कीजिये, अपने भीतर के “गांधी” के लिए “सत्याग्रह” ! | EDITORIAL by Rakesh Dubey

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नई दिल्ली। भारत में कोई भी घटना अनायास नहीं होती | जैसे इन दिनों 150 वी जयंती के बहाने पूरे देश में कहीं आधे, कहीं अधूरे और कहीं कहीं पूरे मन से भी मोहनदास करमचन्द गाँधी अर्थात महात्मा गाँधी अर्थात बापू को याद किया जा रहा है | बापू कहने वाले राजनीतिक दल ने अपने दफ्तरों में उन्हें बड़े आदमकद होर्डिंग में समेट दिया है तो महात्मा गाँधी को महात्मा से हुतात्मा बनाने के लिए आरोपित विचारधारा और उसके नजदीकी राजनीतिक दल ने उन्हें मतदान वैतरणी पार करने का औजार बना कर खूब उपयोग किया और आगे भी करने में कोई परहेज नहीं है | कुछ लोग मोहनदास करमचन्द गाँधी को सच्चे दिल से भी याद कर रहे हैं| ये वे लोग हैं, जो गाँधी को समझना चाहते और ख़ास कर वर्तमान सन्दर्भों में |

गाँधी जी और उनके द्वारा देश के भविष्य बारे में खींचे गये ब्लू प्रिंट को देश का आम नागरिक समझना चाहता है | इस निमित्त आयोजन हो रहे हैं. ऐसा ही एक आयोजन गाँधी भवन भोपाल में हुआ, ‘हम सब” संस्था आयोजक थी और मार्क्सवादी विचारक बादल सरोज आयोजन के मूल विषय “हिंसक समय में गाँधी” पर व्याख्यान हेतु आमंत्रित थे | उन्होंने अपनी बात के शुरू में ही कह दिया किसी भी महान व्यक्ति को उस देश काल परिस्थिति से समझा जा सकता है, जो उसका कार्यकाल रहा हो | विषय से इतर उन्होंने जिस गाँधीवृति को समझाया वो हर नागरिक में मौजूद गाँधी का कोई न कोई अंश है | यही अंश हर व्यक्ति का एक पृथक गाँधी है | मन में बैठा, लोक में पैठा गाँधी | मन में बसे, अवचेतन में बिराजे इस गाँधी को “सत्याग्रह” से ही समझा जा सकता है |

‘‘सत्याग्रह संस्कृत भाषा का शब्द है जो सत्य और आग्रह दो शब्दों से मिलाकर बना है और इसका अर्थ है सत्य के लिए आग्रह करना। सत्य का अर्थ उचित और न्यायपूर्ण होता है और आग्रह का अर्थ है किसी वस्तु को इतनी शक्ति और धैर्य से पकड़ना कि वह वस्तु व्यक्ति के व्यक्तित्व का एक भाग बन जाए और उस वस्तु की रक्षा के लिए सभी प्रकार के विरोधों को सहन किया जाये। इस प्रकार सत्याग्रह वह कार्य है जिसे एक व्यक्ति न्याय और शक्ति की रक्षा के लिए अनेक कठिनाइयों के होते हुए भी करने को तत्पर रहे।

सत्याग्रह अहिंसा पर आधारित है। इसी वजह से गांधी जी का कहना था कि एक व्यक्ति को सत्य की रक्षा और अत्याचार का विरोध मरते दम तक करना चाहिए, लेकिन इसे करते हुए विरोधी को भी कोई हानि नहीं पहुंचनी चाहिए।’’ ‘‘गांधीवाद में और क्या सर्वमान्य सत्य हैं?’’ ‘‘यही कि हमें विचारों, शब्दों और कार्यों में अहिंसा का पालन करना चाहिए। ईश्वर सभी व्यक्तियों का पिता है और सभी व्यक्ति भाई -भाई हैं। इस कारण हमें सभी को प्यार करना चाहिए।’’ ‘‘गांधीजी ने यह भी तो कहा था कि अगर तुम्हारे गाल पर कोई चांटा मारे तो उसके आगे अपना दूसरा गाल कर दो।’’ ‘‘दरअसल, गांधीवाद का मूल आधार यह है कि हमें असत्य, अत्याचार और शोषण का विरोध प्रत्येक स्थान पर करना चाहिए। हमें दण्ड देने के स्थान पर क्षमा करना सीखना चाहिए। हम अपने आदर्शों की पूर्ति के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए हमेशा तैयार रहें। इसके अतिरिक्त हमें अपने शत्रु से भी प्रेम करना चाहिए और हमें केवल अपने कर्तव्य की पूर्ति करना चाहिए व परिणामों पर विचार नहीं करना चाहिए।’

आपके मन मस्तिष्क में बैठा गाँधीजी का अंश इनमे से कोई भी हो सकता है | एक दूसरे से मेल खाता भी हो सकता है, बेमेल भी हो सकता है | अपने भीतर और अपने सामने मौजूद व्यक्ति या सन्गठन के अंश को पहचानिए पूरी शिद्दत और सत्य के साथ | यही आग्रह |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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