नई दिल्ली। भारत अब भी असमानता के खिलाफ जंग लड़ रहा है। असमानता के ढेर अवशेष हमारी मानसिकता में भरे पड़े है। प्रमुख बात यह है कि आर्थिक असमानता (economic inequality) ही अन्य असमानताओं की प्रमुख वजह साफ दिखती है। आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षिक रूप से कमजोर होकर पिछड़ेपन का शिकार बनता है। आर्थिक असमानता से ही बड़े पैमाने पर कुंठा को जन्म लेती है। यही कुंठा आजीविका के लिए संघर्षरत किसी व्यक्ति के लिए नैतिकता और ईमानदारी का मूल्य खो देने का पर्याप्त कारक कभी-कभी हो जाती है। जो टकराव का कारण बनती है। वास्तव में चंद हाथों में सिमटी समृद्धि की वजह से देश का एक बड़ा वंचित तबका शून्य अपसंस्कृति का शिकार हो रहा है।
अपसंस्कृति से आशय असमानता से पीड़ित व्यक्ति का अपराध, अनैतिकता,अवसाद आदि का शिकार हो जाना है। भारत में उच्च और निम्न स्तर के लोगों के दो भाग बन गये हैं। यह एक तरह से देश का आंतरिक आर्थिक विभाजन है। अन्तर्राष्ट्रीय संस्था ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार 2018 में भारतीय अरबपतियों की सम्पत्ति प्रतिदिन 2200 करोड़ रुपए बढ़ी। देश की 77.4 प्रतिशत सम्पत्ति पर देश के 10 प्रतिशत अमीर लोग काबिज है और साल 2018 में 18 नए अरबपति बढ़ गये। भारत में अब अरबपतियों की संख्या 119 के आसपास हो गई हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में रहने वाले 13.6 करोड़ लोग 2004 से कर्जदार बने हुए है। यह अंतर दूर हो सकता है। इस अंतर को मिटाने के लिए अमीर व्यक्तियों द्वारा कर के उचित हिस्से का भुगतान किया जाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए और असमानता को कम करने के लिए सरकारों को शिक्षा, सेवा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा में निवेश करके पुनर्वितरण के लिए कराधान और खर्च का प्रयोग करना चाहिए।
वैसे समाज में उच्च वर्ग या निम्न वर्ग का निर्माण किसी सरकार ने या किसी समाज की नीति या कानून ने नहीं किया है। ऊंच नीच का यह पैमाना किसी ने नियम बनाकर भी तय नहीं किया है। लोगों की मानसिकता ही यह तय करती है कि अमुक उच्च है और अमुक नीचा है। जाति का पैमाना मानवीय सोच का नतीजा है।हम अपने निर्णय से भेद पैदा कर देते है। जैसे कोई इंजीनियर और मजदूर व्यक्ति आप पास बैठे है तो उनमें कोई एक उसे देखकर यह धारणा बना लेता है कि यह तो मेरे से नीचा है या ऊंचा है। दोनों की बीच एक सोच की असमानता आ जाती है और दोनों का व्यवहार अलग अलग हो जाता है।जबकि दोनों इंसान एक ही है। यह भेद लोगों के अनैतिक आचरण या मानसिकता के कारण है। आर्थिक हिस्सेदारी और महिलाओं के लिए अवसरों के मामले में अब भी साठ प्रतिशत लैंगिक गैर बराबरी है।इस मामले में विश्व आर्थिक फोरम की लैंगिक समानता अध्ययन रिपोर्ट दर्शाती हैं कि 142 देशों की सूची में भारत 117 वे स्थान पर है। इस दिशा में भी बहुत कुछ होना है।
असमानता को मिटाने के लिए लोगों की सोच में बदलाव और जागरूकता जरूरी है। जबकि धन खर्च करके ऐसी संस्थाओं को पालने पोषने का ही काम कर रही जो असमानता मिटाने के दावे करके अपना धंधा चला रही हैं ।व्यापक स्तर पर असमानता के सभी पहलुओं पर विमर्श किया जाना चाहिए।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।