महिला अध्यापक ने हाथ जोड़े, प्राचार्य ने छूकर दबा दिया: हाईकोर्ट ने कहा अपराध नहीं | HIGH COURT NEWS

Bhopal Samachar
मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अपराधिक प्रकरण की प्राथमिक सूचना रिपोर्ट खारिज करते हुए कहा कि किसी महिला सहकर्मी के महज हाथ छूना अपराध नहीं है। इस कृत्य को किसी महिला की अपमानजनक शील भंग करने के रूप में नहीं देखा जा सकता है। न्यायमूर्ति टीवी नलवाडे और न्यायमूर्ति केके सोनवणे की खंडपीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (एक महिला पर हमला करने के इरादे से महिला के साथ मारपीट या आपराधिक बल का इस्तेमाल करने) के तहत दिलीप लोमाते के खिलाफ दायर एक प्राथमिकी को खारिज कर दिया।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, उस्मानाबाद जिले में स्थित संत ज्ञानेश्वर प्राथमिक आश्रम स्कूल का मामला है। एक महिला वैशाली जो सहायक अध्यापक थी, साल 2015-16 के उसके मेडिकल बिल और छुट्टियों के भत्ते स्कूल अथॉरिटी के पास लंबित थे। 26 सितंबर 2018 को सुबह जब शिकायतकर्ता छात्रों को पढ़ा रही थी। उसी समय हेडमास्टर दिलीप क्लास-रूम में आए। उन्होंने वैशाली के हाथों को छूने के बाद कहा कि उसके लंबित बिलों को मंजूरी दे दी जाएगी। साथ ही दिलीप ने वैशाली से स्कूल के ट्रस्टियों के खिलाफ शिकायत नहीं करने का अनुरोध किया था। इसके बाद दिलीप ने शिकायतकर्ता को धमकी देते हुए कहा कि उसके रिश्तेदार उच्च पदों पर हैं और कोई भी उसे नुकसान नहीं पहुंचा सकता है।

दिलीप के धमकी देने के बाद शिकायतकर्ता वैशाली ने माफी मांगने के लिए अपने हाथों को जोड़ लिया, तो दिलीप ने वैशाली के हाथों को छूकर उन्हें दबा दिया। वैशाली ने एक अन्य शिक्षक को इस घटना के बारे में बताया था और 12 अक्टूबर 2018 को उसने प्रधानाध्यापक के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई के लिए पुलिस में रिपोर्ट दर्ज की थी। तब आवेदक ने उक्त कार्यवाही को रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक आवेदन दायर किया। दिलीप के वकील एसजे सालुंके ने कोर्ट में कहा था कि वैशाली के शील भंग करने के आरोप झूठे, निराधार और चिंताजनक हैं।

उन्होंने तर्क दिया कि एफआईआर दर्ज करने में शिकायतकर्ता ने देरी की। साथ ही, स्कूल में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते समय, शिकायतकर्ता को अपमान करने की आदत थी। छुट्टी के लिए पूर्व सूचना या आवेदन दिए बिना वह स्कूल में अनुपस्थित रहती थी। बाद में उसने उच्च अधिकारी की अनुमति के बिना मस्टर रोल पर अपना हस्ताक्षर करने का फैसला किया।

सालुंके ने कहा कि शिकायतकर्ता को उसके स्कूल में लापरवाहीपूर्ण आचरण और अपमान के लिए एक नोटिस जारी किया गया था। संभागीय उपायुक्त, समाज कल्याण विभाग को बिना किसी पूर्व सूचना के ड्यूटी पर शिकायतकर्ता की लगातार अनुपस्थिति के बारे में अवगत कराया गया। स्कूल का प्रधानाध्यापक होने के नाते दिलीप उसे सही व्यवहार करने के लिए समझने की कोशिश करता था। मगर, वैशाली ने उसे यौन उत्पीड़न के एक मामले के साथ धमकी दी।

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