मप्र का एक सम्पन्न गांव जहां ताले नहीं लगते, डकैत नहीं आते, सूखा नहीं पड़ता | strange but true

भोपाल। यह तो सभी जानते हैं कि भारत के महाराष्ट्र राज्य में एक गांव है शिन्ग्नापुर जहां घरों में दरवाज तक नहीं हैं। लोग इसे शनि शिन्ग्नापुर के नाम से जानते हैं परंतु ज्यादातर लोग यह नहीं जानते कि मध्यप्रदेश में भी एक गांव ऐसा है जहां कभी ताले नहीं लगते। आसपास डकैती हुईं, परंतु इस गांव में कोई डकैत नहीं आया। कभी पुलिस नहीं आती। पूरा इलाका सूखा पीड़ित है परंतु इस गांव में जलसंकट नहीं है। कहते हैं यहां रामराज्य है क्योंकि यहां हर घर में नियमित रूप से रामायण का पाठ होता है।

टीकमगढ़। यह बात आपको कुछ अचरज में डाल सकती है कि बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले में नंदनपुर (गोर) एक ऐसा गांव है, जहां न तो पुलिस की जरूरत है और न ही यहां चोरों का खौफ है। यही कारण है कि इस गांव के लोग बाहर जाने पर भी घरों में ताले लगाना जरूरी नहीं समझते।

यादवों का गांव: ना शराब ना मांस

बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले के मोहनगढ़ थाने के अंतर्गत आता है नंदनपुर (गोर)। यादव बाहुल्य इस गांव में लगभग 50 घर हैं और आबादी लगभग 300 है। यहां के हर घर में बोरवेल है। लोगों ने रिचार्ज तकनीक को अपना रखा है जिससे जल संकट नहीं है। फसलों की पैदावार ठीक है और आपसी सामंजस्य भी है। यहां पर शराबबंदी और मांस बंदी पूरी तरह है। इस गांव को कई वर्षो से किसी भी तरह की पुलिस सहायता नहीं पड़ी।

कभी झगड़ा नहीं होता, पुलिस नहीं आती

गांव के भागीरथी यादव (64) बताते हैं, "पूर्वजों से सुना और उन्होंने स्वयं खुद देखा है कि उनके गांव में कभी झगड़ा नहीं हुआ अगर छोटा-मोटा झगड़ा हो भी जाता है तो उसे गांव के लोग आपस में निपटा लेते हैं और गांव में कोई भी शराब नहीं पीता है, इतना ही नहीं यहां मुर्गी-मुर्गा पालने से लेकर अंडा तक का उपयोग नहीं होता है।"

बुंदेलखंड सूखा लेकिन इस गांव में हरियाली है

वह कहते हैं, "समस्या की सबसे बड़ी जड़ शराब है। पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा के कारण ही वर्तमान दौर में भी कोई शराब नहीं पीता। मांस का सेवन भी नहीं करता। सभी का जोर खेती पर है। बुंदेलखंड सूखा ग्रस्त है, मगर यहां पानी की ज्यादा तंगी नहीं है, फसलों की खेती भी आसानी से हो रही है क्योंकि गांव के लोगों ने रिचार्ज करने की तकनीक को अपनाया है।"

महिलाएं बेखौफ, कोई गंदी नजर से देखता तक नहीं

गांव की बुजुर्ग विमला देवी (60) कहती हैं कि उनके गांव में शराब, मांस आदि का उपयोग न होने के कारण शांति का माहौल रहता है। महिलाओं को किसी बात की दिक्कत नहीं होती। यहां न तो छेड़छाड़ की घटनाएं होती है और न ही मारपीट की। आसपास के गांव में भले ऐसा होता रहे मगर उन्होंने अपने जीवन में ऐसा नहीं देखा।

गांव से बाहर जाते हैं तब भी ताले नहीं लगाते

उन्होंने कहा है कि यह गांव ऐसा है जहां पुलिस बुलाने की जरूरत नहीं होती है। लोग जब घर से बाहर जाते हैं तो ताला तक लगाना जरूरी नहीं समझते क्योंकि यहां कोई बदमाश प्रवृत्ति का है ही नहीं इसलिए चोरी का कोई डर नहीं।

2016 में केवल एक विवाद हुआ था

मोहनगढ़ थाने के प्रभारी गिरिजा शंकर वाजपेयी ने आईएएनएस को बताया, "मेरी अभी हाल ही में यहां पदस्थापना हुई है, मगर यह बात सही है कि नंदनपुर में विवाद कम होते हैं। अब से दो साल पहले 2016 में यहां केवल एक झगड़े का मामला सामने आया था।"

नियमित रामायण पाठ होता है, डकैत भी नहीं आते

गांव के युवा हरी सिंह (30) कहते है, "पूर्वजों से मिले संस्कारों का असर हर वर्ग पर है। यहां लोग नियमित रुप से रामायण पढ़ते हैं। पढ़ाई पर भी ध्यान दिया जाता है। आपसी भाईचारा कायम है। यहां न तो चोरी होती है और न ही आज तक डकैती हुई। स्थिति यह है कि लोग दूसरे को बताकर अपने घर में बगैर ताले लगाए चले जाते हैं।"

गांव में जैविक खेती होती है

चंदन सिंह के अनुसार, इस गांव में आपसी भाईचारा है। खेती में आधुनिक तकनीक का सहारा लिया जाता है। यहां परमार्थ समाजसेवी संस्थान के विशेषज्ञ जैविक खेती के लिए प्रशिक्षित करते हैं और किसान उसी के आधार पर खेती करते हैं जिससे गांव में खुशहाली आए।

वीराने में खुशहाल गांव है

बुंदेलखंड की पहचान कभी डकैत प्रभावित इलाके के तौर पर रही है। अब डकैत तो नहीं हैं मगर अपराधों का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। महिला अत्याचार के मामले में भी इलाका चर्चाओं में रहता है मगर नंदनपुर (गोर) जैसे गांव वीराने में खुशहाली का सुखद संदेश देते नजर आते हैं।

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