इंदौर। इंदौर-3 से निर्वाचित विधायक आकाश विजयवर्गीय (MLA Akash Vijayvargiya) न्यायिक अभिरक्षा (Judicial custody) में जेल में हैं,पुरजोर कोशिश के बाद इंदौर की अदालत ने उन्हें जमानत नहीं दी अब भोपाल में विशेष अदालत उनकी अर्जी पर गौर करेगी। आकाश भी भारतीय जनता पार्टी में आई नई खेप के सिपाही हैं। यह बताने का कोई औचित्य अब शेष नहीं है कि वे क्यों न्यायिक अभिरक्षा में हैं और उनके पिता का कद भाजपा में कितना बड़ा है। पिता का व्यवहार, प्रदेश की राजनीति और इंदौर के भाजपाई और गैर भाजपाई समीकरण भी जग जाहिर हैं। आकाश को हौव्वा बनाने में इन सबका योगदान है।
इंदौर और अतिक्रमण यह कहानी भी किसी से छिपी नहीं है, कई अट्टालिकाओं की नींव ऐसी ही कहानी और संरक्षण की नींव पर टिकी है। नगरनिगम के अमले की मकान विशेष को जमींदोज़ करने जिद भी इस मामले का महत्वपूर्ण पहलू है। कई झूलती इमारतें इंदौर में कई सालों से राजनीतिक सरेस से चिपकी हुई है। कुछ मॉल तो नियम विरुद्ध बने खड़े और माल बना रहे हैं, जितनी मजबूत राजनीतिक सरेस उतनी टिकाऊ इमारत। बकौल आकाश वे किसी महिला का अपमान नहीं सह सकें और क्रिकेट बेट से धुनाई कर दी। इस घटना से विधायक शब्द निकाल कर इंदौर की पृष्ठभूमि में इस कृत्य को सोंचे तो दिशा कुछ ओर दिखती है लेकिन, जब इसमें विधायक जैसे प्रत्यय जुड़ते हैं तो दिशा दूसरी होती है। इन दो दिशाओं के अलावा जो दिखाया जा रहा है वो राजनीति और उसके रंग हैं। इंदौर-3 से विधायक बनाना आसन नहीं है, कितना कठिन था, सबको मालूम है। पिता का रसूख और लोकप्रियता, विधायक की जिम्मेदारी अपनी जगह है। विधायक शब्द जैसे ही आपके नाम से जुड़ता है आप जनप्रतिनिधि हो जाते है।
हमारा या कोई भी लोकतंत्र सिर्फ नियम कायदों पर नहीं चलता है, बल्कि लोकतंत्र की परिपक्वता चुने हुए या शीर्ष जनप्रतिनिधियों के नैतिक आचरण व मर्यादा पर ज्यादा निर्भर करती है। नैतिकता की नींव उत्तरदायित्व और जवाबदेही की धारणा के साथ रखी जाती है। लोकतंत्र में सार्वजनिक पद पर आसीन व्यक्ति की जवाबदेही अंततोगत्वा जनता के प्रति ही होती है। हालांकि इसे कानून और नियमों की व्यवस्था से संचालित किया जाता है मगर नैतिकता का स्थान हमेशा नियमों कायदों से ऊपर ही होता है। नैतिकता कानून और नियमों के निर्धारण को एक आधार प्रदान करती है। यह सार्वजनिक जीवन में शीर्ष स्थान प्राप्त लोगों के आदर्श विचार ही होते हैं जो कानून और नियम का पालन करने के साथ उच्च नैतिक मूल्यों के आधार पर उनका चरित्र निर्माण करते हैं। लोकतंत्र का मूलभूत सिद्धांत यह है कि किसी सदन की सदस्यता धारण करने वाले या कहें सभी सार्वजनिक पदों पर आसीन व्यक्ति जनता की धरोहर हैं।
सार्वजनिक पद पर आसीन होने वाले सभी लोग जन-जीवन पर पर्याप्त प्रभाव डालते हैं। जनता का बहुत बड़ा वर्ग यह अपेक्षा करता है कि जनप्रतिनिधि द्वारा अपने दायित्वों व नैतिक मूल्यों का जिम्मेदारी से पालन किया जाना चाहिये। आम जीवन में नैतिकता की भूमिका के अनेक पक्ष हैं मगर सार्वजनिक जीवन में रहने वाले व्यक्तियों के लिए एक उच्च आचार संहिता के मूल्यों की अपेक्षा की जाती है। सार्वजनिक पद पर आसीन लोगों के लिए नैतिक मानदंड क्या होने चाहिये यह कोई लिखित कायदे में होना जरूरी नहीं है बल्कि यह आपके आचार व्यवहार से एक आदर्श के रूप में परिलक्षित होना चाहिए।
इंदौर में जो कुछ हुआ एक सबक है। इससे सब को कुछ न कुछ सीखना चाहिए। ऐसी घटना फिर न घटे, इसका संकल्प लेना चाहिए और कम से कम इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाना चाहिए। भावावेश में कुछ भी होता है, संयम जरूरी है, सबके लिए। हाँ, इमारतों की जाँच भी होना चाहिए पूरी ईमानदारी से राजनीतिक सरेस निकाल कर।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।