पेंशनरो के लिए अभिशाप रहे 19 वर्ष, सहमति प्रावधान हटने से हर्ष

भोपाल। मप्र कैबिनेट की 03 जून की बैठक में पेंशनरों एवं परिवार पेंशन धारियों के  लिए छत्तीसगढ़ सरकार की सहमति की धारा 49 के प्रावधानों को समाप्त करना कमलनाथ सरकार का एतिहासिक व साहसिक कदम है । मप्र तृतीय वर्ग शास कर्म संघ के प्रांतीय उपाध्यक्ष कन्हैयालाल लक्षकार ने कहा है कि राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49 के तहत विगत 19 वर्षों से छत्तीसगढ मप्र  की सहमति के बगैर पेंशनरों व परिवार पेंशन धारियों के लिए डीआर राज्य कर्मचारियों के डीए के साथ भुगतान नहीं करते थे । 

इस धारा का ऐसा पेंच फंसा था कि एक राज्य  सरकार डीआर पर निर्णय को दुसरे राज्य सरकार की सहमति की प्रत्याशा  में स्वीकृत नहीं करती थी । इसका सीधा खामियाजा प्रदेश के 4.5 लाख पेंशनरों व परिवार पेंशन धारियों को भुगतना पड़ रहा था । कमलनाथ सरकार की कैबिनेट ने इस पर अहम् संवेदनशील फैसला लेते हुए धारा 49 के प्रावधानों को दृढ़ता एवं सुजबुझ से समाप्त किया और राज्य कर्मचारियों के डीए के साथ डीआर भुगतान का मार्ग प्रशस्त करते हुए 01 जनवरी 2019 से 3% स्वीकृति काबिले तारीफ है । 

विगत 19 वर्षों में जनवरी 2006 एवं जनवरी 2016 से छठा एवं सातवां वेतनमान व वर्ष में दो बार अर्थात 38 डीए/डीआर की किश्तें मिली इसमें पेंशनरों को दोनों वेतनमान में 32 व 18 माह का एरियर भुगतान नहीं किया गया जो खुला शोषण व अन्याय  था जिसकी अब भी दरकार है । देखा जाए तो बीते 19 वर्ष पेंशनरों के लिए अभिशाप सिद्ध हुए हैं । कमलनाथ सरकार अपने "वचन पत्र" व कर्मचारियों/पेंशनरो के प्रति संवेदनशील होकर प्रभावी व एतिहासिक निर्णय ले रही है यह अविस्मरणीय हो सकते है । कर्मचारी हितैषी निर्णय कर्मचारियों का मनोबल बढ़ाने के साथ-साथ कार्य दक्षता समर्पण व निष्ठा में इजाफा करेगा । मप्र तृतीय वर्ग शास कर्म संघ खुले मन से सरकार के निर्णय का स्वागत, सराहना करते हुए आभार प्रकट करता है ।
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