आज कल की भागदौड़ भरी जिंदगी में हर कोई किसी ना किसी दर्द (PAIN) से पीडित है। किसी को कमर दर्द, सिरदर्द, पैर दर्द तो किसी को ज्वाइंट में दर्द रहता ही है। व्यक्ति को खासतौर से हड्डियों के कमजोर (WEAKNESS IN BONES) होने के कारण इस तरह की समस्याएं झेलनी पड़ती है। उनमें से ऑस्टियोपोरोसिस (OSTEOPOROSIS) एक ऐसा रोग है जिसमें हड्डियों का घनत्व घट जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हड्डियों की मोटाई सामान्य से कम हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप, हड्डियां कमजोर होने लगती हैं और आसानी से टूट जाती हैं।
ऑस्टियोपोरोसिस में हड्डियां कितनी कमजोर हो जातीं हैं
हड्डियों में दर्द होना ऑस्टियोपोरोसिस का एक सामान्य लक्षण है लेकिन लक्षण का पता प्राय: नहीं चल पाता है। ऑस्टियोपोरोसिस में, पेशियों पर जोरदार या औचक जोर पडने पर भी कभी-कभी हड्डी टूट सकती है। इस तरह के फ्रैक्चर का एक सामान्य स्थल वर्टिब्रल कॉलम है जिसमें वर्टिब्रा प्रायरू चरमरा जाता है। इसके रोगियों की कूबड़ निकली हुई हो सकती है। वर्टिब्रा के ध्वस्त होने के गंभीर मामलों में नीचे के अंग पक्षाघात के शिकार हो सकते हैं। फ्रैक्चर के लिए दूसरी कमजोर जगह जांघ की हड्डी है। हालत के बेहद गंभीर या खराब हो जाने के मामलों में, छाती को थपथपाने भर से ही पसलियां टूट सकती हैं।
महिलाओं को ऑस्टियोपोरोसिस क्यों होता है
तथ्य यह है कि सभी हड्डियां धीरे-धीरे बिस्कुट की तरह कमजोर पड़ जाती हैं और हल्के से छुने पर भी कराह उठती हैं। ऑस्टियोपोरोसिस के कारण ही बुढ़ापे में लोगों का वजन कम होने लगता है। असामयिक रूप से मेनोपॉज का होना या किसी वजह से अंडाशय को निकलवा देना या उसका खराब हो जाना ऑस्टियोपोरोसिस के महत्वपूर्ण कारण हैं। यहां तक कि सामान्य मोनोपॉज के बाद भी, आगे के 15 वर्षों में हड्डियों से काफी कैल्शियम निकल जाता है जिसके परिणामस्वरूप महिलाएं ऑस्टियोपोरोसिस की शिकार हो जाती हैं। साथ ही प्रेग्रेसी के दौरान और बाद में भी शरीर में उपर्युक्त मात्रा में कैल्शियम की पूर्ति ना होने के कारण भी औरतों की हड्डियां काफी कमजोर होने लगती है जिसकी वजह से विटामिन डी की कमी से ऑस्टियोपोरोसिस में तेजी आ जाती है।
ऑस्टियोपोरोसिस के कारण फ्रैक्चर हो जाए तो क्या करें
अगर तमाम सावधानियों के बावजूद फ्रैक्चर हो ही जाए तो दर्द से राहत दिलाने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है काइफोप्लास्टी सर्जरी। इस सर्जरी के अंतर्गत पीछे की ओर से एक बहुत ही छोटा चीरा लगाया जाता है जिसके माध्यम से चिकित्सक एक पतली सी नली डाल देता है। फ्लूरोस्कोपी का प्रयोग करते हुए नली को सही स्थान तक पहुंचा दिया जाता है। नली संबंधित वर्टिब्रा के पेडिकल के माध्यम से फ्रैक्चर हुए हड्डी तक रास्ता बनाती है। एक्स-रे छवियों का प्रयोग करते हुए चिकित्सक अब नली के माध्यम से एक विशेष बैलून वर्टिब्रा तक पहुंचाता है और बड़ी ही सावधानी से बैलून को फुलाता है। फुलने के साथ ही बैलून फ्रैक्चर को ऊपर उठा देता है जिससे टुकड़े अधिक सामान्य स्थिति में आ जाते हैं। इससे अंदर की कोमल हड्डी भी ठोस हो जाती है और वर्टिब्रा के अंदर एक कैविटी का निर्माण हो जाता है। इसके बाद बैलून को हटा लिया जाता है और चिकित्सक निम्न दबाव पर विशेष रूप से तैयार किए गए उपकरण का प्रयोग, कैविटी को सीमेंट जैसे पदार्थ पोलिमिथाइलमिथेक्राइलेट (पीएमएमए) से भरने के लिए करता है। प्रवेश कराए जाने के बाद वह घोल तेजी से कड़ा हो जाता है जिससे हड्डियां स्थिर हो जाती हैं।
ऑस्टियोपोरोसिस क्या पुरुषों को भी हो सकता है
का कहना है कि ओस्टियोपोरोसिस को एक खामोश रोग कहा जाता है क्योंकि हड्डी फै्रक्चर होने से पहले तक आम तौर पर इसके कोई भी लक्षण प्रकट नहीं होते। अक्सर ही यह फ्रैक्चर स्पाइन, नितंब या कलाई में होता है। जहां तक पुरुषों का सवाल है, तो उनके सेक्स हॉर्मोन में अचानक कमी नहीं आती, बल्कि वह 70 साल की उम्र तक बना रहता है। इससे पुरुष आम तौर पर ऑस्टियोपोरोसिस से बचे रहते हैं। कम सेक्स हॉर्मोन वाले युवा पुरुषों में ऑस्टियोपोरोसिस का जोखिम बहुत अधिक होता है और उन्हें इसे लेकर सतर्क रहना चाहिए।
बहुत लंबे समय से ओस्टियोपोरोसिस को सिर्फ महिलाओं का ही रोग समझा जाता रहा है क्योंकि इससे प्रभावित होने वाले मरीजों में 80 प्रतिशत महिलाएं ही होती हैं लेकिन पिछले 5 से 10 वर्षों के बीच हुए विभिन्न रोग-विषयक शोधों से यह पता चला है कि ओस्टियोपोरोसिस पुरुषों को भी बेहद गंभीर रूप से अपना शिकार बनाता है। कई बार जब पुरुषों को यह पता भी चल जाता है कि वे इस रोग से ग्रस्त हैं तो भी बहुत सारे लोग डायगोनिसिस (रोग निदान) पर ही सवाल उठाने लगते हैं। पुरुषों और महिलाओं को इससे संबंधित कई एक समान खतरे हैं। पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम और विटामिन डी का न मिलना खतरे को बढ़ाता है, क्योंकि ये पोषक तत्व हड्डी को होने वाले नुकसान से बचाते हैं।
वजन बढ़ाने वाले व्यायामों का अभाव भी खतरे को बढ़ा सकता है क्योंकि इन गतिविधियों से हड्डी का घनत्व बढ़ता है. पुरुषों में अतिरिक्त खतरे की वजह धूम्रपान, बहुत अधिक शराब पीना, ओस्टियोपोरोसिस का पारिवारिक इतिहास, हल्की त्वचा, छोटी हड्डियां, तीन महीने से अधिक समय तक कोर्टिकोस्टेरॉयड दवाओं का प्रयोग तथा गुर्दा या यकृत रोग सहित विभिन्न बीमारियां हो सकती हैं।
पुरुषों को 45 वर्षों के बाद बोन मिनरल डेंसिटी (बीएमडी) टेस्ट करवाना चाहिए और अगर हड्डी का आकार छोटा हो तो हड्डियों को होने वाले नुकसान को रोकने और फ्रैक्चर के खतरे को कम करने के लिए दवा लेने के संबंध में डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। यह एक ऐसा रोग है जो चुपके से वार करता है और मरीज जब तक संभलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इसलिए थोड़ा संकेत मिलते ही चिकित्सक की सेवाएं लेने में देर नहीं करनी चाहिए और अगर तमाम सावधानियों के बावजूद फै्रक्चर हो ही जाए तो काइफोप्लास्टी सर्जरी ही दर्द समाप्त करने और हड्डियों को जोडने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है।