना के एन गोविन्दाचार्य जी का कार्यालय था | विद्यार्थी काल में उनसे हुआ सम्पर्क मेरे लिए “छत” बन गया था | रैन बसेरे तो साउथ एवेन्यू और नार्थ एवेन्यू में सांसद सुरेन्द्र सिंह ठाकुर और सांसद सुरेश पचौरी के घर भी कभी- कभी रहे | गोविन्द जी का आज तक घर नहीं है, वे जहाँ भी रहते हैं उसे कार्यालय कहते हैं, पर वह स्थल होता विश्वविद्यालय है | विश्व को सही और पूरी तरह देखने समझने की दीक्षा गोविन्दजी के साथ , उनके यहाँ निरंतर आने वाले श्री राम बहादुर राय, श्री अच्युतानंद मिश्र जैसे मूर्धन्य पत्रकारों के साथ अनेक विद्वतजनों से मिली | सबका कृतग्य हूँ |
आप पूछ सकते हैं, 2015 से निरंतर लिखा जा रहा “प्रतिदिन” आज अलग क्यों है ? आज इसका विषय “मैं” खुद क्यों हूँ ? इसमें में हाई स्कूल के एक शिक्षक श्री कुरैशी जी की कृपा है | उन्होंने मेरी जन्मतिथि कुछ आगे खिसका दी थी | जिससे मैं दो बरस बाद आज प्रमाणित रूप से साठ साल का हुआ हूँ | आज 16 सितम्बर है, सरकारी तौर पर साठ साल का | सबको प्रणाम करता हूँ और ईश्वर से प्रार्थना अगला मार्ग सद्मार्ग बनाना | फिर एक बार इस यात्रा में मेरे मार्गदर्शन के लिए वरिष्ठ जनों का, साथ चले सहभागियों का, परिजनों का आभार| जिनके सहयोग के बिना यह यात्रा इस मुकाम तक पहुंचना मुश्किल थी |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।